Monday, January 11, 2021

विमानन शास्त्र

विमानन शास्त्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नमः।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्। 
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
1,875 ईसवी में भारत के मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की ऐक प्रति मिली थी। इस ग्रन्थ का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है। इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तरित जानकारी देते हैं। 
विमान :: जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है।[नारायण ऋषि]
एक स्थान से दूसरे स्थान को आकाश मार्ग से जा सके।[शौनक]
एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सके, उसे विमान कहते हैं।[विश्वम्भर]
विमान के प्रकार :: विमान विद्या के पूर्व आचार्य युग के अनुसार विमानों का वर्णन करते है। सतयुग और त्रेता युग मंत्रिका प्रकार के विमान, जिसमें भौतिक एवं मानसिक शक्तियों के सम्मिश्रण की प्रक्रिया रहती थी। इसमें 25 प्रकार के विमान का उल्लेख है।
द्वापर युग में तांत्रिक प्रकार के विमान थे। इनके 56 प्रकार बताये गए हैं।
कलियुग में कृतिका प्रकार के यंत्र चालित विमान थे, इनके 25 प्रकार बताये गए हैं। इन में शकुन, रूक्म, हंस, पुष्कर, त्रिपुर आदि प्रमुख थे।
मेघोत्पत्तिप्रकरणोक्तशरन्मेधावरणषट्केषु द्वितीया वरणपथे विमानमन्तर्धाय विमानस्थ शक्त्याकर्षणदर्पणमुखात्तन्मेधशक्तिमाहत्य पच्श्राद्विमानपरिवेषचक्रमुखे नियोजयेत्। तेनस्तंभनशक्तिप्रसारणम् भवति, पच्श्रात्तद्दवा रा लोकस्तम्भनक्रियारहस्यम्॥
मेघोत्पत्ति प्रकरण में कहे शरद ऋतु संबंधी छ: मेघावरणों के द्वितीय आवरण मार्ग में विमान छिपकर विमानस्थ शक्ति का आकर्षण करने वाले दर्पण के मुख से उस मेघ शक्ति को लेकर पश्चात् विमान के घेरे वाले चक्रमुख में नियुक्त करे, उससे स्तम्भन शक्ति का विस्तार अर्थात प्रसार हो जाता है एवं स्तम्भन क्रिया रहस्य हो जाता है।
इस मंत्र में जो दर्पण आया है, उसे शक्ति आकर्षण दर्पण कहा जाता है, यह पूर्व के विमानों में लगा होता था, यह दर्पण मेघों की शक्ति को ग्रहण करता है।
दूसरा विमान में एक स्थित चक्र मुख यंत्र होता है। आकाश में शक्ति आकर्षण दर्पण मेघों की शक्ति को ग्रहण करके, स्थित चक्र के माध्यम से मुख यंत्र तक पहुँचा देता है। तत्पश्चात चन्द्र मुख यंत्र स्तंभन क्रिया का प्रारम्भ कर देता है।
विमान को अदृश्य करने का रहस्य :: शक्ति यंत्र सूर्य किरणों के उषा दण्ड के सामने पृष्ठ केंद्र में रहने वाले वेण रथ्य किरण आदि शक्तियों से आकाश तरंग के शक्ति प्रवाह को खींचता है और वायु मण्डल में स्थित बलाहा विकरण आदि पाँच शक्तियों को नियुक्त करके उनके द्वारा सफ़ेद अभ्र मण्डला कार करके उस आवरण से विमान के अदृश्य करने का रहस्य है।
विश्व क्रिया दर्पण :: आकाश में विद्युत किरण और वात किरण (रेडियो तरंगे) के परस्पर सम्मेलन से उत्पन्न होने वाली बिंब कारक शक्ति से छाया चित्र बनाकर आकाश में उड़ने वाले अदृश्य विमानों का पता लगाया जा सकता है।
निर्मथ्य तद्वेदाम्बुधिं भरद्वाजो महामुनिः।
नवनीतं समुद्घृत्य यन्त्रसर्वस्वरूपकम्॥‌ 
प्रायच्छत्‌ सर्वलोकानामीप्सिताज्ञर्थ लप्रदम्‌।
तस्मिन चत्वरिंशतिकाधिकारे सम्प्रदर्शितम्‌॥
नाविमानर्वैचित्र्‌यरचनाक्रमबोधकम्‌।
अष्टाध्यायैर्विभजितं शताधिकरणैर्युतम॥ 
सूत्रैः पञ्‌चशतैर्युक्तं व्योमयानप्रधानकम्‌।
वैमानिकाधिकरणमुक्तं भगवतास्वयम्‌॥[बोधानन्द]
भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का मन्थन करके यन्त्र सर्वस्व नाम का ऐसा मक्खन निकाला है जो मनुष्य मात्र के लिए इच्छित फल देने वाला है। उसके चालीसवें अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमें विमान विषयक रचना के क्रम कहे गए हैं। यह ग्रंथ आठ अध्याय में विभाजित है तथा उसमें एक सौ अधिकरण तथा पाँच सौ सूत्र हैं तथा उसमें विमान का विषय ही प्रधान है। ग्रंथ के बारे में बताने के बाद भरद्वाज ऋषि विमान शास्त्र के उनसे पूर्व हुए आचार्य उनके ग्रंथों के बारे में लिखते हैं वे आचार्य तथा उनके ग्रंथ निम्नानुसार हैं।
(1). नारायण  :- विमान चन्द्रिका,   
(2). शौनक  :- न् व्योमयान तंत्र,
(3). गर्ग :- यन्त्र कल्प, 
(4). वायस्पतिकृत :- यान बिन्दु + चाक्रायणीकृत खेटयान प्रदीपिका और 
(5). धुण्डीनाथ :- व्योमयानार्क प्रकाश। 
इस ग्रन्थ में ऋषि भरद्वाज ने विमान की परिभाषा, विमान का पायलट जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया, आकाश मार्ग, वैमानिक के कपड़े, विमान के पुर्जे, ऊर्जा, यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का वर्णन किया गया है।
रहस्यज्ञ अधिकारी (पायलट) :: विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधकारी है। शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भली भाँति ज्ञान रखने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है। शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भली-भाँति ज्ञान रखने वाला ही सफल चालक हो सकता है। क्योंकि विमान बनाना, उसे जमीन से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना टेढ़ी-मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना उसे जाने बिना यान चलाना असम्भव है। अतः जो इन रहस्यों को जानता है, वह रहस्यज्ञ अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकार है।[भरद्वाज ऋषि]
कृतक रहस्य ::  बत्तीस रहस्यों में यह तीसरा रहस्य है, जिसके अनुसार विश्वकर्मा, छाया पुरुष, मनु तथा मय दानव आदि के विमान शास्त्र के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बनाना इसमने शामिल है। 
गूढ़ रहस्य :: यह पाँचवा रहस्य है जिसमें विमान को छिपाने की विधि दी गयी है। इसके अनुसार वायु तत्त्व प्रकरण में कही गयी रीति के अनुसार वातस्तम्भ की जो आठवीं परिधि रेखा है उस मार्ग की यासा, वियासा तथा प्रयासा इत्यादि वायु शक्तियों के द्वारा सूर्य किरण रहने वाली जो अन्धकार शक्ति है, उसका आकर्षण करके विमान के साथ उसका सम्बन्ध बनाने पर विमान छिप जाता है।
अपरोक्ष रहस्य :: यह नवाँ रहस्य है। इसके अनुसार शक्ति तंत्र में कही गयी रोहिणी विद्युत्‌ के फैलाने से विमान के सामने आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।
संकोचा :: यह दसवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आसमान में उड़ने समय आवश्यकता पड़ने पर विमान को छोटा करना बताया गया है।
विस्तृता :: यह ग्यारवाँ रहस्य है। इसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर विमान को बड़ा करना समझाया गया है। 
सर्पागमन रहस्य :: यह बाइसवाँ रहस्य है, जिसके अनुसार विमान को सर्प के समान टेढ़ी-मेढ़ी गति से उड़ाना संभव है। इसमें काह गया है दण्ड, वक्रआदि सात प्रकार के वायु और सूर्य किरणों की शक्तियों का आकर्षण करके यान के मुख में जो तिरछें फेंकने वाला केन्द्र है उसके मुख में उन्हें नियुक्त करके बाद में उसे खींचकर शक्ति पैदा करने वाले नाल में प्रवेश कराना चाहिए। इसके बाद बटन दबाने से विमान की गति साँप के समान टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है।
परशब्द ग्राहक रहस्य :: यह पच्चीसंवा रहस्य है। इसमें कहा गया है कि सौदामिनी कला ग्रंथ के अनुसार शब्द ग्राहक यंत्र विमान पर लगाने से उसके द्वारा दूसरे विमान पर लोगों की बात-चीत सुनी जा सकती है।
रूपाकर्षण रहस्य :: इसके द्वारा दूसरे विमानों के अन्दर का सब कुछ देखा जा सकता था।
दिक्प्रदर्शन रह्रस्य :: दिशा सम्पत्ति नामक यंत्र द्वारा दूसरे विमान की दिशा ध्यान में आती है।
स्तब्धक रहस्य :: एक विशेष प्रकार का अपस्मार नामक गैस स्तम्भन यंत्र द्वारा दूसरे विमान पर छोड़ने से अन्दर के सब लोग बेहोश हो जाते हैं।
कर्षण रहस्य :- यह बत्तीसवाँ रहस्य है, इसके अनुसार अपने विमान का नाश करने आने वाले शत्रु के विमान पर अपने विमान के मुख में रहने वाली वैश्र्‌वानर नाम की नली में ज्वालिनी को जलाकर सत्तासी लिंक (डिग्री जैसा कोई नाप है) प्रमाण हो, तब तक गर्म कर फिर दोनों चक्कल की कीलि (बटन) चलाकर शत्रु विमानों पर गोलाकार से उस शक्ति की फैलाने से शत्रु का विमान नष्ट हो जाता है।
ईंधन-कार्य  शक्ति ::
(1). शक्त्युद्गम :- बिजली से चलने वाला।
(2). भूतवाह :- अग्नि, जल और वायु से चलने वाला।
(3). धूमयान :- गैस से चलने वाला।
(4). शिखोद्गम :- तेल से चलने वाला।
(5). अंशुवाह :- सूर्य रश्मियों से चलने वाला।
(6). तारामुख :- चुम्बक से चलने वाला।
(7). मणिवाह :- चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला।
(8). मरुत्सखा :- केवल वायु से चलने वाला।
ऊर्जा स्रोत ::  विमान को चलाने के लिए भरद्वाज ऋषि ने निम्न ऊर्जा स्रोतों का उल्लेख  किया है :-
(1). वनस्पति तेल :- यह पेट्रोल की भाँति काम करता था।
(2). पारे की भाप :- प्राचीन शास्त्रों में इसका शक्ति के रूप में उपयोग किए जाने का वर्णन है। 
(3). सौर ऊर्जा :- इसके द्वारा भी विमान चलता था। ग्रहण कर विमान उड़ना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरता है, इसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा। 
(4). वातावरण की ऊर्जा :- बिना किसी अन्य साधन के सीधे वातावरण से शक्ति ग्रहण कर विमान, उड़ना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरती है उसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा। अमरीका में इस दिशा में प्रयत्न चल रहे हैं। यह वर्णन बताता है कि ऊर्जा स्रोत के रूप में प्राचीन भारत में कितना व्यापक विचार हुआ था।
विमान संचालन भारहीनता (zero gravity) की स्थति उत्पन्न की जा सकती थी। यदि पृथ्वी की गरूत्वाकर्षण शक्ति का उसी मात्रा में विपरीत दिशा में प्रयोग किया जाये तो भारहीनता उत्पन्न कर पाना संभव है।
इनके अलावा मन की गति  
Pushpak Viman of Kuber is said to be operated with the waves generated through mind and it could be expanded or contracted at will as per need. 
आकाश मार्ग :: महर्षि शौनक  ने आकाश मार्ग का पाँच प्रकार का विभाजन करते हैं तथा धुण्डीनाथ विभिन्न मार्गों की ऊँचाई विभिन्न मार्गों की ऊँचाई पर विभिन्न आवर्त्त (whirlpools) का उल्लेख करते हैं और उस ऊँचाई पर सैकड़ों यात्रा पथों का संकेत देते हैं। इसमें पृथ्वी से 100 किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न ऊँचाईयों पर निर्धारित पथ तथा वहाँ कार्यरत शक्तियों का विस्तार से वर्णन करते हैं।
आकाश मार्ग तथा उनके आवर्तों :: 
(1). रेखा पथ :- शक्त्यावृत्त (whirlpool of energy).
(2). वाता वृत्त :- wind.
(3). कक्ष पथ :- किरणावृत्त (Sun light, solar rays).
(4).  शक्तिपथ :- सत्यावृत्त (cold current).
वैमानिक का खाद्य ::  इसमें किस ऋतु में किस प्रकार का अन्न हो इसका वर्णन है। उस समय के विमान आज से कुछ भिन्न थे। आज के विमान उतरने की जगह निश्चित है, पर उस समय विमान कहीं भी उतर सकते थे। अतः युद्ध के दौरान जंगल में उतरना पड़ा तो जीवन निर्वाह कैसे करना, इसीलिए 100 वनस्पतियों का वर्णन दिया है। जिनके सहारे दो तीन माह जीवन चलाया जा सकता है। एक और महत्वपूर्ण बात वैमानिक शास्त्र में कही गयी है कि वैमानिक को दिन में 5 बार भोजन करना चाहिए। उसे कभी विमान खाली पेट नहीं उड़ाना चाहिए। 1,990 में अमेरिकी वायुसेना ने 10 वर्ष के निरीक्षण के बाद ऐसा ही निष्कर्ष निकाला है।
विमान के यन्त्र ::  विमान शास्त्र में 31 प्रकार के यंत्र तथा उनका विमान में निश्चित स्थान का वर्णन मिलता है। इन यंत्रों का कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया गया है । कुछ यंत्रों की जानकारी निम्नानुसार है।
(1). विश्व क्रिया दर्पण :- इस यंत्र के द्वारा विमान के आसपास चलने वाली गति- विधियों का दर्शन वैमानिक को विमान के अंदर होता था, इसे बनाने में अभ्रक तथा पारा आदि का प्रयोग होता था।
(2). परिवेष क्रिया यंत्र :- इसमें स्वाचालित यंत्र वैमानिक यंत्र वैमानिक का वर्णन है।
(3). शब्दाकर्षण मंत्र :- इस यंत्र के द्वारा 26 किमी. क्षेत्र की आवाज सुनी जा सकती थी तथा पक्षियों की आवाज आदि सुनने से विमान को दुर्घटना से बचाया जा सकता था।
(4). गुह गर्भ यंत्र :- इस यंत्र के द्वारा जमीन के अन्दर विस्फोटक खोजने में सफलता मिलती है।
(5). शक्त्याकर्षण यंत्र :- विषैली किरणों को आकर्षित कर उन्हें उष्णता में परिवर्तित करना और उष्णता के वातावरण में छोड़ना।
(6). दिशा दर्शी यंत्र :- दिशा दिखाने वाला यंत्र
(7). वक्र प्रसारण यंत्र :- इस यंत्र के द्वारा शत्रु विमान अचानक सामने आ गया, तो उसी समय पीछे मुड़ना संभव होता था।
(8). अपस्मार यंत्र :- युद्ध के समय इस यंत्र से विषैली गैस छोड़ी जाती थी।
(9). तमोगर्भ यंत्र :- इस यंत्र के द्वारा शत्रु युद्ध के समय विमान को छिपाना संभव था  तथा इसके निर्माण में तमोगर्भ लौह प्रमुख घटक रहता था।
विमान के प्रकार :: इनके 56 प्रकार बताए गए हैं तथा कलियुग में कृतिका प्रकार के यंत्र चालित विमान थे। इनके 25 प्रकार बताए हैं। इनमें शकुन, रुक्म, हंस, पुष्कर, त्रिपुर आदि प्रमुख थे ।
विमान शास्त्र में वर्णित धातुएं :: 
(1). तमोगर्भ लौह :- विमान शास्त्र में वर्णन है कि यह विमान अदृश्य करने के काम आता है। इस पर प्रकाश छोड़ने से 75 से 80 प्रतिशत प्रकाश को सोख लेता है। यह धातु रंग में काली तथा शीशे से कठोर तथा कान्सन्ट्रेटेड सल्फ्‌यूरिक एसिड में भी नहीं गलती।
(2). पंच लौह :- यह रंग में स्वर्ण जैसा है तथा कठोर व भारी है। ताँबा आधारित इस मिश्र धातु की विशेषता यह है कि इसमें सीसे का प्रमाण 7.95 प्रतिशत है।
(3). आरर :- यह ताँबा आधारित मिश्र धातु है जो रंग में पीली और कठोर तथा हल्की है। इस धातु में तमेपेजंदबम जव उवपेजनतम का गुण है। 
(4). पराग्रंधिक द्रव :- यह एक प्रकार का एसिड है, जो चुम्बक मणि के साथ गुहगर्भ यंत्र में काम आता है।
वेदों  विमानों के प्रकार ::
जल यान :- यह वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था।[ऋग वेद 6.58.3]
कारा :- यह भी वायु तथा जल दोनो तलों में चल सकता था।[ऋग वेद 9.14.1]
त्रिताला :- इस विमान का आकार तिमंजिला था।[ऋग वेद 3.14.1]
त्रिचक्र रथ :- यह तिपहिया विमान आकाश में उड़ सकता था।[ऋग वेद 4.36.1]
वायु रथ :: रथ की शकल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता था। [ऋग वेद 5.41.6]
विद्युत रथ :- इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता था। [ऋग वेद 3.14.1].
एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली उल्लेख है जिस का निर्माण जुडवा अशविन कुमारों ने किया था। इस विमान के प्रयोग से उन्हो मे राजा भुज्यु को समुद्र में डूबने से बचाया था।[यजुर्वेद]
विमानिका शास्त्र :: इस में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उड़ाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है। एक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था जिस के विधान की पूरी जानकारी लिखित है किन्तु इस में से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।
इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिन में विस्तरित मानचित्रों से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं। ग्रन्थ में 31 उपकरणों का वर्तान्त है तथा 16 धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं।
यन्त्र सर्वस्वः :: यह ग्रन्थ भी ऋषि भारदूज रचित है। इस के 40 भाग हैं जिन में से एक भाग विमानिका प्रकरण के आठ अध्याय, लगभग 100 विषय और 500 सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है। इस ग्रन्थ में ऋषि भरद्वाज ने विमानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है :-
(1). अन्तरदेशीय :- जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।
(2). अन्तरराष्ट्रीय :- जो एक देश से दूसरे देश को जाते थे। 
(3). अन्तीर्क्षय :-  जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते। थे 
इन में सें अति-उल्लेखलीय सैनिक विमान थे जिन की विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य चकित कर सकती हैं। 
सैनिक विमानों की विशेषतायें ::
पूर्णतया अटूट, अग्नि से पूर्णत्या सुरक्षित तथा आवश्यकता पड़ने पर पलक झपकने मात्र समय के अन्दर ही एक दम से स्थिर हो जाने में सक्षम।
(1).  शत्रु से अदृष्य हो जाने की क्षमता।
(2).  शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्ष्म। शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृष्यों को रिकार्ड कर लेने की क्षमता।
(3). शत्रु के विमान की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना।
(4). शत्रु के विमान के चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्द्ध कर देने की क्षमता।
(5). निजि रुकावटों तथा स्तब्द्धता की दशा से उबरने की क्षमता।
(6).  आवश्यक्ता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता।
(7). चालकों तथा यात्रियों में मौसमानुसार अपने आप को बदल लेने की क्षमता।
(8). स्वचालित तापमान नियन्त्रण करने की क्षमता।
(9). हल्के तथा उष्णता ग्रहण कर सकने वाले धातुओं से निर्मित तथा आपने आकार को छोटा बडा करने तथा अपने चलने की आवाजों को पूर्णतया नियन्त्रित कर सकने में सक्ष्म।
समरांगनः सुत्रधारा ::  य़ह ग्रन्थ विमानों तथा उन से सम्बन्धित सभी विषयों के बारे में जानकारी देता है। इसके 230 पद्य विमानों के निर्माण, उडान, गति, सामान्य तथा आकस्माक उतरान एवम पक्षियों की दुर्घटनाओं के बारे में भी उल्लेख करते हैं। लगभग सभी वैदिक ग्रन्थों में विमानों की बनावट त्रिभुज आकार की दिखायी गयी है। किन्तु इन ग्रन्थों में दिया गया आकार प्रकार पूर्णत्या स्पष्ट और सूक्ष्म है। कठिनाई केवल धातुओं को पहचानने में आती है।
समरांगनः सुत्रधारा के आनुसार सर्व प्रथम पाँच प्रकार के विमानों का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु, यम, कुबेर तथा इन्द्र के लिये किया गया था। तत्पश्चात अतिरिक्त विमान बनाये गये। चार मुख्य श्रेणियों का ब्योरा इस प्रकार है : -
रुकमा :- रुकमानौकीले आकार के और स्वर्ण रंग के थे।
सुन्दरः :- सुन्दर राकेट की शक्ल तथा रजत युक्त थे।
त्रिपुरः :- त्रिपुर तीन तल वाले थे।
शकुनः :- शकुनः का आकार पक्षी के जैसा था।
दस अध्याय संलगित विषयों पर लिखे गये हैं जैसे कि विमान चालकों का परिशिक्षण, उडान के मार्ग, विमानों के कल-पुरज़े, उपकरण, चालकों एवम यात्रियों के परिधान तथा लम्बी विमान यात्रा के समय भोजन किस प्रकार का होना चाहिये।
ग्रन्थ में धातुओं को साफ करने की विधि, उस के लिये प्रयोग करने वाले द्रव्य, अम्ल जैसे कि नींब अथवा सेब या कोई अन्य रसायन, विमान में प्रयोग किये जाने वाले तेल तथा तापमान आदि के विषयों पर भी लिखा गया है।
सात प्रकार के ईजनों का वर्णन किया गया है तथा उन का किस विशिष्ट उद्देष्य के लिये प्रयोग करना चाहिये तथा कितनी ऊचाई पर उस का प्रयोग सफल और उत्तम होगा। सारांश यह कि प्रत्येक विषय पर तकनीकी और प्रयोगात्मक जानकारी उपलब्द्ध है। विमान आधुनिक हेलीकोपटरों की तरह सीधे ऊँची उडान भरने तथा उतरने के लिये, आगे पीछ तथा तिरछा चलने में भी सक्ष्म बताये गये हैं। 
कथा सरित-सागर :- यह ग्रन्थ उच्च कोटि के श्रमिकों का उल्लेख करता है जैसे कि काष्ठ का काम करने वाले जिन्हें राज्यधर और प्राणधर कहा जाता था। यह समुद्र पार करने के लिये भी रथों का निर्माण करते थे तथा एक सहस्त्र यात्रियों को ले कर उड़ने वाले विमानों को बना सकते थे। यह रथ-विमान मन की गति के समान चलते थे।
 
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