अनन्त-शेष नाग :: अनंत देव अध: (रसातल) क्षेत्र के स्वामी हैं। भगवान् की एक मूर्ति गुणातीत है, जिसे वासुदेव कहा जाता है और दूसरी तामसी है जिसे अनन्त या शेष कहते हैं। भगवान् की तामसी नित्यकला अनन्त के नाम से विख्यात है। ये अनादि हैं। इनके वीक्षण (विशेष तौर पर देखना, निरीक्षण, जाँच) मात्र से प्रकृति में गति आती है और सत्व, रज तथा तम, ये तीनों गुण अपने-अपने कार्य करने लगते हैं। इस तरह जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय का क्रम चल पड़ता है। इनके पराक्रम, प्रभाव और गुण अनन्त हैं। ये संपूर्ण लोकों की स्थिति के लिए ब्रह्मांड को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। देवता, असुर, नाग, सिद्ध, गन्दर्भ, विद्याधर, मुनिगण आदि भगवान् अनन्त का ही ध्यान करते हैं। इनकी आँखें प्रेम के मद से आनंदित और विह्वल रहती है। भगवान् अनन्त द्रष्टा और दृश्य को आकृष्ट कर एक बना देते हैं। इसलिए इन्हें संकर्षण भी कहा जाता है। कोई पीड़ित या पतित व्यक्ति इनके नाम का अनायास ही अगर उच्चारण कर लेता है तो वह इतना पुण्यात्मा बन जाता है कि वह दूसरे पुरुषों के पाप-ताप को भी नष्ट कर देता है।
इनका शरीर पीताम्बर है। कानों में कुण्डल और गले में वैजयन्ती माला धारण किए रहते हैं। इनके एक हाथ में हल की मूठ रहती है और दूसरा हाथ अभय मुद्रा में रहता है।
रामावतार में ये लक्ष्मण जी और कृष्णावतार में बलराम जी अर्थात संकर्षण थे।
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