Tuesday, June 30, 2020

नैर्ऋति देव

नैर्ऋति देव
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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 "ॐ गं गणपतये नमः" 
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
नैर्ऋति देव नैर्ऋत्य कोण के स्वामी हैं। ये सभी राक्षसों के अधिपति और परम पराक्रमी हैं। दिक्पाल निर्ऋति के लोक में जो राक्षस रहते हैं, वे जाति मात्र के राक्षस हें। आचरण में वे पूर्णरूप से पुण्यात्मा हैं। वे श्रुति और स्मृति के मार्ग पर चलते हैं। वे ऐसा खान-पान नहीं करते जिनका शास्त्रों में विधान नहीं है। वे पुण्य का अनुष्ठान करते हैं। इन्हें सभी प्रकार के भोग सुलभ हैं। निर्ऋति देवता भगवदीय जनों के हित के लिए पृथ्वी पर आते हैं। इनका वर्ण गाढ़े काजल की भाँति काला है तथा बहुत विशाल है। ये पीले आभूषणों से भूषित और हाथ में खड्ग लिये हुए हैं। राक्षसों का समूह इन्हें चारों ओर से घेरे रहता है। ये पालकी पर चलते हैं। इनका तेज काफी प्रखर है।
यदि वृक्षादभ्यपप्तत् फलं तद् यद्यन्तरिक्षात् स उ वायुरेव।
यत्रास्पृक्षत् तन्वो 3 यच्च वासस आपो नुदन्तु निर्ऋतिं पराचैः॥2
वृक्ष के अग्र भाग से गिरी वर्षा की जल बूँद, वृक्ष के फल के समान ही है। अन्तरिक्ष से गिरा जल बिन्दु निर्दोष वायु के फल के समान है, शरीर अथवा पहने वस्त्रों पर उसका स्पर्श हुआ है। वह प्रक्षालनार्थ जल के समान निर्ऋति देव (पापों को) हमसे दूर करें।
The drops of water falling from the tips of the trees are like their fruits. Water-rain drops falling over our cloths-bodies, from the outer space should be like the fruit of uncontaminated air. These droplets meant for purity, should remove our sins like the Nirati Dev-demigods granting pleasure, comforts.
निर्ऋति कश्यप ऋषि की पत्नी तथा प्रजापति दक्ष की पुत्री दिति के गर्भ से उत्पन्न सिंहिका नाम वाली कन्या का ही एक अन्य नाम था।
नैर्ऋति :: 
निघंटु 1/1 में पृथ्वी का नाम "निर्ऋति " दिया है। 
"विद्याद-लक्ष्मीकतमं जनानां मुखे निबद्धां निर्ऋतिं वहन्तम्"; Decay, destruction, dissolution. 
"हिंसाया निर्ऋतेर्मृत्यो-र्निरयस्य गुदः स्मृतः"; a calamity, evil, bane, adversity. [महाभारत 1.87.9; 5.36.8] 
"सा हि लोकस्य निर्ऋतिः" "destruction, evil, calamity." [भागवत 2.6.9]
गौः निर्ऋति। गौरिति पृथिव्या नामधेयम्।यद् दूरंगता भवति।
यच्चास्यां भूतानि गच्छंति॥2[निघंटु, निरुक्त महर्षि यास्क कृत] 
गौ पृथ्वी का नाम है, क्योंकि ये दूर दूर तक जाने वाली है। साथ में सब प्राणी उसमें रमण करते हैं, अतः पृथ्वी का नाम गौ है।
निरुक्त में निर्ऋति के संग गौ शब्द का भी अर्थ दिया है।
तत्र निर्ऋतिरमणादृच्छते कृच्छ्रापत्तिरितरा॥3[निरुक्त 2.5]
निरमणात निविष्टानि रमन्तेsस्यां भूतानीति निर्ऋति। इतरा कृच्छ्रपत्तिः दुःखसंज्ञिका, निर्ऋति पाप्मा। एका विनिष्टानां भूतानां रमयित्री, एका पुनः कृच्छ्रमापदयित्री।[दुर्गाचार्य]
पृथ्वी में सब प्राणी आनन्द पाते हैं, इसलिए इसका नाम निर्ऋति है। साथ ही, दुःख संज्ञा वाली पापिनी होने से ये निर्ऋति है। प्राणियों को आनन्द देने व दुःखों को हरकर नाश करमे वाली होने से पृथ्वी निर्ऋति है।
इसका तात्पर्य हा कि पृथ्वी दुःख हरकर सब प्राणियों को सुख देती है, जिस प्रकार से माँ अपने शिशु सब प्रकार के दुःख सहकर भी सुख देती है, उसी प्रकार पृथ्वी भी है। चाहे कितने ही पापी क्यों न हो, फिर भी पृथ्वी सबको धारण करती है तथा समान रूप से आनन्दित करती है। इसलिये इसका नाम निर्ऋति है।
"अलक्ष्मी निर्ऋति" अशोभा (दरिद्रता) का नाम निर्ऋति है।

 
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