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समुद्र मन्थन से कामधेनु का प्राकट्य ::
क्षीरोदतोयसम्भूता या: पुरामृतमन्धने।
पञ्च गावः शुभाः पार्थ पञ्चलोकस्य मातरः॥
नन्दा सुभद्रा सुरभिः सुशीला बहुला इति।
एता लोकोपकाराय देवानां तर्पणाय च॥
जमदग्निभरद्वाजवसिष्ठासितगौतमाः।
जगृहु: कामदाः पञ्च गावो दत्ताः सरैस्ततः॥
गोमयं रोचना मूत्रं क्षीरं दधि घृतं गवाम्।
षडङ्गानि पवित्राणि संशुद्धिकरणानि च॥
गोमयादुत्थितः श्रीमान् बिल्ववृक्षः शिवप्रियः।
तत्रास्ते पद्महस्ता श्रीः श्रीवृक्षस्तेन सः स्मृतः।
बीजान्युत्पलपद्मानां पुनर्जातानि गोमयात्॥
गोरोचना च माङ्गल्या पवित्रा सर्वसाधिका।
गोमूत्राद् गुग्गुलुर्जातः सुगन्धिः प्रियदर्शनः।
आहारः सर्वदेवानां शिवस्य च विशेषतः॥
यद्बीजं जगत् किञ्चित् तज्ज्ञेयं क्षीरसम्भवम्।
दधिजातानि सर्वाणि मङ्गलान्यर्थसिद्धये।
घृतादमृतमुत्पन्नं देवानां तृप्तिकारणम् ॥
ब्राह्मणाश्चैव गावश्च कुलमेकं द्विधा कृतम्।
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरन्यत्र तिष्ठति॥
गोषु यज्ञाः प्रवर्तन्ते गोषु देवाः प्रतिष्ठिताः।
गोषु वेदाः समुत्कीर्णाः सषडङ्गपदक्रमाः॥
समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर से लोकों की मातृ स्वरूपा कल्याण कारिणी जो पाँच गौएँ उत्पन्न हुई थीं, उनके नाम थे :- नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला। ये सभी गौएँ समस्त लोकों के कल्याण तथा देवताओं को हविष्य के द्वारा परितृप्त करने के लिये आविर्भूत हुई थीं। फिर देवताओं ने इन्हें महर्षि जमदग्नि, भरद्वाज, वसिष्ठ, असित और गौतम मुनि को समर्पित किया और उन्होंने इन्हें प्रसन्नतापूर्वक ग्रहण किया। ये सभी गौएँ सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करने वाली कामधेनु कही गयी हैं। गौओं से उत्पन्न दूध, दही, घी, गोबर, मूत्र और रोचना, ये छ: अंग (गोषडंग) अत्यन्त पवित्र हैं और प्राणियों के सभी पापों को नष्टकर उन्हें शुद्ध करने वाले हैं। श्री सम्पन्न बिल्व वृक्ष गौओं के गोबर से ही उत्पन्न हुआ है। यह भगवान् शिव को बहुत प्रिय है। चूँकि उस वृक्ष में पद्महस्ता भगवती माता लक्ष्मी साक्षात् निवास करती हैं, इसीलिये इसे श्री वृक्ष भी कहा गया है। बाद में नील कमल एवं रक्त कमल के बीज भी गोबर से ही उत्पन्न हुए थे। गौओं के मस्तक से उत्पन्न पवित्र गोरोचना समस्त अभीष्टों की सिद्धि प्रदान करने वाला तथा परम मंगल दायक है। अत्यन्त सुगन्धित गुग्गल भी गौओं के मूत्र से ही हुआ है। यह देखने से भी कल्याण करता है। यह गुग्गुल सभी देवताओं का आहार है, विशेष रूप से भगवान् शिव का प्रिय आहार है। संसार के सभी मंगल प्रद बीज एवं सुन्दर से सुन्दर आहार तथा मिष्टान्न आदि सब के सब गौ के दूध से ही बनाये जाते हैं। सभी प्रकार की मंगल कामनाओं को सिद्ध करने के लिये गाय का दही लोकप्रिय है। देवताओं को परम तृप्त करने वाला अमृत भी गाय के घी से ही उत्पन्न हुआ है। ब्राह्मण और गौ, ये दो नहीं हैं, अपितु एक ही कुल के दो पहलू या रूप हैं। ब्राह्मण में तो मन्त्रों का निवास है और गौ में हविष्य स्थित है; इन दोनों के संयोग से ही विष्णु स्वरूप यज्ञ सम्पन्न होता है; "यज्ञो वै विष्णुः"। गौओं से ही यज्ञ की प्रवृत्ति होती है और गौओं में सभी देवताओं का निवास है। छहों अंग :- शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द, ज्योतिष को और पद, जटा, शिखा, रेखा आदि क्रमों के साथ सभी वेद गौओं में ही सुप्रतिष्ठित हैं।[भविष्य पुराण, उत्तर पर्व]
प्रकृति ने समस्त जीव जंतुओं और सभी दुग्धधारी जीवों में केवल गाय ही है, जिसे ईश्वर ने 180 फुट (2,160 इंच ) लम्बी आँत दी है जिसके कारण गाय जो भी खाती-पीती है वह अन्तिम छोर तक जाता है।
जिस प्रकार दूध से मक्खन निकालने वाली मशीन में जितनी अधिक गरारियां लगायी जाती हैं, उससे उतना ही वसा रहित मक्खन निकलता है, इसीलिये गाय का दूध सर्वोत्तम है।
गाय बच्चा जनने के 18 घंटे तक अपने बच्चे के साथ रहती है और उसे चाटती है, इसीलिए वह लाखों बच्चों में भी वह अपने बच्चे को पहचान लेती है, जबकि भैंस और जरसी गाय अपने बच्चे को नहीं पहचान पातीं।
गाय जब तक अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाएगी, तब तक दूध नहीं देती है।
बच्चा देने के बाद गाय के स्तन से जो दूध निकलता है, उसे खीस, चाका, पेवस, कीला कहते हैं, इसे तुरन्त गर्म करने पर फट जाता है।
बच्चा देने के 15 दिनों तक इसके दूध में प्रोटीन की अपेक्षा खनिज तत्वों की मात्रा अधिक होती है और लेक्टोज, वसा (फैट) एवं पानी की मात्रा कम होती है।
खीस वाले दूध में एल्व्युमिन दो गुनी, ग्लोव्लुलिन 12-15 गुनी तथा एल्युमीनियम की मात्रा 6 गुनी अधिक पायी जाती है। खीस में भरपूर खनिज है यदि काली गाय का दूध (खीस) एक हफ्ते पिला दें तो वर्षो पुरानी टीबी ख़त्म हो जाती है।
गाय की सींगो का आकर सामान्यतः पिरामिड जैसा होता है, जो कि शक्तिशाली एंटीना की तरह आकाशीय उर्जा (कोस्मिक एनर्जी) को संग्रह करने का कार्य सींग करते है।
गाय के कुकुद्द में सूर्य केतु नाड़ी होती है जो सूर्य से अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकती है। गाय के 40 मन दूध में लगभग 10 ग्राम सोना पाया जाता है, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है, इसलिए गाय का घी हलके पीले रंग का होता है।
गाय के दूध के अन्दर जल 87% वसा 4%, प्रोटीन 4%, शर्करा 5%, तथा अन्य तत्व 1 से 2% प्रतिशत पाया जाता है।
गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन, 11 प्रकार के विटामिन्स, गाय के दूध में "कैरोटिन" नामक होता है।
गाय के दूध के पोषक तत्व गर्म करने पर भी सुरक्षित रहते हैं।
इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है जो कीटाणु नासक है।
गौ मूत्र चाहे जितने दिनों तक रखें, ख़राब नहीं होता है। इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है।
गौ मूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिक एसिड, पोटेशियम, सोडियम, लैक्टोज, सल्फर, अमोनिया, लवण रहित विटामिन ए, बी, सी, डी, ई आदि कई तरह के एंजाइम आदि तत्व पाए जाते है।
देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से "प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है जो बारिस लाने में सहायक होती है!
इसी के मिश्रण से ‘एथिलीन ऑक्साइड‘ गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है।
गौ मूत्र में मुख्यतः 16 खनिज तत्व पाये जाते है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है।
गाय के शरीर से पवित्र गुग्गल जैसी सुगंध आती है जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र करती है।
सावधान :: गाय फीताकृमि, platyhelminths पृथुकृमि जैसे कर्मियों का प्राथमिक स्त्रोत्र भी है, जो कि उसके माँस में पलता है। यह मनुष्य और अन्य माँसाहारियों के शरीर में गाय का माँस खाने से प्रवेश कर जाता है।
गाय सम्बन्धी सामान्य ज्ञान :: एक स्वस्थ गाय का वजन साढ़े तीन क्विंटल होता है।
गाय प्रतिदिन 10 किलो गोबर और 3 लीटर गो मूत्र देती है। गोबर से जैविक खाद बनता है।
गाय के गोबर में 18 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं। इन सभी को कृषि भूमि की सख्त जरूरत है। मैंगनीज, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्शियम, आयरन, कोबाल्ट, सिलिकॉन आदि। यह खाद रासायनिक खाद से छह गुना अधिक गुणकारी है।
शास्त्रों में लिखा है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी होती है और वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित करते हैं इसमें सोना भी पाया जाता है।
गोमूत्र से 48 प्रकार के रोगों का इलाज़ होता है।
अमेरिका भारत से देशी गाय का मूत्र का आयात करता है और इसका उपयोग मधुमेह की दवा बनाने में करता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में गोमूत्र पर तीन पेटेंट हैं।
गाय के गोबर से निकलने वाली गैस को घरेलू ईंधन के अलावा वाहनों के ईंधन के तौर पर प्रयोग किया जा सकता है।
भारत में 17 करोड़ गाय हैं। अगर इनका गोबर इकट्ठा किया जाए तो देश को 1 लाख 32 हजार करोड़ की बचत होगी और बिना डीजल या पेट्रोल के आयात किये ईंधन की आपूर्ति की जा सकती है।
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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