Friday, June 24, 2016

शरीर :: स्थूल, सूक्ष्म व कारण THREE SHELLS OF BODY

शरीर :: स्थूल, सूक्ष्म व कारण

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
dharmvidya.wordpress.com hindutv.wordpress.com santoshhastrekhashastr.wordpress.com bhagwatkathamrat.wordpress.com jagatgurusantosh.wordpress.com santoshkipathshala.blogspot.com santoshsuvichar.blogspot.com santoshkathasagar.blogspot.com bhartiyshiksha.blogspot.com santoshhindukosh.blogspot.com
ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
जिस प्रकार मनुष्य स्थूल शरीर की स्वस्थता का लाभ समझते हुए उसे सुस्थिर बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है, उसी प्रकार उसे सूक्ष्म और कारण शरीर की सुरक्षा एवं समर्थता के लिए सदैव सचेष्ट रहना चाहिए। 
(1). स्थूल शरीर :: जिसमें पाँच ज्ञानेंद्रिय (आँख, कान, जीभ, नाक, त्वचा), पाँच कर्मेन्द्रिय (वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ, पायु), पंच तन्मात्र (धरती, अग्नि, जल, वायु, आकाश) होते हैं। पञ्च भूत से निर्मित हाड़ :- अस्थि, मज्जा, माँस, रक्त का बना शरीर ही स्थूल शरीर है। कर्मेन्द्रियों से शरीर-चर्या एवं लोक व्यवहार के विविध विधि क्रिया-कलाप चलते हैं, का बना शरीर ही स्थूल शरीर है। स्थूल और सूक्ष्म का अन्तर प्रत्यक्ष है। स्थूल शरीर पंचतत्वों के सूक्ष्म घटकों से बना है। उन्हें तत्वों, आदि के रूप में देखा जा सकता है। कर्मेन्द्रियों से शरीर-चर्या एवं लोक व्यवहार के विविध विधि क्रिया-कलाप चलते हैं। स्थूल शरीर में शरीरी का निवास है। शरीरी-आत्मा सूक्ष्म शरीर में मौजूद है। स्थूल शरीर निर्जीव है, यदि उसमें आत्मा न हो। योगी स्थूल शरीर को सुरक्षित रख कर जहाँ-तहाँ विचरता रहता-भ्रमण करता है। स्थूल के ऊपर है सूक्ष्म शरीर। सूक्ष्म शरीर को भी पार करेंगे तो वह उपलब्‍ध होगा, जो नहीं है, अशरीरी-जो आत्‍मा है। मृत्‍यु के समय सिर्फ स्‍थूल शरीर गिरता है, सूक्ष्‍म शरीर नहीं। 
अनाहत चक्र (हृदय में स्थित चक्र) के जाग्रत होने पर, स्थूल शरीर में अहम भावना का नाश होने पर दो शरीरों का अनुभव होता ही है। कई बार साधकों को लगता है, जैसे उनके शरीर के छिद्रों से गर्म वायु  निकल कर एक स्थान पर एकत्र हुई और एक शरीर का रूप धारण कर लिया, जो बहुत शक्तिशाली है। उस समय यह स्थूल शरीर जड़ पदार्थ की भांति क्रियाहीन हो जाता है। इस दूसरे शरीर को सूक्ष्म शरीर या मनोमय शरीर कहते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि वह सूक्ष्म शरीर हवा में तैर रहा है और जीवित अवस्था में वह शरीर स्थूल शरीर की नाभी से एक पतले तंतु से जुड़ा हुआ है।
कभी ऐसा भी अनुभव हो सकता है कि यह सूक्ष्म शरीर, स्थूल शरीर से बाहर निकल गया अर्थात जीवात्मा शरीर से बाहर निकल गई और अब स्थूल शरीर नहीं रहेगा, उसकी मृत्यु हो जायेगी। ऐसा विचार आते ही योगी उस सूक्ष्म शरीर को वापस स्थूल शरीर में लाने की कोशिश करते हैं, परन्तु यह बहुत मुश्किल कार्य मालूम देता है। स्थूल शरीर मैं ही हूँ ऐसी भावना करने से व ईश्वर का स्मरण करने से वह सूक्ष्म शरीर शीघ्र ही स्थूल शरीर में पुनः प्रवेश कर जाता है। 
हठ योगी शरीर को छोड़कर पुनः प्रवेश कर सकता है। शरीर को छोड़ने पर भी वह सूक्ष्म  शरीर धारण किये रहता है। अक्सर योगी-संतजन  एक साथ एक ही समय दो जगह देखे गए हैं, ऐसा उस सूक्ष्म शरीर के द्वारा ही संभव होता है, स्थूल यहाँ और सूक्ष्म वहाँ। सूक्ष्म शरीर के लिए कोई आवरण-बाधा नहीं है, वह सब जगह आ जा सकता है। जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है वो स्थूल शरीर हैं। प्याज की परतों के समान ही इसकी अन्य दो परतें हैं :- सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। 
(2). सूक्ष्म शरीर :: जिसमें बुद्धि, अहंकार और मन होता है। सूक्ष्म शरीर पंच प्राणों का बना है। उनके प्रतीक पाँच शक्ति केन्द्र हैं, जिन्हें पंचकोश भी कहते हैं। अन्नमय-कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय-कोश, आनन्दमय कोश के रूप में इनकी पहचान की जाती है। इन पंच प्राणों का समन्वय महाप्राण के रूप में समझा जाता है। जीवन चेतना यही है। इसके रूप में पृथक् हो जाने पर सूक्ष्म शरीर भी नष्ट हो जाता है। 
सूक्ष्‍म से योगी परिचित होता है और योग के भी जो ऊपर उठ जाते है, वे उससे परिचित होते है, जो आत्‍मा है। सामान्‍य आँखे नहीं देख पाती हैं, इस शरीर को। योग-दृष्‍टि, ध्‍यान से ही दिख पाता है, सूक्ष्‍म शरीर। लेकिन ध्‍यानातित, बियॉंड योग, सूक्ष्‍म के भी पार, उसके भी आगे जो शेष रह जाता है, उसका तो समाधि में अनुभव होता है। ध्‍यान से भी जब व्‍यक्‍ति ऊपर उठ जाता है, तो समाधि फलित होती है और उस समाधि में जो अनुभव होता है, वह परमात्‍मा का अनुभव है। साधारण मनुष्‍य का अनुभव शरीर का अनुभव है, साधारण योगी का अनुभव सूक्ष्‍म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्‍मा का अनुभव है। परमात्‍मा एक है, सूक्ष्‍म शरीर अनंत है, स्‍थूल शरीर अनंत है। सिद्ध योगी सूक्ष्म शरीर से परकाय प्रवेश में समर्थ हो जाते हैं। सूक्ष्म शरीर का मुख्य स्थान मस्तिष्क माना गया है।
(3). कारण शरीर ::  सद्भावना सम्पन्न व्यक्ति, जिन्होंने उच्च आदर्शों के अनुरूप अपनी निष्ठा परिपक्व की है, उनका कारण शरीर परिपुष्ट होता है। स्वर्ग, मुक्ति, शान्ति से लेकर आत्म साक्षात्कार और ईश्वर दर्शन तक की दिव्य विभूतियाँ, इस कारण शरीर की समर्थता पर ही निर्भर हैं।
मनुष्य को बुद्धि तक का ज्ञान होता है और इससे आगे का ज्ञान नहीं होता। अतः यह अज्ञान सम्पूर्ण शरीरों का कारण होने के कारण, कारण शरीर कहलाता है। इस कारण शरीर को स्वभाव, आदत और प्रकृति भी कहा जाता है। इसी को आनन्दमयकोश भी कह देते हैं। जाग्रत अवस्था में स्थूल शरीर की प्रधानता होती है और उसमें सूक्ष्म और कारण शरीर भी साथ रहता है। 
कारण शरीर ने सूक्ष्म शरीर को घेर के रखा है। इसमें आत्मा के संस्कार, भाव, विचार, कामनाऐं, वासनाऐं, इच्‍छाऐं, अनुभव, ज्ञान बीज रूप में रहते हैं। यह विचार, भाव और स्मृतियों का बीज रूप में संग्रह कर लेता है। वही जीव को आगे की यात्रा कराता है। जिसके सारे दोष नष्‍ट हो गए, जिस मनुष्‍य की सारी वासनाएँ क्षीण हो गई, जिस मनुष्‍य की सारी इच्‍छाऐं  विलीन हो गई, जिसके भीतर अब कोई भी इच्‍छा शेष न रही, उस मनुष्‍य को जाने के लिए कोई जगह नहीं बचती, जाने का कोई कारण नहीं रह जाता। जन्‍म की कोई वजह नहीं रह जाती। मृत्यु के बाद स्थूल शरीर कुछ दिनों में ही नष्ट हो जाता है और सूक्ष्म शरीर विसरित होकर कारण की ऊर्जा में विलिन हो जाता है। यही कारण शरीर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है और इसी के प्रकाश से पुनः मनोमय व स्थूल शरीर की प्राप्ति होती है अर्थात नया जन्म होता है।
आश्चर्यवत्पश्यति कश्चिदेन माश्चर्यवद्वदति तथैव चान्यः।
आश्चर्यवच्चैनमन्यः श्रृणोति श्रुत्वाप्येनं वेद न चैव कश्चित्‌॥
कोई व्यक्ति इस आत्मा को आश्चर्य की भाँति देखता-अनुभव है तो दूसरा कोई इसका आश्चर्य की भाँति वर्णन करता है तथा अन्य कोई इसे आश्चर्य की भाँति सुनता है और कोई-कोई तो सुनकर भी इसको नहीं जान पाता।[श्रीमद्भगवद्गीता 2.29]  
Some experience-view it with surprise, other one describe-discuss about it with surprise, yet another one listens about it just as a surprise and there are the people who listens about it, but fails to recognise its existence. 
आत्मा एक आश्चर्य का विषय है, क्योंकि यह अन्य वस्तुओं की तरह देखने, सुनने, पढ़ने या जानने में नहीं आती। इसका ज्ञान लौकिक नहीं, अपितु विलक्षण, पारलौकिक, अदभुत है। 
पश्यति का तात्पर्य है, देखना और स्वयं के द्वारा जानना। आँखों से देखने में आने वाला जीव, दिखने वाली वस्तु और देख पाने की शक्ति का होना आवश्यक है। जब स्वयं के द्वारा जानने, अस्तित्व, समझने की बात आती है तो वह अपने द्वारा ही समझी-अनुभव की जाती है। 
शरीर को 3 प्रकार से माना जाता है :- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। स्थूल शरीर 5 ज्ञानेन्द्रियों, 5 कर्मेन्द्रियों और 5 प्राण के साथ मन और बुद्धि का विषय है। सूक्ष्म शरीर बुद्धि का विषय है और कारण शरीर प्रकृति और देही-आत्म स्वरूप प्रकृति से भी परे है। अतः स्वयं को जानने वाला कोई बिरला ही होता है, क्योंकि लोगों में इस बात की जिज्ञासा का अभाव है। 
कभी-कभी व्यक्ति भूत-प्रेत-दुरात्माओं के प्रभाव में आकर अनाप-सनाप बोलने लगता है। ऐसे व्यक्तियों को ग्रस्त किये हुए आत्मा अपना पूर्व काल, जीवन, जन्म व्यक्त कर सकती है। 
वाणी स्वयं आत्मा पर निर्भर है, अतः यह भी आत्मा को पूरी तरह व्यक्त करने समझाने में असमर्थ है। इसलिये यह आश्चर्य का विषय भी है। जब कोई स्वयं ही इसके बारे में नहीं जानेगा, तो वह दूसरों को कैसे समझायेगा ?! 
सामान्य व्यक्ति को खाने-पीने, जीने, काम, आराम, मौज-मस्ती से ही फुर्सत नहीं है; तो वो आत्मा को जानने की कोशिश क्या, क्यों, किसलिये और कैसे करेगा। उसे तो आत्मा की बात से आश्चर्य ही होगा। 
Soul is a matter of surprise for some people, since it is beyond seeing, experiencing, view, observation, hearing-listening, reading-learning or identifying-discovering. Its knowledge is not worldly. It's amazing, wonderful, surprising. Its beyond the common man's understanding-limits. 
PASHYATI means seeing and self identification. It needs the viewer, some object to be viewed and the power to see. Self identification-realisation, involves the organism, human being, individual. The viewer's body may constitute of the physical entity having 5 sense organs, 5 work organs, 5 airs in addition to innerself-Man (psyche, मन, mood, consciousness, seat of perception & feelings, inclination, temperament, will, character, purpose i.e., what one calls mind-heart and soul) and intelligence. Generally, one do not go beyond this, since its the limit for him-sufficient to know. Other than the material-physical body the 2nd type of body is exactly like the material one-first type, before the death but its weightless-divine, invisible. It is a subject-concept of the intelligence for understanding. The 3rd type of body is based on reason, logic, perception including nature. This soul is beyond the preview of nature. So, its very rare to find some one who has realised him self, due to lack of desire to do so. 
The speech-intelligence itself is dependent over the soul. So, it is incompetent to describe the nature of soul completely, thoroughly, properly, making it an entity for surprise. When someone himself is not clear about it, how can he explain-elaborate it to others?! 
The common man has no time to be curious either about the soul or him self. He is busy with work, gossip, fun & frolic, leisure, amusement, earning or other things. So, if one tells-talks about it, he will be surprised, may be curious. 
CONSCIOUSNESS :: समझ, होश, आपा, भान, अभिज्ञता, चेतना, चैतन्य, जानकारी, ज्ञान, बोध, संज्ञा।
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते। 
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥श्रीमद् भगवद्गीता 13.1॥ 
Image result for images krishna bhagwanभगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा :- हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! यह-रुप से कहे जाने वाले शरीर को क्षेत्र-इस नाम से कहते हैं और इस क्षेत्र को जो जानता है, उसको  ज्ञानी लोग क्षेत्रज्ञ-इस नाम से कहते हैं। 
Bhagwan Shri Krashn addressed Arjun as Kunti Putr & said :- This physical-human body represents the miniature universe called the Kshetr (region, field) or creation. One who knows the creation is called the Kshetragy (creator or Spirit) by the enlightened-scholars.
मनुष्य भौतिक-सांसारिक प्राणियों यथा वस्तु, पशु, पक्षी, मेरा, मैं आदि नामों से जानता-पुकारता है। उसके 3 प्रकार के शरीर :- स्थूल, सूक्ष्म और कारण भी इसी प्रकार पहचाने जाते हैं। 
स्थूल शरीर :: अन्नमयकोश पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश से बना है, जो माता-पिता के रज-वीर्य से बने हैं। 5 ज्ञानेन्द्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, मन और बुद्धि से यह सूक्ष्म शरीर-प्राणमयकोश  बनता है। मन की प्रधानता से यह मनोमयकोश तथा बुद्धि की प्रधानता से यह विज्ञानमय कोश कहलाता है। 
कारण शरीर :: मनुष्य को बुद्धि तक का ज्ञान होता है और इससे आगे का ज्ञान नहीं होता। अतः यह अज्ञान सम्पूर्ण शरीरों का कारण होने के कारण, कारण शरीर कहलाता है। इस कारण शरीर को स्वभाव, आदत और प्रकृति भी कहा जाता है। इसी को आनन्दमयकोश भी कह देते हैं। जाग्रत अवस्था में स्थूल शरीर की प्रधानता होती है और उसमें सूक्ष्म और कारण शरीर भी साथ रहता है। सुषुप्ति अवस्था कारण शरीर की होती है। सुषुप्ति अवस्था में दुःख का अनुभव नहीं होता; अतः इसे आनंदमय कोष कहते हैं। 
सूक्ष्म शरीर :: मृत्यु के पश्चात् अभौतिक प्राप्त शरीर। 
ये तीनों प्रकार के शरीर क्षेत्र इसलिए कहलाते हैं; क्योंकि इनका प्रतिक्षण नाश होता रहता है। शरीर खेत के समान है, जिसमें बीज बोने से फ़सल पैदा होती है, उसी प्रकार कर्मों के संस्कार फ़ल के रुप में प्रकट होते हैं। जीवात्मा इस शरीर को अपना मानता है, यद्यपि वह है परमात्मा का अंश। जिन्हें क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का का बोध हो चुका है, वे तत्वज्ञ इस जीवात्मा को क्षेत्रज्ञ कहते हैं।
The humans recognise himself with the physical, material, worldly entities like matter-material objects, animals, birds, mine, my, I etc. The body has three different forms Physical-macro, micro-minutest and the causative leading to yet another birth. 

The physical body is composed of 5 basic-root components :- Earth, Water, Air, Energy and the Sky. Its the result of the combination of the sperms and ovum of the parents. The body gets a soul with 5 sense organs, 5 work or functional organs, 5 kinds of airs, the mind (brain with heart, psyche, gestures) and the intelligence. The micro body is called the store house of soul. The significance of mind (brain & heart) makes it the store of mental capabilities-potentials and the superiority of the intelligence, makes it the store of scientific intellect. The human being is aware of what is known through intelligence. Mind is the limit. One is not aware of what is next?! The lack of further knowledge causes the next births. This is called as nature, self or habit. When one is awake, the material body is supreme which is associated by the logic-reason body and the micro body. Under the influence of unconscious state one do not feel-experience pain. This is the state of pleasure.  These three kinds of bodies (space where the soul can be found) are called fields-Kshetr, since they undergo destruction every moment, like sowing and cutting of crops. 
Micro body :: its that state of thew soul which is called spirit and takes the soul to Dharm Raj to enter a new body, physical entity, incarnation.The body is like the field where the crops grow in the form of deeds, resulting in some sort of output leading to further births. The organism-human being considers this body as his own and identifies himself with it which in fact an organ-component of the God. One who has realized the gist of physique and the occupier is called the enlightened.
पञ्चभ्य एव मात्राभ्यः प्रेत्य दुष्कृतिनां नृणाम्।
शरीरं यातनार्थोयमन्यदुत्पद्यते ध्रुवम्मनुस्मृति 12.16॥
पापात्मा मनुष्यों के पञ्चभौतिक शरीर से ही एक सूक्ष्म शरीर निश्चय करके परलोक में दुःख भोगने के लिये उत्पन्न होता है। 
A minute body of the sinner-wicked emanate-emerges from his dead remains and is destined to suffer in next birth-incarnation, hells.
तेनानुभूयता यामीः शरीरेणेह यातनाः।
तास्वेव भूतमात्रासु प्रलीयन्ते विभागशःमनुस्मृति 12.17॥
पापात्मा मनुष्य उस शरीर से यमयातना का अनुभव करके फिर उन्हीं भूतों की मात्राओं में यथा-विभाग लीन होते हैं। 
Having undergone torments-suffering imposed by Yam Raj-deity of death, the sinner is once again made to take birth
सोऽनुभूयासुखोदर्कान्दोषान्विषयसङ्गजान्।
व्यपेतकल्मषोऽभ्येति तावेवोभौ महौजसौ॥मनुस्मृति 12.18॥
वह शरीरधारी विषय भोग से उत्पन्न यमलोकगत यातनाओं के उपभोग करने के बाद पाप रहित होकर महातेजस्वी महत्तत्व और परमात्मा दोनों का आश्रित होता है। 
Having suffered for his faults, which are produced by attachment to sensual objects and which results in misery-agony, tortures becomes free to be face to face with Mahatatv & the Almighty.
मोक्ष :: मोक्ष के समय स्‍थूल, सूक्ष्‍म और कारण शरीर भी गिर जाता है। फिर आत्‍मा का कोई जन्‍म नहीं होता। फिर वह आत्‍मा विराट पुरुष में लीन हो जाती है। 
    
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)