CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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परमे पदे तिष्ठति इति परमेष्ठी उच्यते।
जो परम (पारलौकिक) पद में स्थित हो, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
परमेष्ठी :: (1). ब्रह्मा, (2). विष्णु, (3). शिव, (4). एक जिन का नाम, (5). शलिग्राम का एक विशेष भेद, (6). विराट पुरुष, (7). चाक्षुष मनु, (8). गरुड़, (9). आध्यात्मिक शिक्षक-गुरु (10). अग्नि, आदि देवता। शासन में जिनका पद महान होता है, जो गुणों में सर्वश्रेष्ठ होते हैं तथा जिन्हें राजा, इन्द्र, चक्रवर्ती, देव और सिंह आदि भी नमस्कार करते हैं, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं।
5 परमेष्ठी :: अरिहंत परमेष्ठी, सिद्ध परमेष्ठी, आचार्य परमेष्ठी, उपाध्याय परमेष्ठी एवं साधु परमेष्ठी।
परमेष्ठी निवास :: पाँच परमेष्ठी में सिद्ध परमेष्ठी को छोड़कर शेष चार परमेष्ठी मध्यलोक के अढ़ाई द्वीप (2.5) एवं दो समुद्र अर्थात् 45 लाख योजन प्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। जिनमें तीर्थंकर व केवली भगवान् सभी आर्य खण्डों में ही विहार करते हैं। किन्तु आचार्य, उपाध्याय, साधु परमेष्ठी भोग भूमि में भी उपदेश देने के निमित से चले जाते हैं। सिद्ध परमेष्ठी उर्ध्व लोक के अन्तिम तनुवातवलय के अंत में निवास करते हैं। ईषत् प्राग्भार नामक अष्टम भूमि में स्थित सिद्ध शिला से 7,050 धनुष ऊपर से लोकान्त तक सिद्ध भगवान् रहते हैं। किन्तु आगे धर्मास्तिकाय का अभाव होने से अनन्त शतिधारी सिद्ध परमेष्ठी वहीं रुक जाते हैं।
परमेष्ठी साक्षात् दर्शन :: सिद्ध परमेष्ठी को छोड़कर शेष चार परमेष्ठियों के, किन्तु वर्तमान इस पञ्चम काल में भरत-ऐरावत क्षेत्र में तीन परमेष्ठी आचार्य, उपाध्याय और साधु के ही दर्शन हो पाते हैं।
63 शलाका पुरुष :: इनमें मात्र अरिहंत परमेष्ठी आते हैं।
बारह चक्रवर्ती :- भरत, सगर, मघवा, सनतकुमार, शांति, कुन्थु, अरह, सुभौम, पदम, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त।
चौबीस तीर्थंकर :- ॠषभनाथ तीर्थंकर, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुब्रनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ तीर्थंकर, पार्श्वनाथ तीर्थंकर, वर्धमान।
नौ बलभद्र :- अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनंद, नंदन, पदम और राम।
नौ वासुदेव :- त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण।
नौ प्रति वासुदेव :- अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मुध, निशुम्भ, बलि, प्रह्लाद, रावण और जरासंध।
उपरोक्त व्यक्तियों द्वारा भूमि पर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दर्शन की उत्पत्ति और उत्थान को बढ़ावा दिया गया।
जैनी भगवान् श्री राम को बलभद्र और भगवान् श्री कृष्ण की गिनती नौ वासुदेव में करते हैं।
परमेष्ठी दीक्षा :: तीन परमेष्ठी दीक्षा देते हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु। मुख्य रूप से आचार्य परमेष्ठी दीक्षा देते हैं।
पञ्च परमेठियों में देव और गुरु :: अरिहंत एवं सिद्ध परमेष्ठी देव हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु परमेष्ठी गुरु हैं।
तीन कम नौ करोड़ मुनिराजों में परमेष्ठी :: चार परमेष्ठी :- अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु।
परमेष्ठी का रंग और शरीर के अंग में ध्यान ::
परमेष्ठी | रंग | अंग |
अरिहंत | श्वेत | नाभि |
सिद्ध | लाल | मस्तक |
आचार्य | पीला | कंठ |
उपाध्याय | हरा | हृदय |
साधु | काला | मुख |
घर आने वाले परमेष्ठी :: तीन परमेष्ठी घर में आहार करने एवं उपदेश देने के लिए आते हैं।
तीन परमेष्ठी :- आचार्य, उपाध्याय एवं साधु।
परमेष्ठी मूर्ती :: सभी परमेष्ठियों की मूर्तियाँ बनती हैं।
परमेष्ठियों की प्रतिमाएँ :: चिह्न एवं अष्ट प्रातिहार्य सहित अरिहन्त प्रतिमा होती है, चिह्न एवं अष्ट प्रातिहार्य से रहित सिद्ध प्रतिमा होती है, वरद हस्त सहित आचार्य की, शास्त्र सहित उपाध्याय की तथा पिच्छी-कमण्डलु सहित साधु की प्रतिमा होती है।
परमेष्ठी अभिषेक :: साक्षात् किसी भी परमेष्ठी का अभिषेक नहीं होता है। प्रतिमा में जिन परमेष्ठियों की स्थापना की गई है, उनका अभिषेक होता है।
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