Tuesday, June 18, 2024

BRAHMAN TODAY ब्राह्मण की वर्तमान काल में स्थिति

ब्राह्मण की वर्तमान काल में स्थिति :: जिस व्यक्ति पर एट्रोसिटी एक्ट 89 के तहत बिना जाँच-पड़ताल के भी कार्यवाई की जा सकती है, वो ब्राह्मण है। जिसको जाति सूचक शब्द इस्तेमाल करके बेखौफ गाली दी जा सकती है, वो ब्राह्मण है, देश में आरक्षित 131 लोकसभा सीटों और 1,225 विधान सभा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ सकता है, लेकिन वोट दे सकता है, वो ब्राह्मण है, जिसके हित के लिए आज तक कोई आयोग नहीं बना, वो ब्राह्मण है जिसके लिए कोई सरकारी योजना न बनी हो, वो  ब्राह्मण है। 
जिसके साथ देश का संविधान भेदभाव करता है, वो ब्राह्मण है, मात्र जिसको सजा देने के लिए NCSC और NCST का गठन किया गया वो ब्राह्मण है। मात्र जिसे सजा देने के लिए हर जिले में विशेष SC/ST न्यायालय खोले गए हैं, वो अभागा  ब्राह्मण है। 
जो स्कूल में अन्य वर्गों के मुकाबले चार गुनी फीस दे कर अपने बच्चों को पढाता है, वो बेसहारा ब्राह्मण है। 
नौकरी, प्रमोशन, घर आवंटन आदि में जिसके साथ कानूनन भेदभाव वैध है वो बेचारा ब्राह्मण है। 
सरकारों व सविधान द्वारा सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जाने वाला वो ब्राह्मण है। 
सबसे ज्यादा वोट देकर भी खुद को लुटापिटा-ठगा सा महसूस करने वाला वो ब्राह्मण है। 
सभाओं में फर्श तक बिछा कर एक अच्छी सरकार की चाह में आपको सत्ता सौंपने वाला वो ब्राह्मण है। 
देश हित मे आपका तन, मन, धन से साथ देने वाला वो ब्राह्मण है।
इतने भेदभाव के बावजूद भी, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो की भावना जो रखता है, वो ब्राह्मण है।
BRAHMANS TODAY वर्तमान में ब्राह्मण :: It's very-very difficult, rather impossible to follow-observe the self imposed restrictions, prohibitions, dictates in the life of a Brahmn. It's clearly the reason behind the evolution of the tree of Varn, caste-creed in Hindu religion-society.
One is free to become a Brahmn just by following the long-long list of do's and don'ts.
Daksh Prajapati, who was born out of the right foot-toe of Brahma Ji, may be treated as a Shudr (born out of the feet of Brahma Ji).
His 13 daughters, who were married to Kashyap-a Brahman,  followed the dictates of Shashtr; gave birth to all life forms on including Rakshas, Demons, Giants, Yaksh, Shudr, Mallechchh (Christians & Muslims) earth.
Sanctity, righteousness, asceticism, virtuousness, religiosity, truthfulness, purity, piousity, poverty, donations, charity, kindness, fasting, contentedness, satisfaction, teaching and learning Veds, Purans, Epics, Shashtr, harmony, peace, soft spokenness, decent behaviour, tolerance, highly developed fertile creative brain, excellent memory-power to retention-grasp, not to envy, anger, greedy, perturbed, tease are synonyms to a Brahmn. 
Today's Brahmns are Brahmns only for the name sake. They are just the carriers of the genes, chromosomes, DNA of their ancestors, Rishis, forefathers. They are changing with the changing times and do not hesitate-mind, adopting any profession, trade, business, job for the sake of earning money for survival, in the ever increasing race of fierce competition-in a world, which is narrowing down-shrinking, day by day, in an atmosphere of scientific advancement, discoveries, innovations, researches. However, whichever is the field, they work-choose, they assert their excellence-highly developed mental calibre, capabilities, capacities and move ahead of others, facing-tiding over, all turbulence, difficulties, resistances. What ever a Brahmn does, he should resort-revert back to prayers, devotion to God as and when he has time.


Thursday, April 4, 2024

विद्यार्थी LEARNER-SCHOLAR

विद्यार्थी LEARNER-SCHOLAR
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।  
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
आलस्यं मदमोहौ च चापल्यं गोष्ठिरेव च; स्तब्धता चाभिमानित्वं तथात्यागित्वमेव च। एते वै अष्ट दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मता:
आलस्य करना, मदकारी पदार्थों का सेवन, घर आदि में मोह रखना, चपलता-एकाग्रचित न होना, व्यर्थ की बात में समय बिताना, उद्धतपना (inaugurate) या जड़ता, अहंकार और लालची होना, ये विद्यार्थी के आठ दोष  माने गए है अर्थात् इन दुर्गुणों से युक्त को विद्या प्राप्त नहीं होती।[विदुर नीति 116] 
Evils-defects of a learner-student :- laziness, use of drugs-narcotics, attachment for the home, lack of concentration-frolic behaviour, versatility, wasting time in useless affairs, ignorance, ego and greediness.  
चंचलता :: बहुमुखी प्रतिभा, बहुविज्ञता; versatility.
सुखार्थिन: कुतो विद्या नास्ति विधार्थिन: सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्या विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्॥117॥
सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ? विधार्थी को सुख कहाँ? इसलिए जो सुख की चाहना करने वाला है, उसे विद्या की प्राप्ति की इच्छा छोड़ देनी चाहिए अथवा विद्यार्थी को सुख की इच्छा छोड़ देनी चाहिए।विदुर नीति 117] 
The student should not crave for comforts-luxury. The learner can have either education or comforts.
विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
विद्वता और राज्य अतुलनीय (इन दोनों की एक दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती) हैं, राजा को तो अपने राज्य-देश में ही सम्मान मिलता है पर विद्वान का सर्वत्र सम्मान होता है। 
Enlightenment, learning, knowledge and kingdom-empire can never be compared. A king is honoured-respected in his own land, country, state, whereas the intellectual, scholar, philosopher is respected everywhere. 


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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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