Friday, February 24, 2017

शान्ति PEACE, SOLACE TRANQUILLITY, SANTOSH, CONTENTMENT-SATURATION संतोष, सन्तुष्टि, तृप्ति

SANTOSH-CONTENTMENT
संतोष, सन्तुष्टि, तृप्ति
(शांति, satisfaction, peace, solace, tranquillity)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com palmistrycncyclopedia.blgspot.com
santoshvedshakti.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
परन्तु जो मनुष्य आत्मा (अपने आप) में ही रमण करने वाला और आत्मा में ही तृप्त तथा आत्मा (अपने आप) में ही सन्तुष्ट है, उसके लिए कोई भी कर्तव्य नहीं है।[श्रीमद्भगवद्गीता कर्म योग 3.17] CONTENMENT संतोषी, तृप्ति 
One who is content (self centred, satisfied, rejoices) in him self, nothing is left to be done.
अपने कर्तव्य कर्म में लीन मनुष्य के द्वारा सिद्धि सहज ही प्राप्त कर ली जाती है। रति और प्रीति (काम वासनाएँ) मनुष्य में सदा नहीं रहतीं। ये न तो कभी पूर्ण होती हैं और न ही कभी निरंतर बनी रहती हैं। इनकी तृप्ति-संतुष्टि सदा के लिए नहीं होती। आसक्ति, कामना, अपूर्ण इच्छाएँ दुःख का मूल हैं। कर्म योगी की प्रीति, रति, तृप्ति और संतुष्टि में कभी कमी नहीं आती (काम देव की दो पत्नियाँ हैं, प्रीति और रति)। उसका परम उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है, चाहे मार्ग कोई भी क्यों न हो :- कर्म, ज्ञान या भक्ति। इस उद्देश्य की प्राप्ति के उपरान्त बचा ही क्या?! कर्म योगी निस्वार्थ भाव से संसार की सेवा करता है। जैसे गँगा जल से माँ गँगा का पूजन किया जाता है, वैसे ही प्रकृति-संसार से प्राप्त शरीर, मन, इन्द्रियों, बुद्धि और अहम् को संसार की सेवा में लगा देने से चिन्मय स्वरूप ही शेष रह जाता है अर्थात उसके लिए कोई भी कर्तव्य शेष नहीं है।
One who is devoted to his duties-work, achieves contentment-satisfaction soon. Desire for Rati-sex and Preeti-love do not remain for ever. (Rati and Preeti are the two wives of Kam Dev-deity of passions, sex & love). Either he becomes incompetent or bored (disinterested, even disheartened) & reject it forever. These two activities are not for ever. In fact saturation is very-very rare. Attachment, unfulfilled desires, always lead to frustration, pain, sorrow, grief. The Karm Yogi never face these problems of frustration (pain, sorrow, grief). The target-aim of the Karm Yogi is Assimilation in God whatever may the way (route, method, means) be :- Karm, Gyan-enlightenment or Bhakti Yog. If the Ultimate is realised then, what is left to be attained?! Karm Yogi perform his duties without motive-selfishness. The way-manner in which Ganga Jal is used to pray-worship Maa Ganga, the same way the dutifulness-dedication in serving the society-world by making use of the limbs, body, intelligence, brain, heart, innerself leads to achievement of enlightenment. Thereafter, nothing is left to be achieved, nothing is left to be done.
Equanimity, self satisfaction, social welfare, helping others in them selves are components of devotion leading to emancipation, Salvation, Liberation, Assimilation in the Almighty.
वाग्मिप्राज्ञामहोद्योगं जनं मूकजडालसं।
करोति तत्त्वबोधोऽयम तस्त्यक्तो बुभुक्षभिः॥
वाणी, बुद्धि और कर्मों से महान कार्य करने वाले मनुष्यों को तत्त्व-ज्ञान शान्त, स्तब्ध और कर्म न करने वाला बना देता है, अतः सुख की इच्छा रखने वाले इसका त्याग कर देते हैं।[अष्टावक्र गीता 15.3] 
One desirous of worldly pleasures, undertake great endeavour-strives through speech-eloquence and intelligence, discard-forbids realisation of gist (truth, essence) Tatv Gyan (knowledge, enlightenment), which makes one peaceful, content, inactive-passive, neutral to worldly performances.
Reject only wicked, vicious, criminal, acts, bad company, inauspicious deeds-desires. Maintain virtues, righteousness, piousity.
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः॥
उस कर्म योग से सिद्ध हुए महापुरुष का इस विश्व में न तो कर्म करने से कोई प्रयोजन रहता है और न कर्मों के न करने से ही कोई प्रयोजन रहता है। समस्त प्राणियों में किसी भी प्राणी के साथ उसका बिलकुल भी स्वार्थ का संबंध नहीं रहता।[श्रीमद्भगवद्गीता कर्म योग 3.18]
The Karm Yogi becomes relinquished-detached breaking all bonds (ties, relations). He is free from selfishness (interest, motive) with any creature-organism.
प्रत्येक मनुष्य में कुछ ने कुछ करने की प्रवृति होती है। यह प्रवृति उसमें लालसा, पाने, बनने, तरक्की की इच्छा पैदा करती है। इस इच्छा की निवृति के लिए भी कर्म अनिवार्य है। कर्मयोगी निवृति के लिए निस्वार्थ भाव से कर्म करता है। उसको यह ज्ञात है कि पदार्थ, शरीर, इन्द्रियाँ, अन्तःकरण आदि व्यक्तिगत नहीं हैं। इनके माध्यम से उसे केवल संसार के लिए कर्म करना है। अगर वह कुछ भी अपने लिए इस्तेमाल करता है तो अशांति होती है। अगर वह पदार्थ, शरीर, इन्द्रियाँ, अन्तःकरण को अपना व्यक्तिगत मानेगा तो प्रमाद, आलस, आराम, आदि तामस प्रवृतियों का शिकार हो जायेगा। परन्तु क्योंकि वह सात्विक, सुख से ऊपर उठ चुका है, वह तामस प्रवृतियों का शिकार हो ही नहीं सकता।
Each and every one is born with the desire-tendency to do achieve-something. One has to resist these intentions (motives, interests). He has to act to overcome the initiative within him. He will make efforts to do this without selfishness. His body, possessions, sense organs and the innerself are meant for the service of the mankind-world. If he consider them to be his own, he will suffer from laziness, tiredness, need for comfort-rest, which are tendencies, which will drag him to darkness (ignorance, hells). But being a Karm Yogi, he has overcome all these and will detach from the them, without motive.
One is destined to undergo the impact of his deeds till they last to qualify him for Salvation. Bhagwan Shri Krashn awarded Gau Lok to HIS teacher-Guru Sandeepan but asked him to stay back till the impact of all his deeds was over-neutralised.
संतोषी सदा सुखी। 
शान्ति PEACE, SOLACE TRANQUILLITY
ऋग्वेद संहिता, षष्ठम मण्डल सूक्त (35) :: ऋषि :- वसिष्ठ मैत्रा-वरुण; देवता :- इन्द्र; छन्द :- त्रिष्टुप।
शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न इन्द्रावरुणा रातहव्या।
शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ
हे इन्द्र देव और अग्नि देव! हमारे लिए रक्षण द्वारा शान्तिप्रद होवें। इन्द्र देव और वरुण देव को यजमान ने हव्य प्रदान किया है। आप लोग हमारे लिए शान्तिप्रद होवें। इन्द्र देव और सोम देव हमारे लिए शान्ति और कल्याण देने वाले हों। इन्द्र देव और पूषा हमें शान्ति और सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.1]
Hey Indr Dev & Agni Dev! Stay for our protection and peace with us. The Ritviz-host made offerings to Indr Dev & Varun Dev. You should grant us peace, solace & tranquillity. Indr Dev & Som Dev should grant us peace and welfare. Indr Dev & Pusha Dev grant us pleasure and safety.
शं नो भगः शमु नः शंसो अस्तु शं नः पुरैधिः शमु सन्तु रायः।
शं नः सत्यस्य सुयमस्य शंसः शं नो अर्यमा पुरुजातो अस्तु
भग देवता हमारे लिए शान्ति प्रदान करें। हमारे लिए नराशंस शान्तिप्रद हों। हमारे लिए पुरन्धि शान्तिप्रद हों। सभी धन हमारे लिए शान्तिप्रद हों। उत्तम और यम युक्त सत्य का वचन हमारे लिए शान्तिप्रद हो। बहुत बार आविर्भूत अर्यमा हमारे लिए शान्तिदाता हों।[ऋग्वेद 7.35.2]
Bhag Dev should grant us peace. Let the humans, women, wealth  be peaceful to us. Excellent words and restraint accompanied with truth grant us solace. Aryma should be peace giver to us.
शं नो धाता शमु धर्ता नो अस्तु शं न उरूची भवतु स्वधाभिः।
शं रोदसी बृहती शं नो अद्रिः शं नो देवानां सुहवानि सन्तु
धाता हमें शान्ति प्रदान करें। धर्त्ता वरुणदेव हमारे लिए शान्ति दें। अन्न के साथ पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। महती द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। पर्वत हमारे लिए शान्ति दें। देवताओं की सारी उत्तम स्तुतियाँ हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.3]
Dhata, Dharta Varun Dev give us peace. Let the earth give us peace with food grains. Vast heavens & earth award us peace. Mountains grant us peace. All sacred hymns addressed to demigods-deities grant us peace.
शं नो अग्निज्योर्तिरनीको अस्तु शं नो मित्रावरुणावश्विना शम्।
शं नः सुकृतां सुकृतानि सन्तु शं न इषिरो अभि वातु वातः
ज्वालामुख अग्निदेव हमारे लिए शान्ति दें। मित्र और वरुणदेव हमें शान्ति दें। अश्विनीकुमार हमें शान्ति दें। पुण्यात्माओं के पुण्यकर्म हमें शान्ति दें। गतिशील वायुदेव भी हमारी शान्ति के लिए प्रवाहित हों।[ऋग्वेद 7.35.4]
Let Agni Dev with volcanic mouth, Mitr & Varun Dev, Ashwani Kumars grant us peace. Virtuous deeds of the virtuous-righteous and their virtues give us peace. Blowing air-Pawan Dev too give us peace.
शं नो द्यावापृथिवी पूर्वहूतौ शमन्तरिक्षं दृशये नो अस्तु।
शं न ओषधीर्वनिनो भवन्तु शं नो रजसस्पतिरस्तु जिष्णुः
प्रथम आह्वान में द्यावा-पृथ्वी हमारे लिए शान्ति दें। दर्शनार्थ अन्तरिक्ष हमको शान्ति दे। औषधियाँ और वृक्ष हमें शान्ति दें। विजय परायण लोकपति इन्द्र देव भी हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.5]
Heaven & earth should grant us peace with the first call-invocation. For viewing, space should give us peace. Medicines and trees should award us peace. Victorious lord of the abodes Indr Dev should grant us peace.
शं न इन्द्रो वसुभिर्देवो अस्तु शमादित्येभिर्वरुणः सुशंसः।
शं नो रुद्रो रुद्रेभिर्जलाषः शं नस्त्वष्टा नाभिरिह शृणोतु
वसुओं के साथ इन्द्र देव हमें शान्ति दें। आदित्यों के साथ शोभन स्तुति वाले वरुणदेव हमें शान्ति दें। रुद्रगण के लिए रुद्र देवता हमें शान्ति दें। देव स्त्रियों के साथ त्वष्टा हमें शान्ति दें। यज्ञ हमारा स्तोत्र श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.35.6]
Let Indr Dev along with Vasus grant us peace. Varun Dev with beautiful prayers along with Adity Gan give us peace. Rudr Gan & Rudr Dev should grant us peace. Women folk of the demigods-deities along with Twasta grant us peace.
शं नः सोमो भवतु ब्रह्म शं नः शं नो ग्रावाणः शमु सन्तु यज्ञाः।
शं नः स्वरूणां मितयो भरन्तु शं नः प्रस्व १ : शम्वस्तु वेदिः
सोमदेव हमें शान्ति दें। स्तोत्र हमें शान्ति दें। पत्थर हमें शान्त दें। यज्ञ हमें शान्ति दें। यूपों का माप हमें शान्ति दें। औषधियाँ हमें शान्ति दें। वेदी हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.7]
Let Som Dev, Strotr, stones, Yagy, Yagy staff-Yup, medicines and the Yagy Vedi grant us peace.
शं नः सूर्य उरुचक्षा उदेतु शं नश्चतस्त्रः प्रदिशो भवन्तु।
शं नः पर्वता ध्रुवयो भवन्तु शं नः सिन्धवः शमु सन्त्वापः
विस्तीर्ण तेजोमय सूर्यदेव हमारी शान्ति के लिए उदित हों। चारों महादिशाएँ हमें शान्ति दें। स्थिर पर्वत हमें शान्ति दें। नदियाँ हमें शान्ति दें। जल हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.8]
Vast-broad radiant Sury Dev should rise for our peace. The four great direction should grant us peace. Stationary mountains should give us peace. Rivers should give us peace. Water should grant us peace.
शं नो अदितिर्भवतु व्रतेभिः शं नो भवन्तु मरुतः स्वर्काः।
शं नो विष्णुः शमु पूषा नो अस्तु शं नो भवित्रं शम्वस्तु वायुः
कर्म द्वारा माता अदिति हमें शान्ति दें। शोभन स्तुति वाले मरुद्गण हमें शान्ति दें। श्री हरी विष्णु हमें शान्ति दें। पूजा हमें शान्ति दें। अन्तरिक्ष हमें शान्ति दे। वायुदेव हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.9]
Mata Aditi should grant us peace through endeavours-deeds. Marud Gan having beautiful prayers should give us peace. Shri Hari Vishnu should give us peace. Puja-prayer should grant us peace. Space should grant us peace. Vayu Dev should grant us peace.
शं नो देवः सविता त्रायमाणः शं नो भवन्तूषसो विभातीः।
शं नः पर्जन्यो भवतु प्रजाभ्यः शं नः क्षेत्रस्य पतिरस्तु शंभुः
रक्षण करते हुए सविता हमें शान्ति दें। अन्धकार विनाशिनी उषाएँ हमें शान्ति दें। हमारी प्रजा के लिए पर्जन्य शान्ति दें। क्षेत्रपति शम्भु हमें शान्ति प्रदान करें।[ऋग्वेद 7.35.10]
Savita should grant us peace while protecting us. Ushas eliminating darkness, should give us peace. Let Parjany grant peace for our populace. Kshetr Pati Shambhu should grant us peace.
शं नो देवा विश्वदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु।
शमभिषाचः शमु रातिषाचः शं नो दिव्याः पार्थिवाः शं नो अप्याः
प्रकाशमान विश्वे देवगण हमें शान्ति दें। कर्म के साथ सरस्वती हमें यज्ञ सेवक शान्ति दें। दान निपुण हमें शान्ति दें। भूलोक द्युलोक और अन्तरिक्ष लोक में उत्पन्न प्राणी हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.11]
Radiant Vishwe Dev Gan should grant us peace. Saraswati should grant us peace along with endeavours for serving Yagy. Experts in charity-donations give us peace. Living beings born over the earth, heavens and the space should award us peace.
शं नः सत्यस्य पतयो भवन्तु शं नो अर्वन्तः शमु सन्तु गावः।
शं न ऋभवः सुकृतः सुहस्ताः शं नो भवन्तु पितरो हवेषु
सत्य पालक देवता हमें शान्ति दें। अश्वगण हमें शान्ति दें। गायें हमारे लिए सुखद दात्री हमें शान्ति दें। पूजा हमें शान्ति दें। अन्तरिक्ष हमें शान्ति दे। वायुदेव हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.12]
Truthful demigods-deities should grant us peace. Horses should give us peace. Let the comforting cows grant us peace. Puja-prayers should grant us peace. Let the space give us peace. Vayu Dev should grant us peace.
सुकर्म कर्ता और सुन्दर हाथ वाले ऋभुगण हमें शान्ति दें। स्तुति करने पर हमारे पितर भी हमें शान्ति प्रदान करें।
Ribhu Gan performing virtuous deeds with beautiful hands give us peace. On being worshiped our Pitr-manes should also grant us peace.
शं नो अज एकपाद्देवो अस्तु शं नोऽहिर्बुध्न्य १ : शं समुद्रः।
शं नो अपां नपात्पेरुरस्तु शं नः पृश्निर्भवतु देवगोपा
अज एकपाद देवता हमें शान्ति दें। अहिर्बुध्न्य देवता हमें शान्ति दें। समुद्र हमें शान्ति दें। उपद्रव शान्ति करने वाले "अपां नपात्" देवता हमें शान्ति दें। देव पालिका पृश्नि हमें शान्ति दें।[ऋग्वेद 7.35.13]
Aj Ek Pad deity should provide us peace. Ahirbudhany Dev grant us peace. Apan Napat Dev calming down disturbances, should provide us peace. Prashni nursing the demigods-deities should grant us peace.
आदित्या रुद्रा वसवो जुषन्तेदं ब्रह्म क्रियमाणं नवीयः।
शृण्वन्तु नो दिव्याः पार्थिवासो गोजाता उत ये यज्ञियासः
हम यह नया स्तोत्र बनाते हैं। आदित्यगण, रुद्रगण और वसुगण इसका सेवन करें। द्युलोक-पृथ्वी और पृश्नि से उत्पन्न तथा अन्य भी जितने यज्ञीय हैं, सब हमारा आह्वान श्रवण करें।[ऋग्वेद 7.35.14]
We are composing this new Strotr. Let Adity Gan, Rudr Gan and Vasu Gan enjoy this. All those devoted to Yagy born out of heavens, earth and Prashni should listen-respond to our invocation.
ये देवानां यज्ञिया यज्ञियानां मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञाः। 
ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः
यज्ञ योग्य देवताओं, यज्ञनीय मनु प्रजापति और यजनीय अमर सत्यज्ञ जो देवगण है, वे हमें आज बहुकीर्त्ति वाला पुत्र प्रदान करें। आप सदा हमारा कल्याण द्वारा पालन करें।[ऋग्वेद 7.35.15]
Let the deities-demigods deserving Yagy, worshipable Prajapati Manu and truthful immortal demigods-deities should grant us son with multiple glory-fame. You should always be inclined to our welfare.(01.01.2024)

Contents of these above mentioned blogs are covered under copyright and anti piracy laws. Republishing needs written permission from the author. ALL RIGHTS ARE RESERVED WITH THE AUTHOR.
संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
+919411404622 skbhardwaj200551@gmail.com