Saturday, January 28, 2017

NAMES IN HINDUISM हिन्दु धर्म में नामकरण

NAMES IN HINDUISM
हिन्दु धर्म में नामकरण
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com 
santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com   bhartiyshiksha.blogspot.com  santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
33 कोटि तैंतीस करोड़ देवताओं के सामान्य पद और 33 विशिष्ट देवताओं को दर्शाता है। मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग जाने वाले मनुष्य, इन्हीं में से किसी एक देवता में उसी प्रकार मिल जाते हैं जैसे समुद्र में नदी।
ऋग्वेद में नामांकित देवतागण :: अग्नि, वायु, इन्द्र, मित्र, वरुण, अश्र्चिद्वय, विश्वेदेवा, मरुद्गण, ऋतुगण, ब्रह्मणस्पति, सोम, त्वष्टा, सूर्य, विष्णु, पृश्नि; यम, पर्जन्य, अर्यमा, पूषा, रुद्रगण, वसुगण, आदित्य गण, उशना, त्रित, चैतन, अज, अहिर्बुध्न, एकयाक्त, ऋभुक्षा,गरुत्मान् इत्यादि। कुछ देवियों के नाम आये हैं, जैसे सरस्वती, सुनृता, इला, इन्द्राणी, होत्र, पृथिवी, उषा, आत्री, रोदसी, राका, सिनीवाली, इत्यादि।
DEMIGODS 33 कोटि देवतागण :: 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्वनी कुमार। अश्वनी कुमारों की जगह इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहाँ अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है।
12 आदित्य :: अदिति के पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु 12 आदित्य हैं। अन्य कल्प में ये नाम इस प्रकार थे :- अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु। इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र।अथवा इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र। अथवा विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। प्रचलित है कि गुणों के अनुरुप किसी व्यक्ति के अनेक नाम भी होते हैं। जिस प्रकार एक व्यक्ति के कई नाम होते हैं उसी प्रकार एक नाम के कई व्यक्ति हो सकते हैं। इन्हीं पर वर्ष के 12 मास नियु‍क्त हैं।
8 वसु :: धर, ध्रुव, सोम, अह:, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभास। 
11 रूद्र :: रूद्र, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली। 
हर-रुद्र्ब, हुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित-रुद्र्वृ, षाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व, कपाली। 
मृगव्याध, सर्प, निऋति, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, पिनाकी, दहन, ईश्वर, कपाली, स्थाणु, भव।[महाभारत] 
काल भेद से रुद्रों के नामों में अन्तर है। 
12 साध्य गण :: मन, अनुमन्ता, प्राण, नर, यान, चित्ति, हय, नय, हंस, नारायण, प्रभस और विभु।  
10 विश्वेदेव :: क्रतु, दक्ष, श्रव, सत्य, काल, धुनि, कुरुवान, प्रभवान् और रोचमान।
7 पितर :: कव्यवाह, अनल, सोम, यम, अर्यमा, अग्निश्वात्त और बर्हिषत् ।
2 अश्वनीकुमार :: भगवान् सूर्य के पुत्र 2 अश्वनी कुमार देवताओं के वैद्य-चिकित्सक हैं। 
परमात्मा के तीन नाम :: 
ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः। 
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा॥
ॐ, तत्, सत्, इन तीन प्रकार के नामों से जिस परमात्मा का निर्देश (संकेत) किया गया है, उसी परमात्मा से सृष्टि के आदि में वेदों तथा ब्राह्मणों और यज्ञों की रचना हुई है।[श्रीमद्भागवत गीता 17.23] 
The manner in which the three names of the Almighty :- ॐ, Tat, Sat; emerged, is the same as the creation of Veds, Brahmns and Holy sacrifices in fire in the beginning of Eternity. 
ॐ, तत्, सत् :- ये परमात्मा के तीन नाम हैं, निर्देश हैं। परमात्मा ने पहले वेद, ब्राह्मण और यज्ञों को बनाया। विधि वेद बताते हैं, अनुष्ठान ब्राह्मण करते हैं और क्रिया के लिये यज्ञ है। यज्ञ, तप और दान में किसी प्रकार की कमी रह जाये तो, परमात्मा का नाम स्मरण करें, उससे कमी पूरी हो जायेगी। "ॐ तत् सत्": इस मन्त्र से गृहस्थ अथवा उदासीन (साधु) जो भी कर्म आरम्भ करता है, उसको अभीष्ट की प्राप्ति होती है। जप, होम, प्रतिष्ठा, संस्कार आदि सम्पूर्ण क्रियाएँ, इस मन्त्र से सफल हो जाती हैं, इसमें सन्देह नहीं है। 
ॐ, Tat & Sat are the 3 names-directives of the God, which fulfils all the desires of the worshipper, if he spell them in the beginning of the Holy sacrifices, endeavours, rituals, prayers. The Almighty created the Veds & Brahmns followed by Holy sacrifices in fire for the benefit of the humans. The Veds describe the methods for the sacrifices, rituals, prayers, worships, asceticism etc. Prayers, Yagy, Hawan are carried out by the Brahmns by following the procedures laid down in the Veds & scriptures. The Yagy, Hawan, Holy sacrifices in fire are there to make successful all the endeavours, projects, desires, ambitions of the individuals. In case there is any draw back in the Yagy, Tap or Dan remember the God through these three names and the weakness-deficiency is overcome.
भगवान् श्री हरी विष्णु के 1,000 नाम-विष्णु सहस्त्र नाम :: 
ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः। 
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥1॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः। 
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च॥2॥ 
योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः। 
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः॥3॥
सर्वः शर्वः शिवः स्थाणु: भूतादि: निधि: अव्ययः। 
संभवो भावनो भर्ता प्रभवः प्रभु: ईश्वरः॥4॥
 स्वयंभूः शम्भु: आदित्यः पुष्कराक्षो महास्वनः। 
अनादि-निधनो धाता विधाता धातुरुत्तमः॥5॥
अप्रमेयो हृषीकेशः पद्मनाभो-अमरप्रभुः। 
विश्वकर्मा मनुस्त्वष्टा स्थविष्ठः स्थविरो ध्रुवः॥6॥
अग्राह्यः शाश्वतः कृष्णो लोहिताक्षः प्रतर्दनः। 
प्रभूतः त्रिककुब-धाम पवित्रं मंगलं परं॥7॥
ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः। 
हिरण्य-गर्भो भू-गर्भो माधवो मधुसूदनः॥8॥
ईश्वरो विक्रमी धन्वी मेधावी विक्रमः क्रमः। 
अनुत्तमो दुराधर्षः कृतज्ञः कृति: आत्मवान॥9॥
सुरेशः शरणं शर्म विश्व-रेताः प्रजा-भवः। 
अहः संवत्सरो व्यालः प्रत्ययः सर्वदर्शनः॥10॥
अजः सर्वेश्वरः सिद्धः सिद्धिः सर्वादि: अच्युतः। 
वृषाकपि: अमेयात्मा सर्व-योग-विनिःसृतः॥11॥
 वसु:वसुमनाः सत्यः समात्मा संमितः समः। 
अमोघः पुण्डरीकाक्षो वृषकर्मा वृषाकृतिः॥12॥
रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः। 
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः॥13॥ 
सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः। 
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः॥14॥ 
लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः। 
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः॥15॥ 
भ्राजिष्णु भोजनं भोक्ता सहिष्णु: जगदादिजः। 
अनघो विजयो जेता विश्वयोनिः पुनर्वसुः॥16॥
उपेंद्रो वामनः प्रांशु: अमोघः शुचि: ऊर्जितः। 
अतींद्रः संग्रहः सर्गो धृतात्मा नियमो यमः॥17॥
वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः। 
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः॥18॥
महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः। 
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक॥19॥
महेष्वासो महीभर्ता श्रीनिवासः सतां गतिः। 
अनिरुद्धः सुरानंदो गोविंदो गोविदां-पतिः॥20॥
मरीचि:दमनो हंसः सुपर्णो भुजगोत्तमः। 
हिरण्यनाभः सुतपाः पद्मनाभः प्रजापतिः॥21॥
अमृत्युः सर्व-दृक् सिंहः सन-धाता संधिमान स्थिरः। 
अजो दुर्मर्षणः शास्ता विश्रुतात्मा सुरारिहा॥22॥
गुरुःगुरुतमो धामः सत्यः सत्य-पराक्रमः। 
निमिषो अनिमिषः स्रग्वी वाचस्पति: उदार धीः॥23॥
अग्रणी: ग्रामणीः श्रीमान न्यायो नेता समीरणः। 
सहस्र-मूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात॥24॥
आवर्तनो निवृत्तात्मा संवृतः सं-प्रमर्दनः। 
अहः संवर्तको वह्निः अनिलो धरणीधरः॥25॥
सुप्रसादः प्रसन्नात्मा विश्वधृक्-विश्वभुक्-विभुः। 
सत्कर्ता सकृतः साधु: जह्नु:-नारायणो नरः॥26॥
असंख्येयो-अप्रमेयात्मा विशिष्टः शिष्ट-कृत्-शुचिः। 
सिद्धार्थः सिद्धसंकल्पः सिद्धिदः सिद्धिसाधनः॥27॥
वृषाही वृषभो विष्णु: वृषपर्वा वृषोदरः। 
वर्धनो वर्धमानश्च विविक्तः श्रुति-सागरः॥28॥ 
सुभुजो दुर्धरो वाग्मी महेंद्रो वसुदो वसुः। 
नैक-रूपो बृहद-रूपः शिपिविष्टः प्रकाशनः॥29॥ 
ओज: तेजो-द्युतिधरः प्रकाश-आत्मा प्रतापनः। 
ऋद्धः स्पष्टाक्षरो मंत्र:चंद्रांशु: भास्कर-द्युतिः॥30॥
अमृतांशूद्भवो भानुः शशबिंदुः सुरेश्वरः। 
औषधं जगतः सेतुः सत्य-धर्म-पराक्रमः॥31॥ 
भूत-भव्य-भवत्-नाथः पवनः पावनो-अनलः। 
कामहा कामकृत-कांतः कामः कामप्रदः प्रभुः॥32॥
युगादि-कृत युगावर्तो नैकमायो महाशनः। 
अदृश्यो व्यक्तरूपश्च सहस्रजित्-अनंतजित॥33॥
इष्टो विशिष्टः शिष्टेष्टः शिखंडी नहुषो वृषः। 
क्रोधहा क्रोधकृत कर्ता विश्वबाहु: महीधरः॥34॥ 
अच्युतः प्रथितः प्राणः प्राणदो वासवानुजः। 
अपाम निधिरधिष्टानम् अप्रमत्तः प्रतिष्ठितः॥35॥ 
स्कन्दः स्कन्द-धरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः। 
वासुदेवो बृहद भानु: आदिदेवः पुरंदरः॥36॥ 
अशोक: तारण: तारः शूरः शौरि: जनेश्वर:। 
अनुकूलः शतावर्तः पद्मी पद्मनिभेक्षणः॥37॥ 
पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत। 
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः॥38॥
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः। 
सर्वलक्षण लक्षण्यो लक्ष्मीवान समितिंजयः॥39॥
 विक्षरो रोहितो मार्गो हेतु: दामोदरः सहः। 
महीधरो महाभागो वेगवान-अमिताशनः॥40॥ 
उद्भवः क्षोभणो देवः श्रीगर्भः परमेश्वरः। 
करणं कारणं कर्ता विकर्ता गहनो गुहः॥41॥ 
व्यवसायो व्यवस्थानः संस्थानः स्थानदो-ध्रुवः। 
परर्रद्वि परमस्पष्टः तुष्टः पुष्टः शुभेक्षणः॥42॥ 
रामो विरामो विरजो मार्गो नेयो नयो-अनयः। 
वीरः शक्तिमतां श्रेष्ठ: धर्मो धर्मविदुत्तमः॥43॥
वैकुंठः पुरुषः प्राणः प्राणदः प्रणवः पृथुः। 
हिरण्यगर्भः शत्रुघ्नो व्याप्तो वायुरधोक्षजः॥44॥
ऋतुः सुदर्शनः कालः परमेष्ठी परिग्रहः। 
उग्रः संवत्सरो दक्षो विश्रामो विश्व-दक्षिणः॥45॥
विस्तारः स्थावर: स्थाणुः प्रमाणं बीजमव्ययम। 
अर्थो अनर्थो महाकोशो महाभोगो महाधनः॥46॥
अनिर्विण्णः स्थविष्ठो-अभूर्धर्म-यूपो महा-मखः। 
नक्षत्रनेमि: नक्षत्री क्षमः क्षामः समीहनः॥47॥
यज्ञ इज्यो महेज्यश्च क्रतुः सत्रं सतां गतिः। 
सर्वदर्शी विमुक्तात्मा सर्वज्ञो ज्ञानमुत्तमं॥48॥
सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुहृत। 
मनोहरो जित-क्रोधो वीरबाहुर्विदारणः॥49॥ 
स्वापनः स्ववशो व्यापी नैकात्मा नैककर्मकृत। 
वत्सरो वत्सलो वत्सी रत्नगर्भो धनेश्वरः॥50॥
धर्मगुब धर्मकृद धर्मी सदसत्क्षरं-अक्षरं। 
अविज्ञाता सहस्त्रांशु: विधाता कृतलक्षणः॥51॥
गभस्तिनेमिः सत्त्वस्थः सिंहो भूतमहेश्वरः। 
आदिदेवो महादेवो देवेशो देवभृद गुरुः॥52॥
उत्तरो गोपतिर्गोप्ता ज्ञानगम्यः पुरातनः। 
शरीर भूतभृद्भोक्ता कपींद्रो भूरिदक्षिणः॥53॥
सोमपो-अमृतपः सोमः पुरुजित पुरुसत्तमः। 
विनयो जयः सत्यसंधो दाशार्हः सात्वतां पतिः॥54॥
जीवो विनयिता-साक्षी मुकुंदो-अमितविक्रमः। 
अम्भोनिधिरनंतात्मा महोदधिशयो-अंतकः॥55॥
अजो महार्हः स्वाभाव्यो जितामित्रः प्रमोदनः। 
आनंदो नंदनो नंदः सत्यधर्मा त्रिविक्रमः॥56॥
महर्षिः कपिलाचार्यः कृतज्ञो मेदिनीपतिः। 
त्रिपदस्त्रिदशाध्यक्षो महाश्रृंगः कृतांतकृत॥57॥
महावराहो गोविंदः सुषेणः कनकांगदी। 
गुह्यो गंभीरो गहनो गुप्तश्चक्र-गदाधरः॥58॥
वेधाः स्वांगोऽजितः कृष्णो दृढः संकर्षणो-अच्युतः। 
वरूणो वारुणो वृक्षः पुष्कराक्षो महामनाः॥59॥
भगवान भगहानंदी वनमाली हलायुधः। 
आदित्यो ज्योतिरादित्यः सहिष्णु:-गतिसत्तमः॥60॥
सुधन्वा खण्डपरशुर्दारुणो द्रविणप्रदः। 
दिवि:स्पृक् सर्वदृक व्यासो वाचस्पति:अयोनिजः॥61॥
त्रिसामा सामगः साम निर्वाणं भेषजं भिषक। 
संन्यासकृत्-छमः शांतो निष्ठा शांतिः परायणम॥62॥
शुभांगः शांतिदः स्रष्टा कुमुदः कुवलेशयः। 
गोहितो गोपतिर्गोप्ता वृषभाक्षो वृषप्रियः॥63॥
अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः। 
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः॥64॥
दः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः। 
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः॥65॥
स्वक्षः स्वंगः शतानंदो नंदिर्ज्योतिर्गणेश्वर:। 
विजितात्मा विधेयात्मा सत्कीर्तिश्छिन्नसंशयः॥66॥ 
उदीर्णः सर्वत:चक्षुरनीशः शाश्वतस्थिरः। 
भूशयो भूषणो भूतिर्विशोकः शोकनाशनः॥67॥
अर्चिष्मानर्चितः कुंभो विशुद्धात्मा विशोधनः। 
अनिरुद्धोऽप्रतिरथः प्रद्युम्नोऽमितविक्रमः॥68॥
कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः। 
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः॥69॥ 
कामदेवः कामपालः कामी कांतः कृतागमः। 
अनिर्देश्यवपुर्विष्णु: वीरोअनंतो धनंजयः॥70॥ 
ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृत् ब्रह्मा ब्रह्म ब्रह्मविवर्धनः। 
ब्रह्मविद ब्राह्मणो ब्रह्मी ब्रह्मज्ञो ब्राह्मणप्रियः॥71॥ 
महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः। 
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः॥72॥ 
स्तव्यः स्तवप्रियः स्तोत्रं स्तुतिः स्तोता रणप्रियः। 
पूर्णः पूरयिता पुण्यः पुण्यकीर्तिरनामयः॥73॥
मनोजवस्तीर्थकरो वसुरेता वसुप्रदः। 
वसुप्रदो वासुदेवो वसुर्वसुमना हविः॥74॥ 
सद्गतिः सकृतिः सत्ता सद्भूतिः सत्परायणः। 
शूरसेनो यदुश्रेष्ठः सन्निवासः सुयामुनः॥75॥ 
भूतावासो वासुदेवः सर्वासुनिलयो-अनलः। 
दर्पहा दर्पदो दृप्तो दुर्धरो-अथापराजितः॥76॥ 
विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान। 
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः॥77॥
एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम। 
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सलः॥78॥
सुवर्णोवर्णो हेमांगो वरांग: चंदनांगदी। 
वीरहा विषमः शून्यो घृताशीरऽचलश्चलः॥79॥ 
अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक। 
सुमेधा मेधजो धन्यः सत्यमेधा धराधरः॥80॥ 
तेजोवृषो द्युतिधरः सर्वशस्त्रभृतां वरः। 
प्रग्रहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रृंगो गदाग्रजः॥81॥
चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः। 
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात॥82॥
समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः। 
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा॥83॥
शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः। 
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः॥84॥ 
उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी॥85॥
सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः। 
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः॥86॥ 
कुमुदः कुंदरः कुंदः पर्जन्यः पावनो-अनिलः। 
अमृतांशो-अमृतवपुः सर्वज्ञः सर्वतोमुखः॥87॥
सुलभः सुव्रतः सिद्धः शत्रुजिच्छत्रुतापनः। 
न्यग्रोधो औदुंबरो-अश्वत्थ:चाणूरांध्रनिषूदनः॥88॥ 
सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः। 
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः॥89॥ 
अणु:बृहत कृशः स्थूलो गुणभृन्निर्गुणो महान्। 
अधृतः स्वधृतः स्वास्यः प्राग्वंशो वंशवर्धनः॥90॥
भारभृत्-कथितो योगी योगीशः सर्वकामदः। 
आश्रमः श्रमणः क्षामः सुपर्णो वायुवाहनः॥91॥
धनुर्धरो धनुर्वेदो दंडो दमयिता दमः। 
अपराजितः सर्वसहो नियंता नियमो यमः॥92॥
सत्त्ववान सात्त्विकः सत्यः सत्यधर्मपरायणः। 
अभिप्रायः प्रियार्हो-अर्हः प्रियकृत-प्रीतिवर्धनः॥93॥ 
विहायसगतिर्ज्योतिः सुरुचिर्हुतभुग विभुः।
रविर्विरोचनः सूर्यः सविता रविलोचनः॥94॥
अनंतो हुतभुग्भोक्ता सुखदो नैकजोऽग्रजः। 
अनिर्विण्णः सदामर्षी लोकधिष्ठानमद्भुतः॥95॥ 
सनात्-सनातनतमः कपिलः कपिरव्ययः। 
स्वस्तिदः स्वस्तिकृत स्वस्ति स्वस्तिभुक स्वस्तिदक्षिणः॥96॥ 
अरौद्रः कुंडली चक्री विक्रम्यूर्जितशासनः। 
शब्दातिगः शब्दसहः शिशिरः शर्वरीकरः॥97॥ 
अक्रूरः पेशलो दक्षो दक्षिणः क्षमिणां वरः। 
विद्वत्तमो वीतभयः पुण्यश्रवणकीर्तनः॥98॥ 
उत्तारणो दुष्कृतिहा पुण्यो दुःस्वप्ननाशनः। 
वीरहा रक्षणः संतो जीवनः पर्यवस्थितः॥99॥
अनंतरूपो-अनंतश्री: जितमन्यु: भयापहः। 
चतुरश्रो गंभीरात्मा विदिशो व्यादिशो दिशः॥100॥
अनादिर्भूर्भुवो लक्ष्मी: सुवीरो रुचिरांगदः। 
जननो जनजन्मादि: भीमो भीमपराक्रमः॥101॥ 
आधारनिलयो-धाता पुष्पहासः प्रजागरः। 
ऊर्ध्वगः सत्पथाचारः प्राणदः प्रणवः पणः॥102॥ 
 प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः। 
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः॥103॥ 
भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः। 
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः॥104॥
यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः। 
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च॥105॥
आत्मयोनिः स्वयंजातो सामगायनः। 
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः॥106॥
शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः। 
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः॥107॥ 
शनि देव के 108  नाम :: शनैश्चर, शान्त, सर्वाभीष्टप्रदायिन्श, रण्य, वरेण्य, सर्वेश, सौम्य, सुरवन्द्य, सुरलोकविहारिण्-सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले, सुखासनोपविष्ट-घात लगा के बैठने वाले, सुन्दर, घन, घनरूप, घनाभरणधारिण्-लोहे के आभूषण पहनने वाले, घनसारविलेप-कपूर के साथ अभिषेक करने वाले, खद्योत, मन्द, मन्दचेष्ट, महनीयगुणात्मन्म, र्त्यपावनपद, महेश, छायापुत्र, शर्व, शततूणीरधारिण्च, रस्थिरस्वभाव, अचञ्चल, नीलवर्ण, नित्य, नीलाञ्जननिभ, नीलाम्बरविभूशण, निश्चल, वेद्य, विधिरूप, विरोधाधारभूमी, भेदास्पदस्वभाव, वज्रदेह, वैराग्यद, वीर, वीतरोगभय, विपत्परम्परेश, विश्ववन्द्य, गृध्नवाह, गूढ, कूर्माङ्ग, कुरूपिण्कु, त्सित, गुणाढ्य, गोचर, अविद्यामूलनाश, विद्याविद्यास्वरूपिण्,  आयुष्यकारण, आपदुद्धर्त्र, विष्णुभक्त, वशिन्वि, विधागमवेदिन्, विधिस्तुत्य, वन्द्य, विरूपाक्ष, वरिष्ठ, गरिष्ठ, वज्राङ्कुशधर, वरदाभयहस्त, वामन-बौना, ज्येष्ठापत्नीसमेत,श्रेष्ठ, मितभाषिण्क, ष्टौघनाशकर्त्र, पुष्टिद, स्तुत्य, स्तोत्रगम्य, भक्तिवश्य, भानु, भानुपुत्र, भव्य, पावन, धनुर्मण्डलसंस्था, धनदा-धन के दाता, धनुष्मत्त, नुप्रकाशदेह, तामस, अशेषजनवन्द्य, विशेषफलदायिन्व, शीकृतजनेश, पशूनां पति, खेचर, घननीलाम्बर, काठिन्यमानस, आर्यगणस्तुत्य, नीलच्छत्र, नित्य निर्गुण, गुणात्मन्नि, न्द्य, वन्दनीय, धीर, दिव्यदेह, दीनार्तिहरण, दैन्यनाशकराय, आर्यजनगण्य, क्रूर, क्रूरचेष्ट, कामक्रोधकर, कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण, परिपोषितभक्त, परभीतिहर, भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद, निरामय, शनि।
गणपति के 12 प्रमुख नाम :: सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। 
गणेश जी महाराज के 108 नाम :- ॐ गणनाथाय नमः, ॐ गणाधिपाय नमः, ॐ एकदंष्ट्राय नमः, ॐ लम्बोदराय नमः, ॐ गजवक्त्राय नमः, ॐ मदोदराय नमः, ॐ वक्रतुण्डाय नमः, ॐ दुर्मुखाय नमः, ॐ बुद्धाय नमः, ॐ विघ्नराजाय नमः, ॐ गजाननाय नमः, ॐ भीमाय नमः, ॐ प्रमोदाय नमः, ॐ आनन्दाय नमः, ॐ सुरानन्दाय नमः, ॐ मदोत्कटाय नमः, ॐ हेरम्बाय नमः, ॐ शम्बराय नमः, ॐ शम्भवे नमः, ॐ लम्बकर्णाय नमः, ॐ महाबलाय नमः, ॐ नन्दनाय नमः, ॐ अलम्पटाय नमः, ॐ भीमाय नमः, ॐ मेघनादाय नमः, ॐ गणञ्जयाय नमः, ॐ विनायकाय नमः, ॐ विरूपाक्षाय नमः, ॐ धीराय नमः, ॐ शूराय नमः, ॐ वरप्रदाय नमः, ॐ महागणपतये नमः, ॐ बुद्धिप्रियाय नमः, ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः, ॐ रुद्रप्रियाय नमः, ॐ गणाध्यक्षाय नमः, ॐ उमापुत्राय नमः, ॐ कुमारगुरवे नमः, ॐ धूम्रवर्णाय नमः, ॐ विकटाय नम:, ॐ विघ्ननायकाय नमः, ॐ सुमुखाय नमः, ॐ ईशानपुत्राय नमः, ॐ मूषकवाहनाय नमः, ॐ सिद्धिप्रदाय नमः, ॐ सिद्धिपतये नमः, ॐ सिद्ध्यै नमः, ॐ सिद्धिविनायकाय नमः, ॐ विघ्नाय नमः, ॐ तुङ्गभुजाय नमः, ॐ सिंहवाहनाय नमः, ॐ मोहिनीप्रियाय नमः, ॐ कटिंकटाय नमः, ॐ राजपुत्राय नमः, ॐ शकलाय नमः, ॐ सम्मिताय नमः, ॐ अमिताय नमः, ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः, ॐ दुर्जयाय नमः, ॐ धूर्जयाय नमः, ॐ अजयाय नमः, ॐ भूपतये नमः, ॐ भुवनेशाय नमः, ॐ भूतानां पतये नमः, ॐ अव्ययाय नमः, ॐ विश्वकर्त्रे नमः, ॐ विश्वमुखाय नमः, ॐ विश्वरूपाय नमः, ॐ निधये नमः, ॐ घृणये नमः, ॐ कवये नमः, ॐ कवीनामृषभाय नमः, ॐ ब्रह्मण्याय नमः, ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः, ॐ ज्येष्ठराजाय नमः, ॐ निधिपतये नमः, ॐ सूर्यमण्डलमध्यगाय नमः, ॐ कराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः, ॐ निधिप्रियपतिप्रियाय नमः, ॐ हिरण्मयपुरान्तस्थाय नमः, ॐ पूषदन्तभृते नमः, ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः, ॐ मुक्तिदाय नमः, ॐ कुलपालकाय नमः, ॐ किरीटिने नमः, ॐ कुण्डलिने नमः, ॐ सद्योजाताय नमः, ॐ स्वर्णभुजाय नमः, ॐ मेखलिन नमः, ॐ दुर्निमित्तहृते नमः, ॐ दुस्स्वप्नहृते नमः, ॐ प्रहसनाय नमः, ॐ गुणिने नमः, ॐ हारिणे नमः, ॐ वनमालिने नमः, ॐ मनोमयाय नमः, ॐ वैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः, ॐ पादाहत्याजितक्षितये नमः, ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः, ॐ सुरूपाय नमः, ॐ सर्वनेत्राधिवासाय नमः, ॐ वीरासनाश्रयाय नमः, ॐ पीताम्बराय नमः, ॐ खड्गधराय नमः, ॐ खण्डेन्दुकृतशेखराय नमः, ॐ चित्राङ्कश्यामदशनाय नमः, ॐ फालचन्द्राय नमः, ॐ चतुर्भुजाय नमः
अदिति के पुत्र :: धाता, मित्र, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु 12 आदित्य हैं। धर, ध्रुव, सोम, अह:, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभास ये 8 वसु हैं। हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी, रैवत, मृगव्याध, शर्व और कपाली, ये 11 रूद्र हैं। भगवान् सूर्य के पुत्र 2 अश्वनीकुमार देवताओं के वैद्य-चिकित्सक हैं। सत्त्व ज्योति, आदित्य, सत्य ज्योति, तिर्यग् ज्योति, सज्योति, ज्योतिष्मान्, हरित, ऋतजित्, सत्य जित्, सुषेण, सेनजित्, सत्यमित्र, अभिमित्र, हरिमित्र, कृत, सत्य, ध्रुव, धर्ता, विधर्ता, विधारय, ध्वांत, धुनि, उग्र, भीम, अभियु, साक्षिप, ईदृक्, अन्यादृक्, यादृक्, प्रतिकृत, ऋक्, समिति, संरम्भ, ईदृक्ष, पुरुष, अन्यादृक्ष, चेतस, समिता, समिदृक्ष, प्रतिदृक्ष, मरुति, सरत, देव, दिश, यजु:, अनुदृक्, साम, मानुष और विश्; ये उनचास मरुत हैं। इन सबको तू मेरे विराट रुप में देख। बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये तैंतीस कोटि देवताओं में प्रमुख हैं।
ADITY :: There are 12 Adity-Sun. When they come together around the earth, all life forms perish and the earth start looking like the shell of a tortoise. 
(1). Their names were :- (1.1). Vivaswan, (1.2). Aryma, (1.3). Poosha, (1.4). Twashta, (1.5). Savita, (1.6). Bhag, (1.7). Dhata, (1.8). Vidhata, (1.9). Varun, (1.10). Mitr, (1.11). Indr and (1.12). Tri Vikram (Bhagwan Vaman, Incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu).
(2.1). Vivaswan-Sury, (2.2). Aryma, (2.3). Poosha, (2.4). Twashta, (2.5). Savita, (2.6). Bhag, (2.7). Dhata, (2.8). Vishnu, (2.9). Anshuman, (2.10). Mitr, (2.11). Indr and (2.12). Vaman. [Vishnu Puran, 1.9] 
(3). They were the Tushit Devta in Chakshush Man Vantar and they were born to Aditi as 12 Adity in Vaevaswat Man Vantar. Their names were :- (3.1). Indr, (3.2). Dhata, (3.3). Parjany, (3.4). Poosha, (3.5). Twashta, (3.6). Aryma, (3.7). Bhag, (3.8). Vivaswan, (3.9). Anshu, (3.10). Vishnu, (3.11). Varun and (3.12). Mitr. 
(4.1). Varun, (4.2). Sury, (4.3). Sahstranshu, (4.4). Dhata, (4.5). Tapan, (4.6). Savita (4.7). Gabhastik, (4.8). Ravi, (4.9). Parjany, (4.10). Twasht, (4.11). Mitr and (4.12). Vishnu. [Agni Puran, P 103]
(5). They ere born from Aditi and thus called Adity. [Bhavishy Puran, 1.14]
(6). 12 Sons of Mahrishi Kashyap (From whom the life began through sexual inter course as per the desire of Bhagwan Brahma) and Aditi (Daughter of Daksh Praja Pati) [Bhagwat Puran, 6.3]
AJNEEDH :: Son of Priy Vrat, Grandson of Manu. His 9 sons :- Nabhi, Kim Purush, Hari Varsh, Ilavrat, Ramy. Hirany Van, Kuru, Bhadr Ashw and Ketumal. Nabhi got Him Varsh which is called Bharat Varsh today.
AKOOTI :: Daughter of Swayambhuv Manu and Shat Rupa. Married to Ruchi Praja Pati. Yagy only son & only daughter :- Dakshina. She had two brothers :- Priy Vrat and Uttan Pad and two sisters :- Prasooti, married to Daksh Praja Pati and Dev Hooti married to Kardam Rishi.
Manu married Akooti by Putrika Dharm, she gave her son to her father. Yagy was the incarnation of Vishnu, and Dakshina was the incarnation of Lakshmi. Dakshina expressed the desire to marry Yagy so she was married to Yagy and had 12 sons from him.
ANART :: Son of Sharyati who was the Son of Vaevaswat Manu. Raevat was his only son.
Raevat had 100 sons, among them Kakudmi was the eldest. His daughter Rewati was married to Bal Ram Ji-elder brother of Bhagwan Shri Krashn and an incarnation of Bhagwan Shesh Nag. [Bhagwat Puran 9.2]
ARUNI :: 1 of the 3 Main Disciples of Rishi Dhaumy. Dhaumy's other two disciples :- Ved and Up Manyu.
UDDALAK :: Two sons named Nachiketa and Shwet Ketu whose name appears in three principal Upnishad :- Brahadaranyak, Chhandogy, Kath and Kaushitake Upnishad.
ASTEEK RISHI :: Son of Jaratkaru and Jaratkaru was Vasuki's sister. He stopped Janmejay's Sarp Yagy and thus saved many snakes to be burned in the Yagy. He was brought up in snake's abode and educated by Maharshi Chayvan.
AYU :: One of the 6 Sons of Pururava. He was married to daughter of Swar Bhanu. He had 4 sons namely :- Nahush, Vraddh Sharma, Rajingay and Anena. [Maha Bharat, Adi Parv, 75]
AYUSHMAN :: Daity-demon-giant, 1 of the 4 sons of Prahlad Ji, Grandson of Hirany Kashyap. His brothers were Shibi, Vashkali and Virochan. Raja Bahu Bali was Virochan's son. Prahlad Ji and Bahu Bali are present in Sutal Lo which is  more beautiful and comfortable than heaven.
ABHIMANYU :: He was the virtuous son of Arjun and Subhadra Bhagwan Shri Krashn's sister. Formerly he was the son Moon in Chandr Lok. He was married to Uttra daughter of Virat's daughter &prince Uttar's sister. Pareekshit was his son protected by Bhagwan Shri Krashn in the womb from Brahmastr targeted by Ashwatthama-Guru Draunachary's son. He is called Saubhadr as well being the son of Subhadra. His Sarthi's name was Sumitr. He killed Asmak's son; Sushen, Drag Lochan and Kund Vedh,  Shaly's brother; one of Karn's brother from Radha-chariot driver's wife; Ruk Marath-son of Shaly and Lakshman-son of Duryodhan, on the 13th day of Maha Bharat war. He was killed cruelly by seven warriors on 13th day of Maha Bharat war. At the time of his death, his wife was pregnant. She gave birth to Pareekshit. He succeeded Yudhishtar, when Pandav's went to their heavenly abode.
ADHARM :: He was married to  Hinsa and had 2 children one son called Amrat and the daughter named Nikrati. Amrat and Nikrati married to each other and had 2 sons. [Agni Puran 8] 
ADHI RATH :: He was known as Soot, Son of Saty Karm the Charioteer of king Shantnu & was married to Radha. His another name was Vikartan. He found Sury Putr Karn flowing in Ganga water is a basket and brought home home to be nourished by his wife. Later they had one son of their own.
He was in the lineage of King Yayati, Anu, Rompad, Saty Karm. [Vishnu Puran 4.13; Bhagwat Puran, 9.14]
Once he was taking bath in Ganga River he heard a child's cry. He looked around and found that the sound was coming from a box. He got it and found a newborn baby boy in it. From his clothes and body, he looked a Divine boy and from a royal family. He brought him home and brought up that child as his own. He named him Radhey. Later that boy was known as Karn and Vaikartan (because of his father's name) and Radhey (because of his mother's name.
Adhi Rath resigned from his job when Radhey grew up enough to get education. Sanjay replaced him.
Drone, (156) mentions Vrakrath, as the name of Karn's brother. [Maha Bharat 6.23.14.4]
Some other names are also mentioned in Maha Bharat as Karn's brothers, but Bhagwat Puran, 9.14 does not mention any.
ADITI :: Daughter of Daksh Praja Pati and Virini. She was married to Maharshi Kashyap (Brahma's one of the 10 Manas Putr).
AUGUST-AGASTY :: Maharshi, Son of Mitr and Urvashi. He was married to Lopamudra-daughter of King Malay Dhwaj who was an incarnation of Puranjan of Vidarbh Desh. Dradhchyut was born as their child and Dradhchyut had a son called  Idhmvah.[Bhagwat Puran, 4.7]
Mitra and Varun saw Urvashi which led to ejaculation of their semen-sperms which were kept it in a pitcher. Munivar Agasty and Vashishth Ji (reincarnation of Vashishth Rishi, son of Brahma Ji) were born from that only. Being born from a Kumbh-pitcher, both are known as Kumbhaj as well. He was a descendent of Maharshi Pulasty. He ate Vatapi Rakshas-demon. He dried ocean to help demigods trace the demons-Rakshas, He asked Vindhyachal Parvat to remain in prostration till he returned to shatter his pride.
Bhagwan Ram visited Agasty's Ashram, who was a descendant of Mahrishi Agasty. says that Agasty had a brother named Agnijivh. [Angiras Agni Puran 3]
भगवान् शिव के आठ नाम :: हे शिव! विद एवं देवगण आपकी इन आठ नामों से वंदना करते हैं। भव, सर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम, एवं इशान। हे शम्भू मैं भी आपकी इन नामों से स्तुति करता हूं।
नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमः
नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः।
नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमः
नमः सर्वस्मै ते तदिदमतिसर्वाय च नमः॥[शिव महिम्न स्तोत्र 29]
अर्जुन के प्रमुख 12 नाम ::  
धनञ्जय :- राजसूय यज्ञ के समय बहुत-से राजाओं को जीतने के कारण अर्जुन का यह नाम पड़ा। 
कपिध्वज :- महावीर हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहते थे, अतः इनका नाम कपिध्वज पड़ा। 
गुडाकेश :- निद्रा को गुडा कहते हैं इसीलिये अर्जुन द्वारा निद्रा को जीत लिये जाने से उनका यह नाम पड़ा था।
पार्थ :- अर्जुन की माता कुंती का दूसरा नाम 'पृथा' था, इसीलिए वे पार्थ कहलाये। 
परन्तप :- जो अपने शत्रुओं को ताप पहुँचाने वाला हो, उसे परन्तप कहते हैं। 
कौन्तेय :- कुंती के नाम पर ही अर्जुन कौन्तेय कहे जाते हैं। 
पुरुषर्षभ :- 'ऋषभ' श्रेष्ठता का वाचक है। पुरुषों में जो श्रेष्ठ हो, उसे पुरुषर्षभ कहते हैं।
भारत :- भरतवंश में जन्म लेने के कारण ही अर्जुन का भारत नाम हुआ। 
किरीटी :- प्राचीन काल में दानवों पर विजय प्राप्त करने पर इन्द्र ने इन्हें किरीट (मुकुट) पहनाया था, इसीलिए अर्जुन किरीटी कहे गये। 
महाबाहो :- आजानुबाहु होने के कारण अर्जुन महाबाहो कहलाये। 
फाल्गुन :- फाल्गुन का महीना एवं फल्गुनः इन्द्र का नामान्तर भी है। अर्जुन इन्द्र के पुत्र हैं। अतः उन्हें फाल्गुन भी कहा जाता है। 
सव्यसाची :- दोनों हाथों से वाण चलाने वाला अर्जुन।
अन्य गौंण नाम :: जिष्णु, श्वेतवाहन, कीर्ति, गाण्डीवधारी,विजया, बृहन्नला, विभत्सु। 
महाभारत के प्रमुख पात्र :: कुरु, अचल, अधिरथ, अभिमन्यु, अम्बा, अम्बालिका,अम्बिका, उलूक, अर्जुन, अश्वत्थामा, अश्विनीकुमार, इरावत, उत्तरा, उलूपी, एकलव्य, कंक, सुमुख, कर्ण, कीचक, महोदर, कुन्ती, कृपाचार्य, कृष्ण, कौरव, खाटूश्यामजी, यज्ञसेन, गांधारी, ग्रन्थिक, घटोत्कच, सेनापति, सुवाक, षंढ, वृक्षसेन, उपदेव, देववान, विकर्ण, श्रुतर्वा, विजया, सुहोत्र, श्रुतान्त, देविका, दण्डधार, पुरूमित्र, चित्ररथ गंधर्व, हविश्रवा, सत्यवती, चित्रांगदा, क्षेमशर्मा, विचित्रवीर्य, जनमेजय, जयद्रथ, जरासंध, शंख, तन्तिपाल, अनूदय, धर्नुग्रह, दुर्योधन, भगदत्त, दु:शला, दुशासन, क्षत्रवर्मा, द्रुपद, द्रोणाचार्य, भीमसर, द्रौपदी, दुष्यंत, कुंतिभोज, धृतराष्ट्र, मद्रसुता, धृष्टद्युम्न, नकुल, परीक्षित, पांडव, वृकोदर, पाण्डु, सत्यधमा, सोमकीर्ति, बकासुर, सुदेष्णा, बर्बरीक, बल्लव, सुबाहु, सुबल, चित्रांगद, मय दानव, माद्री, बृहन्नला, भरत, पुरोचन, भीम, भीष्म, कपिकेतु, शतायु, यक्ष, युधिष्ठिर, क्राथ, बलन्धरा, लोपामुद्रा, दुःसह, सुदर्शन, भूरि, दुराधर, विदुर, विराट, व्यास, शकुनि, जलसंघ, शम, श्रुतसेन, शल्य, युगन्धर, पुरुजित, सुशर्मा, शान्तनु, शाल्व, सांब, किंदम, संवरण, सुदर्शन, विकर्ण, शिखंडी, दुराधन, शिशुपाल, विकट, संजय, सहदेव, श्रुतकर्मा, सात्यकि, संग्रामजित, अनुयायी, क्षत्रंजय, सुभद्रा, कबची, दृढ़संघ, सैरन्ध्री, प्रभास वसु, दृढहस्थ, जलसन्ध, हिडिम्बा, घटूका, हिडिम्ब, देवव्रत, गंगा, युधिष्ठिर, चार्वाक, रेणुका, पृथा, शकुंतला, अनुयायी, वभ्रुवाहन, दुःशला, दुर्जय, गंगासुत, बाह्लीक, किमार, युयुत्सु, धौम्य, उत्तर, कृतवर्मा, उग्र, अंजनपर्वा, शंख, भूरिश्रवा, अंगारपर्ण, अंगराज, सुहस्‍त, अश्वकेतु, युधामन्यु, अकम्पन, अकृतव्रण, अक्रोधन, ओज, सोमदत्त, कणिक, कण्व, क्षेमदर्शी, क्षेमक, जैत्र, कनकध्वज, कनकांगद, कनकायु, अच्युतायु, स्थूलशिरा, कपिध्वज, क्षेममूर्ति, वृषसेन, स्यूमरश्मि, स्वस्ति, कम्पन, स्वस्त्यात्रेय, स्त्रज, वृद्धक्षत्र जयद्रथ पिता, वृद्धक्षत्र, दण्डी, गंगादत्त, करकर्ष, शतचन्द्र, करम्भि, वृषभ, कमेरति, गन्धकाली, कवची, अनाधृष्य,गन्धवती, वैकर्त्तन, निरमित्र, सुदर्शन, नियतायु, कक्षसेन, गवाक्ष, सत्यधृति, अनुयायी, गवेषण, अनूदर, वैराट, वैशम्पायन, गर्ग, गांगेय, धृष्टकेतु, धृष्टकेतु, इन्द्रद्युम्न, चेकितान, लक्ष्मण, प्रतिविन्ध्य, सत्यधृति, लक्ष्मणा, भानुमती, उपकीचक, व्याघ्रदत्त, अमितौजा, व्याघ्रदत्त, गुड़ाकेश, व्यूढोरु, भीमसेन, श्रुतकीर्ति, अयोबाहु, श्रुतकीर्ति, बहाशी, अरिष्टनेमि, जरासन्ध, शतानीक, इला, तपती, वसुषेण, चारु, दुर्धर्ष, दुष्प्रधर्षण, दुर्मर्षण, चंपेश, दुर्मुख,दुष्कर्ण, दुर्मद, दुर्विषह, दुर्विमोचन, दृढ़वर्मा, दृढ़क्षत्र, दृढ़संध, दुष्पराजय, दृढ़हस्त, अलोलुप, दीर्घरोमा, दीर्घबाहु, दृढ़रथाश्रय, विंद, विवित्सु, वृंदारक, विशालाक्ष, सत्वान, सुलोचन, सुनाभ, सुवर्मा, सुषेण, सोमकीर्त्ति, सत्यसंध, मौरवी, सद:सुवाक, सेनानी, सुहस्त, सुवर्चा, सुजात, भीमबल, शरासन, शल, सम, सह, चित्राक्ष, चित्रबाण, चित्रवर्मा, चित्रायुध, चित्र, उपचित्र, वृंदारक, उपनंद, उग्रश्रवा, उग्रसेन, ऊर्णनाभ, चित्रांग, नंद, चित्रसेन, महाबाहु, चित्रकुण्डल, भीमवेग, बलाकी, बलवर्धन, कुण्डधर, कुण्डशायी, कुण्डी, कुण्डभेदी, कुण्डाशी, पाशी, श्रुतसेन, जरासंघ, अपराजित, वीरबाहु, विरजा, प्रमथ, क्रथन, रथस्था, चित्रबाहु, वातवेग, चित्ररथ, आदित्यकेतु, विरावी, रौद्रकर्मा, प्रमाथी, चित्रवर्मा, अभय, दु:शल, अनुविंद, चित्रांगद,  चित्रांगद, जय, जयत्सेन, जयत्सेन, जयद्वल, चित्राज्ञ, सत्यव्रत, सत्यसेन, जयन्त, भीष्म, सुचारु, सुचित्र, अर्कनंदन, कितव, बाहुशाली, शैव्य (राजा), सूतपुत्र, सूपकर्ता, उग्रायुध, शत्रुंजय, दण्डधार, राधापति सूतपुत्र, प्रतिबिम्ब, याज्ञसेनी। भगवान श्रीकृष्ण का कई नामों का जाप किया जाता है, जिनमें से 108 नाम यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं। 
भगवान्  श्री कृष्ण के 108 नाम ::
 (1). अचला :- भगवान।
(2). अच्युत :- अचूक प्रभु या जिसने कभी भूल न की हो।
(3). अद्भुतह :- अद्भुत प्रभु।
(4). आदिदेव :- देवताओं के स्वामी।
(5). अदित्या :- देवी अदिति के पुत्र।
(6). अजन्मा :- जिनकी शक्ति असीम और अनंत हो।
(7). अजया :- जीवन और मृत्यु के विजेता।
(8). अक्षरा :- अविनाशी प्रभु। 
(9). अमृत :- अमृत जैसा स्वरूप वाले।
(10). अनादिह :- सर्वप्रथम हैं जो।
(11). आनंद सागर :- कृपा करने वाले।
(12). अनंता :- अंतहीन देव।
(13). अनंतजीत :- हमेशा विजयी होने वाले।
(14)अनया :- जिनका कोई स्वामी न हो।
(15). अनिरुद्धा :- जिनका अवरोध न किया जा सके।
(16). अपराजित :- जिन्हें हराया न जा सके।
(17). अव्युक्ता :- माणभ की तरह स्पष्ट।
(18). बाल गोपाल :- भगवान कृष्ण का बाल रूप।
(19). बलि :- सर्वशक्तिमान।
(20). चतुर्भुज :- चार भुजाओं वाले प्रभु।
(21). दानवेंद्रो :- वरदान देने वाले।
(22). दयालु :- करुणा के भंडार।
(23). दयानिधि :- सब पर दया करने वाले।
(24). देवाधिदेव :- देवों के देव।
(25). देवकीनंदन :- देवकी के लाल (पुत्र)।
(26). देवेश :- ईश्वरों के भी ईश्वर।
(27). धर्माध्यक्ष :- धर्म के स्वामी।
(28). द्वारकाधीश :- द्वारका के अधिपति।
(29). गोपाल :- ग्वालों के साथ खेलने वाले।
(30). गोपालप्रिया :- ग्वालों के प्रिय।
(31). गोविंदा :- गाय, प्रकृति, भूमि को चाहने वाले।
(32). ज्ञानेश्वर :- ज्ञान के भगवान।
(33). हरि :- प्रकृति के देवता।
(34). हिरण्यगर्भा :- सबसे शक्तिशाली प्रजापति।
(35). ऋषिकेश :- सभी इन्द्रियों के दाता।
(36). जगद्गुरु :- ब्रह्मांड के गुरु। 
(37). जगदीशा :- सभी के रक्षक।
(38). जगन्नाथ :- ब्रह्मांड के ईश्वर।
(39). जनार्धना :- सभी को वरदान देने वाले।
(40). जयंतह :- सभी दुश्मनों को पराजित करने वाले।
(41). ज्योतिरादित्या :- जिनमें सूर्य की चमक है।
(42). कमलनाथ :- देवी लक्ष्मी के प्रभु। 
(43). कमलनयन :- जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
(44). कामसांतक :- कंस का वध करने वाले।
(45). कंजलोचन :- जिनके कमल के समान नेत्र हैं।
(46). केशव :- लंबे, काले उलझा ताले जिसने। 
(47). कृष्ण :- सांवले रंग वाले।
(48). लक्ष्मीकांत :- देवी लक्ष्मी के देवता। 
(49). लोकाध्यक्ष :- तीनों लोक के स्वामी।
(50). मदन :- प्रेम के प्रतीक।
(51). माधव : -ज्ञान के भंडार।
(52). मधुसूदन :- मधु-दानवों का वध करने वाले।
(53). महेन्द्र :- इन्द्र के स्वामी।
(54). मनमोहन :- सबका मन मोह लेने वाले।
(55). मनोहर :- बहुत ही सुंदर रूप-रंग वाले प्रभु।
(56). मयूर :- मुकुट पर मोरपंख धारण करने वाले भगवान।
(57). मोहन :- सभी को आकर्षित करने वाले।
(58). मुरली :- बांसुरी बजाने वाले प्रभु।
(59). मुरलीधर :- मुरली धारण करने वाले।
(60). मुरली मनोहर :- मुरली बजाकर मोहने वाले।
(61). नंदगोपाल :- नंद बाबा के पुत्र।
(62). नारायन :- सबको शरण में लेने वाले।
(63). निरंजन :- सर्वोत्तम।
(64). निर्गुण :- जिनमें कोई अवगुण नहीं।
(65). पद्महस्ता :- जिनके कमल की तरह हाथ हैं।
(66). पद्मनाभ :- जिनकी कमल के आकार की नाभि हो।
(67). परब्रह्मन :- परम सत्य।
(68). परमात्मा :- सभी प्राणियों के प्रभु।
(69). परम पुरुष :- श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले।
(70). पार्थसारथी :- अर्जुन के सारथी।
(71). प्रजापति :- सभी प्राणियों के नाथ।
(72). पुण्य :- निर्मल व्यक्तित्व।
(73). पुरुषोत्तम :- उत्तम पुरुष।
(74). रविलोचन :- सूर्य जिनका नेत्र है।
(75). सहस्राकाश :- हजार आंख वाले प्रभु।
 (76). सहस्रजीत :- हजारों को जीतने वाले।
(77). सहस्रपात :- जिनके हजारों पैर हों।
(78). साक्षी :- समस्त देवों के गवाह।
(79). सनातन :- जिनका कभी अंत न हो।
(80). सर्वजन :- सब कुछ जानने वाले।
(81). सर्वपालक :- सभी का पालन करने वाले।
(82). सर्वेश्वर :- समस्त देवों से ऊंचे।
(83). सत्य वचन :- सत्य कहने वाले।
(84). सत्यव्त :- श्रेष्ठ व्यक्तित्व वाले देव।
(85). शंतह :- शांत भाव वाले।
(86). श्रेष्ठ :- महान।
(87). श्रीकांत :- अद्भुत सौंदर्य के स्वामी।
(88). श्याम :- जिनका रंग सांवला हो।
(89). श्यामसुंदर :- सांवले रंग में भी सुंदर दिखने वाले।
(90). सुदर्शन :- रूपवान।
(91). सुमेध :- सर्वज्ञानी।
(92). सुरेशम :- सभी जीव-जंतुओं के देव।
(93). स्वर्गपति :- स्वर्ग के राजा।
(94). त्रिविक्रमा :- तीनों लोकों के विजेता।
(95). उपेन्द्र :- इन्द्र के भाई।
(96). वैकुंठनाथ :- स्वर्ग के रहने वाले।
(97). वर्धमानह :- जिनका कोई आकार न हो।
(98). वासुदेव :- सभी जगह विद्यमान रहने वाले।
(99). विष्णु :- भगवान विष्णु के स्वरूप।
(100). विश्वदक्शिनह :- निपुण और कुशल।
(101). विश्वकर्मा :- ब्रह्मांड के निर्माता।
(102). विश्वमूर्ति :- पूरे ब्रह्मांड का रूप।
(103). विश्वरूपा :- ब्रह्मांड हित के लिए रूप धारण करने वाले।
(104). विश्वात्मा :- ब्रह्मांड की आत्मा।
(105). वृषपर्व :- धर्म के भगवान।
(106). यदवेंद्रा :- यादव वंश के मुखिया।
(107). योगि :- प्रमुख गुरु।
(108). योगिनाम्पति :- योगियों के स्वामी।
प्रमुख ऋषि मुनियों के नाम :: ऋषि, ब्रह्मर्षिशीलवान, नारद, प्रमतक, पर्वत, निमि, मरुत्त, बृहत्कीर्ति, पराशर, शान्ति (ऋषि), अर्ष्टिषेण, बृहन्मन्त्र, बृहह्ह्म, कृषीवल, कणाद, शतातप, मधुच्छन्दा, कात्यायन, विभाण्ड, भास्करि, पूरण, धौम्र, माण्डव्य, इध्मवाह, सुमति, आसुरी, कृष्‍णात्रेय, हरिश्‍मश्रु, पौलाम, विजय, क्षीरपाणि, माठर, ग्रिवेश्य, बृहद्भास, पर्णाद, कृतश्रम, दुर्वासा, सुवाक, कालभीरु, शौनक, गौतम, शिलवृत्ति, विकर्ण, श्रुतर्वा, सिद्ध, सुहोत्र, बक, दामोष्णीष, त्रिषवण, अशनि, सुव्रत, मधुच्छंदा, वेदव्यास, शुकदेव, धौम्य, ऋष्यश्रृंग, जह्नु, विधाता, वसिष्ठ, क्रोधन तंगण, शाणिडल्य, सुतपा, नारायण, बभ्रुमाली, सनातन, श्वेत (ऋषि), मृकंड, गालव, परशुराम, महाशिरा, किंदम, आंगिरस, रोमहर्षण, शालिक, अगस्त्य, तम, जीमूत, भार्गव, तनु, जितशत्रु, वेणुजंघ, वृषामित्र, कण्व, बलिवाक, स्थविर, शबलाक्ष, मुमुचु, दमन, जातूकर्ण, जाबालि, मंकी, कठ, ताण्ड्य, शून्यपाल, कौशिक, दीर्घताप, वेदगाथ, वेद ऋषि, यवक्रीत, मार्कण्डेय, जंघाबन्धु, जमदग्नि, ताण्ड्य, सारस्वत, स्थूलशिरा, वृषाकपि, मुंज, सुबालक, ओशिज, कौणकुत्स्य, दर्भी, कुणिबाहु, वैतण्‍डी, मणि, गौरशिरा मुनि, बृहस्पति, हृद्य, त्रिवर्चा, सुमुख, दृढव्य, उशिज, तृणसोमांगिरा, काक्षीवन, तृणबिन्दु, भूति, अरालि, गर्गाचार्य, तुम्बुरु, तित्तिर, आलम्ब, कुक्कुर, त्वष्टा, मनीषी, वसु, श्रुतश्रवा, स्यूमरश्मि, वत्स, स्वस्ति, स्वस्त्यात्रेय, चंडभार्गाव, अणीमाण्डव्य, त्रैबलि, गार्गी, वायुभक्ष, अथर्वा, मन्दपाल, समंगा, अनंग, जैगीषव्य, कर्णश्रवा, गरिष्ठ, गर्ग, दधीचि, पारिजातक, मुनि, वदान्य, लोमहर्षण, मौद्गल्य, समसौरभ, महाजानु, पुलह, तैत्तिलि, आपिशलि, गौतम, औशिज, बालधि, कक्षसेन, कपिल, मुनीन्द्र, मुनि, अंगिरा, सहदेव, बृहदब्रह्मा, कश्यप, संदीपन, अजीगर्त, स्वयंभुव मनु, वैशम्पायन, वराह, अत्रि, गौतम, दत्तात्रेय, वायुमण्डल, सुसामा, मेधातिथि, घोषा, असित, शौनक, मेरुसावर्णि, अष्टावक्र, मरीचि, सुद्युम्न, वाल्मीकि, शंखमेखल, विश्वामित्र,  विशाख, वायुवेग, उग्रश्रवा, कर्दम, मौद्गल्य, विभु, मुनि, वायुबल, वभ्रुमाली, हरिबभ्रु, यायावर, काक्षीवान, वायुज्वाल, अपान्तरतमा, अपोद, अप्सुहोम्य, मतंग, अरुन्धती, हस्तिकश्यप, वायुचक्र, कामन्दक, उग्रतप, कालकवृक्षीय, शुक्राचार्य, देवल, मित्रावरुण, उद्दालक, शालिहोत्र, विभावसु, च्यवन, क्रतु, वायुरेता, मार्गमर्षि, भृगु, लोमश ऋषि, यायावर, अरिष्टनेमि, गौरमुख, सर्पिर्माली, शुकदेव, दाल्भ्य, भरद्वाज, रैभ्य, गृत्समद, अंग, कहोल, मंकणक मुनि, वायुमण्डल, विपुल, दीर्घतमा, आरुणि, उत्तंक, घटनाजुक, भालुकि, श्रुतश्रवा, गौरशिरा, कालघट, प्रणक ऋषि, घटजानुक, वामदेव, घोर, आत्रेय, चक्रधनु, वात्स्य, चण्डकौशिक, उतथ्य, विद्युत्प्रभ, मैत्रेय, अर्वावसु, हारीत, विष्वक्सेन, याज्ञवल्क्य, वायुहा, जैमिनि, तार्क्ष्य, चर्चीक, स्थूलकेश, शमीक, कृश ऋषि,  उपगहन, कौत्स, मौंजायन, कौण्डिन्य, कौणिकुत्स्य, कौधिक, कोपवेग, विश्रवा, शरद्वान, शंख ऋषि, कृतचेता, मंकण, कृतकाम, सौभरि, हिरण्यहस्त, ऋषभ ऋषि, अरुण ऋषि, कुण्ड, कुण्डजठर, कुणि, अश्वशिरा ऋषि, पिंगल ऋषि, सौति, कृतवाक, अलर्क ऋषि, कृषीबल, असित, स्थूणकर्ण, कोहल, ऋचीक ऋषि, कृश, कोहल, एकत, ऋषिक, कोहल, ऋतेयु, प्रश्नि ऋषि, पवित्रपाणि, पाराशर्य, पृथुश्रवा ऋषि, पैलगग, काश्य ऋषि, काश्यप, सत्य, सुपर्ण, प्रतीची, सत्यपाल, जरत्कारु ऋषि, कहोड़, ऊर्ध्ववाहु, ऊर्जयोनि, उषंगु, सनत्सुजात, भाण्डायनि, बृहत, सर्पमाली, कालाप, भार्गव, बर्हिषद, प्रमुचु, सहस्त्रपाद, सांकृति, त्रित, उपमन्यु, सारिक, सावर्ण, उन्मुच, उपयाज, याज, उद्दालकि, आसुरि, उदापेक्षी, उदर शाण्डिल्य, आत्रेय, उत्तंक, सावर्णि, सिंधुद्वीप, बृहन्मना, इन्द्रोत, बृहज्ज्योति, उतथ्य, शिखावान, ईरि, सिनीवाक, काम, सुजानु, सुधन्वा, सिकत, आस्तीक, आथवर्ण, आद्य कठ, आपस्तम्ब, इन्द्रद्युम्न, सुमन्तु, सुनीथ, सुरकृत, सुप्रतीक, अश्मा, अर्ण, शमठ, शाकल्य, अष्टम मार्तण्ड, श्येन, सुभद्र, श्रृंगी, बालखिल्य, बलि, सुरोचि, सुवर्णशिरा, शरभ, इध्मवाह, आश्राव्य, आश्वलायन, आसुरायणि, वैश्वानर, तार्क्ष्य, देवरात, इन्द्रद्युम्न, देवव्रत, यम, धनुषाक्ष, होत्रवान, देवहव्य, देवमत, देवस्थान, देवहोत्र, दृढ़व्य, दृढ़ेयु, जंगारि, शक्ति, गार्दभि, राम, हिरण्यमय, अरणि, तपस्वी, करथ, शाकटायन, कणाद, शिलालि, प्रस्कन्न, अघमर्षण,  पाणिनी (ऋषि), दक्ष, शुक्र, नर, सोमश्रवा, वसुदान (राजर्षि), सूत।
Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)