Friday, June 24, 2016

XXX श्र shra

श्र shra
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM 
By :: Pt. Santosh  Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
श्रद्धा :: आदर, सम्मान, भक्ति, पूजा, सत्कार, धर्म,  ईमान, निष्ठा, यक़ीन;  faith, obeisance, faith, reverential belief as in deity, implicit confidence.
श्रद्धा
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 सात्विक         आसुरी
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                             राजसी       तामसी  
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा। 
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु॥[श्रीमद् भगवद्गीता 17.2]
मनुष्यों की वह स्वभाव से उत्पन्न हुई श्रद्धा सात्विकी तथा राजसी और तामसी, तीन तरह की होती है, उसको तुम मुझ से सुनो। 
Bhagwan Shri Krashn replied to Arjun's query with respect to faith describing, it's three variants in the form of Satvik (Goodness), Rajsik (passion) and Tamsik (ignorance). 
अर्जुन ने निष्ठा (devotion, fidelity, faith, loyalty, belief) सम्बन्धी प्रश्न पूछा, मगर उत्तर भगवान् ने श्रद्धा को लेकर दिया। श्रद्धा तीन तरह की होती है। वह श्रद्धा कौन सी है तो वे कहते हैं कि स्वभावजा। सङ्गजा, शास्त्रजा या स्वभावजा अर्थात स्वभाव से उत्पन्न हुई स्वतः सिद्ध श्रद्धा (reverence, faith) है? वह न संग से उत्पन्न हुई न शास्त्रों से पैदा हुई है। वे मनुष्य स्वाभाविक रुप से इस प्रवाह में बहे जा रहे हैं और देवता आदि का पूजन करते हैं। स्वभावजा श्राद्ध तीन प्रकार की होती है सात्विकी तथा राजसी और तामसी। सात्विक दैवी सम्पदा है और राजसिक आसुरी सम्पत्ति है। भगवान् भी बन्धन की दृष्टि से राजसी और तामसी दोनों को आसुरी प्रवृति ही मानते हैं। राजस मनुष्य सकाम भाव से शास्त्र विहित कर्म करते हैं जो उन्हें उच्च लोकों तक पहुँचाकर फिर वापस ले आती है। तामस मनुष्य शास्त्र विहित कर्म नहीं करते। अतः कामना और मूढ़ता के कारण अधम गति को प्राप्त होते हैं। 
Arjun asked a broad & loose question, pertaining to faith-reverence. Almighty became specific describing the three types of faith. He said that the faith developed by virtue of one's own nature-tendency as one is moving further, is Natural-in born, automatic. It did not grow due to company or by reading the scriptures. The devotees are toeing it by virtue of their traits, qualities, characteristics. This is of 3 types. When discussed in the light of bonds-ties; it is of just 2 types. The first is Satvik (Pure, virtuous, righteous, pious or just divine, eternal). The second one is Demonic which again has two organs, Rajsik and Tamsik. Rajsik faith-devotion is associated with various types of procedures, donations, rituals, prayers and elevated one to the higher abodes-heavens & one is sure to return back to earth after enjoying the reward of his endeavour. There are others who are ignorant & desirous; who do not believe in scriptures (morals, virtues, ethics, honesty, mercy etc.) and perform all sorts of wretched-sinful acts, vices & land in hells.
श्र्वपाक :: उग्र कन्या से क्षत्ता द्वारा उत्पन्न पुत्र को श्र्वपाक कहते हैं; The son produced by a Kshatta through a Ugr girl is termed as Shravpak.
श्राद्ध :: "श्रद्धया इदं श्राद्धम्"‌ जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है। प्रेत और पित्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति-शान्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। मृत व्यक्ति के लिए जो श्रद्धा युक्त होकर तर्पण, पिण्ड, दानादि किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को श्राद्ध कहते हैं। 
जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित-शास्त्रानुमोदित, विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, श्राद्ध कहलाता है।[ब्रह्म पुराण]
श्रान्त :: श्रम के कारण शिथिल होना; exhausted,  a weary, fatigued, tired, description.
श्रावणी :: श्रावणी पर्व वेदों के स्वाध्याय (पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना) से  जुड़ा है। 
स्वाध्याय करने वाला सुख की नींद सोता है, युक्तमना होता है, अपना परम चिकित्सक होता है, उसमें इंन्द्रियों का संयम और एकाग्रता आती है और प्रज्ञा की अभिवृद्धि होती है। स्वाध्याय न करनेवाला अब्राह्मण हो जाता है। [शतपक्ष ब्राह्मण]
वेदाध्ययन, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरंभ किया जाता था, अतः इसे श्रावणी उपाकर्म कहा जाता है।
अथातोऽध्यायोपाकर्म। ओषधीनां प्रादुर्भावे वणेन श्रावण्यां पौर्णमास्याम्‌।[पारस्कर गृह्यसूत्र] 
श्रावणी कर्म अनुष्ठान में वर्तमान काल में आस्थावान्‌ यज्ञोपवीतधारी द्विज श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को गंगा आदि पवित्र नदियों अथवा किसी पवित्र सरोवर, तालाब या जलाशय पर जाकर सामूहिक रूप से पंचगव्य प्राशनकर प्रायश्चित संकल्प करके मंत्रों द्वारा दशविध स्नान कर शुद्ध हो जाते हैं।
तदनन्तर समीप के किसी देवालय आदि पवित्र स्थल पर आकर अरुन्धी सहित सप्तर्षियों का पूजन, सूर्योपस्थान, ऋथ्षतर्पण आदि कृत्य संपन्न करते हैं। तदुपरांत नवीन यज्ञोपवीत का पूजन, पितरों तथा गुरुजनों को यज्ञोपवीत दान कर स्वयं नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
श्री :: धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, श्री कहलाते हैं। महर्षि भृगु की कन्या; daughter of Mahrishi Bhragu, Wealth, money, property, prosperity, vehicles, comforts, luxuries comes due to Shri. Shri means aura, diffusion light-radiance.
श्रुति :: hearing, revelation, specifically, specific of Ved, knowledge of scriptures transferred from one person to another i.e., Guru to Brahmchari, celibate, student-disciple.
श्रेय :: auspicious, good fortune, merit, virtue, credit for, credit, virtues.
श्रेष्ठ व्यक्ति :: श्रेष्ठ आचरण करने वालों, पापियों के साथ व्यवहार में, उनका हित करने में, दुःख-मुसीबत में सहायता करने में उसके अन्तःकरण कोई पक्षपात या विषम भाव नहीं होता। वह जानता है कि सबमें एक ही परमात्मा विराजमान है। तत्व बोध होने से मनुष्य में सम भाव आता है और वह समबुद्धि हो जाता है। सुहृदय सिद्ध कर्म योगी पक्षपात रहित होकर सेवा, परमार्थ, परहित करता है। जिसकी साधु और पापी में समबुद्धि हो गई हो, निश्चय ही श्रेष्ठ है। समता की अपार असीम, अनन्त महिमा है।The great man do not react, show or bring and irrationality-abnormality, in their behaviour-dealings towards the friends, relatives, acquaintances, enemies-foes. The pious (righteous, virtuous, great soul) discriminate (differentiate, distinguish) while dealing with the sinners, for helping them in destitute (बेसहारा, दीन, निःसहाय, अकिंचन, निराश्रित, मुहताज, बेकस, निरालंब, निराश्रय, miserable, necessitous, penniless, unobtrusive, pauper, indigent, poor, needy, dependent, devoid, helpless, hapless, defenceless, helpless, homeless, house less) trouble-bad luck. The great souls-enlightened are aware that the same Almighty resides in all creatures-humans. The moment Ttvgyan-gist of the Almighty comes to one, he acquires equanimity in him automatically.  
श्रोत्रिय :: वह वेदज्ञ, ब्राह्मण-विद्वान जो छन्द आदि कंठस्थ करके उनका अध्ययन और अध्यापन करे, वेद-वेदांग में पारंगत, सभ्य, शिष्ट, सुसंस्कृत हो; ब्राह्मण समाज में एक कुलनाम।   
प्राचीनकाल में ज्ञानार्जन का जरिया श्रौतकर्म अर्थात श्रवण, मनन और चिन्तन ही था।
ब्राह्मणों के चिर-परिचित उपनामों या सरनेम में श्रोत्रिय का शुमार भी है। विद्याव्यसन और अध्यापन से ही जुड़ा हुआ शब्द है श्रोत्रिय जिसका अर्थ है श्रुति अथवा वेदों का अध्ययन करनेवाला ब्राह्मण। 
"जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते। 
वेदाभ्यासी भवेद् विप्रः श्रोत्रियस्त्रिभिरेव च" 
वह जन्म से ब्राह्मण जाना जाता है, संस्कारों से द्विज, वेदाभ्यास करने से विप्र होता है और तीनों से श्रोत्रिय है। पुराणों में कल्प के साथ एक वैदिक शाखा अथवा छह वेदांगों के साथ वैदिक शाखा का अध्ययन कर षट्कर्मों लगे ब्राह्मण को श्रोत्रिय कहा गया है। पुराणों में श्रोत्रिय ब्राह्मणों के कर्तव्यों और अधिकारों का उल्लेख है। यही नहीं राजा के प्रमुख कर्तव्यों में यह ध्यान रखना भी शामिल था कि उसके राज्य में कोई श्रोत्रिय बेसहारा न रहे। श्राद्ध आदि कर्मों में श्रोत्रिय निष्णात होते थे। श्रोत्रिय के श्रोती, सोती, स्रोती जैसे रूप भी प्रचलित हैं।
श्रोत्रिय शब्द बना है "श्रु" धातु से जिसमें मूलतः सुनने का भाव है। इससे ही बना है "श्रुत" अर्थात सुना हुआ, ध्यान लगा कर सुना हुआ, समझा हुआ, जिसे हृदयंगम किया गया हो, जाना हुआ, समझा हुआ, किसी का नाम लेकर पुकारा हुआ उच्चारण आदि। श्रुति भी इसी मूल से आ रहा है। 
श्रुति कन्या का नाम भी होता है इसका अर्थ है सुनना। चूंकि कानों से सुना जाता है इसलिए कान को भी श्रुति कहते हैं। अफवाह, सुनी-सुनाई, मौखिक बात अथवा अन्य समाचार भी श्रुति के दायरे में आते हैं। वेदों को भी श्रुति कहते हैं क्योंकि इनका ज्ञान सुनकर ही हुआ। इसी तरह वेद मंत्र भी श्रुति कहलाते हैं। संगीत में भी श्रुति का बड़ा महत्व है। एक स्वर का चतुर्थांश श्रुति कहलाता है अर्थात यह स्वर का कण होता है। "श्रु" का रिश्ता ही श्रवण अर्थात सुनने की क्रिया से भी है। पुराणों में श्रवणकुमार की कथा भी आती है जो अपने दृष्टिहीन माता-पिता के अत्यंत सेवाभावी थे। राजा दशरथ के तीर से उनकी मृत्यु हो गई थी।
"श्रु" धातु से ही बना है श्रोता शब्द जो बोलचाल में इस्तेमाल होता है। जो "श्रुत" करने की क्रिया से गुजर रहा है वही "श्रोता" है। दिलचस्प बात यह कि श्रोता में शिष्य या विद्यार्थी का भाव भी है। श्रोता बना है संस्कत के श्रोतृ से जिसका भावार्थ है छात्र।  वेद-वेदांगों के ज्ञान में पारंगत हो चुके ब्राह्मण को श्रोत्रिय कहा जाता।

    
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श्रढावान् --- आस्तिक, विश्वास के आदमी
श्रद्दधानाः --- विश्वास के साथ
श्रद्धः --- विश्वास
श्रद्धया --- विश्वास के साथ
श्रद्धयान्वितः --- विश्वास के साथ साथ
श्रद्धयान्विताः --- विश्वास के साथ
श्रद्धा --- (स्त्री) विश्वास
श्रद्धां --- विश्वास
श्रद्धावन्तः --- विश्वास और भक्ति के साथ
श्रद्धावान् --- एक वफादार आदमी
श्रम --- (पु) excertion के
श्रमजीविवादः --- सर्वहारावाद (पु)
श्रयति --- (प्रपु एक) तक पहुँचने के लिए
श्रवः --- होने के बारे में सुना (पुराने आदमी सीखा?)
श्रवण --- बीस 2 nashaktra है
श्रविष्टा --- बीस तीसरे नक्षत्र भी dhanishhThaa के रूप में जाना जाता है
श्राम्यति --- (4 पीपी) थक गया हो
श्रिताः --- की शरण लेने
श्रिवत्स --- विष्णु स्तन पर कर्ल
श्री --- एक नाम के प्रति सम्मान दिखाने से पहले जोड़ा गया
श्रीः --- धन
श्रीगणेशाय --- भगवान गणेश
श्रीदरूप --- lakshmii जैसी
श्रीपति --- लक्ष्मी के पति MahAvishhNu है
श्रीबुधकौशिक --- श्री budhakaushika (इस भजन के लेखक)
श्रीभगवानुवाच --- देवत्व की सुप्रीम व्यक्तित्व ने कहा
श्रीमच्छन्करभगवत्+चरणैः --- शंकराचार्य जो जाना जाता है
श्रीमत् --- माननीय उपसर्ग
श्रीमतं --- समृद्ध की
श्रीमद् --- सम्मान उपसर्ग
श्रीमान् --- `'श्री के साथ आदमी अर्थात् संपन्न आदमी
श्रीराम --- भगवान राम
श्रीरामं --- श्री राम
श्रीरामचंद्रचरणौ --- रामचंद्र के दो पैरों
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे --- भगवान sItArAma भाता के लिए
श्रीरामचंद्रम् --- रमा
श्रीरामदूतं --- राम के दूत
श्रीरामरक्षा --- भगवान राम की सुरक्षा
श्रुणोति --- (5 पीपी) सुनने के लिए
श्रुत --- ज्ञान
श्रुतं --- सुना
श्रुतवान् --- जानकार
श्रुतस्य --- सब है कि पहले से ही सुना है
श्रुति --- कान या वेद
श्रुतिपरायणाः --- सुनवाई की प्रक्रिया के लिए इच्छुक
श्रुतिमत् --- कान होने
श्रुती --- कि है जो i.e.ears सुनता
श्रुतेन --- अपरोक्ष (instr.S) के श्रवण, या अपरोक्ष 'वेद
श्रुतौ --- सुना गया
श्रुत्वा --- होने के बारे में सुना
श्रेणी --- स्केल
श्रेयः --- अच्छा
श्रेयान् --- अभी तक बेहतर
श्रेष्ठ :: सबसे अच्छा, निर्जीव और पशु-पक्षियों में समता सरल है; परन्तु इन्सानों में सम बुद्धि उत्पन्न करना अत्यंत कठिन है। व्यक्ति का आचरण देखकर भी जिसकी बुद्धि और विचार में कोई विषमता या पक्षपात नहीं होता; ऐसा सम बुद्धि वाला पुरुष श्रेष्ठ है;  Its easy to develop-grow equanimity towards lifeless, birds & animals, but really difficult to grow equanimity towards the humans of different behaviour, habits, nature, region, religion, attitude, culture, tendencies, mental level, social status etc. One is definitely a great man if he does not react-behave differently, without favor or discrimination, (contrast, abnormality, incongruity, inequality, disparity, irregularity). 
श्रेष्ठ मनुष्य जानता है कि सबमें एक ही परमात्मा विराजमान है। तत्व बोध होने से मनुष्य में सम भाव आता है और वह समबुद्धि हो जाता है। सुहृदय सिद्ध कर्म योगी पक्षपात रहित होकर सेवा, परमार्थ, पर हित करता है। जिसकी साधु और पापी में समबुद्धि हो गई हो निश्चय ही श्रेष्ठ है। समता की अपार असीम, अनन्त महिमा है। समदृष्टा किसी का बुरा नहीं मानता, बुरा नहीं करता, बुरा नहीं सोचता, किसी में बुराई नहीं देखता, किसी की बुराई नहीं सुनता और किसी की बुराई नहीं कहता-करता।
The great man do not react, show or bring and irrationality-abnormality, in their behaviour-dealings towards the friends, relatives, acquaintances, enemies-foes. The pious (righteous, virtuous, great soul) discriminate (differentiate, distinguish) while dealing with the sinners, for helping them in destitute (बेसहारा, दीन, निःसहाय, अकिंचन, निराश्रित, मुहताज, बेकस, निरालंब, निराश्रय, miserable, necessitous, penniless, unobtrusive, pauper, indigent, poor, needy, dependent, devoid, helpless, hapless, defenceless, helpless, homeless, house less) trouble-bad luck. The great souls-enlightened are aware that the same Almighty resides in all creatures-humans. The moment Tatv Gyan-gist of the Almighty comes to one, he acquires equanimity in him automatically. The accomplished, relinquished Karm Yogi with tender heart, helps every one, without discrimination. One is definitely-surely a great man if he has grown equanimity towards the devil-sinner and the saint-sage. The grandeur (बडप्पन, प्रताप, महिमा, शोभा, महत्व), greatness, (बडाई, अधिकार, भलमनसाहत, श्रेष्ठता, गुरुत्व) of equanimity is beyond limits, infinite. One who has attained equanimity, does take any thing against him to his heart, does not listen-mind bad words spoken to him by others, does not speak bad-slur against others, does not find fault with others,  does not listen any thing bad pertaining to others, and does not speak bad.
    
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श्रेष्ठः --- एक सम्मानजनक नेता
श्रेष्ठौ --- सबसे अच्छा (2 व्यक्तियों)
श्रोतव्यस्य --- सब कि सुना जा सकता है की ओर
श्रोतारम् --- एक कौन सुनता है
श्रोत्रं --- कान
श्रोत्रादीनि --- ऐसी सुनवाई प्रक्रिया के रूप में
श्लाघते --- (1 एपी) प्रशंसा
श्वः --- कल
श्वपाके --- कुत्ते भक्षक (चंडाल)
श्वशुर --- ससुर
श्वशुरान् --- पिता भाभी
श्वशूराः --- पिता भाभी
श्वसन् --- साँस लेने
श्वसिति --- साँस लेना
श्वान --- कुत्ता
श्वास --- सांस
श्वासप्रश्वास --- heaving और sighing
श्वेत --- सफेद (विशे)
श्वेतकेतः --- Shvetaketu (सफेद झंडा के साथ मान?)
श्वेतायसः --- स्टील (पु)

श्वेतैः --- सफेद रंग के साथ

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