Friday, June 24, 2016

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ज्ञ, GYA, gya
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
ज्ञान :: जिसके द्वारा जाना जाये, सब भूतों में एक परमात्मा का ज्ञान सात्विक, भेद ज्ञान राजस और अतात्विक ज्ञान तामस है। शरीर-क्षेत्र को जानने वाला क्षेत्रज्ञ और इन दोनों को सही रूप से जानना ज्ञान है।Human body is the KSHETR (physical-material entity) and the one who knows, understands, realises this is KSHETRAGY-POSSESSOR (Soul, divine-eternal). Identifying-understanding-realising of this fact is enlightenment-knowledge. 
ज्ञान योग :: नाशवान संसार-क्षर के सिद्धि और असिद्धि में सम रहना कर्म योग तथा  विमुख होकर अक्षर में स्थित होना ज्ञान योग है।
ज्ञानचक्षु :: विवेक जागृत होना। Enlightenment, growth of wisdom, awakening of prudence.
ज्ञ :: कौन जानता है 
ज्ञनकारक :: ज्ञान  उत्पन्न करने वाला 
ज्ञा :: पता करने के
ज्ञातचर :: जाना जाता है (विशे)
ज्ञातव्यं :: ज्ञेय
ज्ञाता :: जानने वाले का नाम ज्ञाता है।
ज्ञाति :: समुदाय (एक ही जाति के लोगों आदि)
ज्ञातुं :: पता करने के
ज्ञाते :: एहसास राज्य में
ज्ञातेन :: जानने के द्वारा
ज्ञात्वा :: अच्छी तरह से जानने
ज्ञान :: ज्ञान
ज्ञानं :: ज्ञान
ज्ञानः :: जिनके ज्ञान
ज्ञानी भक्त ::
उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्। 
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्॥
पहले कहे गए सबके सब, चारों ही भक्त बड़े उदार-श्रेष्ठ भाव वाले हैं। परन्तु ज्ञानी प्रेमी तो मेरा साक्षात्‌ स्वरूप ही है, ऐसा मेरा मत है; क्योंकि वह मद्गत मन-बुद्धि वाला ज्ञानी भक्त मुझसे अभिन्न है और उससे श्रेष्ठ-उत्तम दूसरी कोई गति नहीं है, ऐसे मुझमें ही दृढ़ता से स्थित है।[श्रीमद्भगवद्गीता 7.18]  
The devotees of the 4 types described-discussed earlier are very kind hearted & liberal, who excel in every field. I believe that the enlightened who loves ME, is just like ME. He can not be differentiated from ME and there is no other way of relinquishment better than this, since the steadfast in mind, he resorts to ME alone as the unsurpassed goal.
भगवान् का वो ज्ञानी अन्यन्य प्रेमी भक्त जो केवल प्रेमवश-भावुक होकर उसकी आराधना करता है, वही उदार है। उसमें केवल एक कामना शेष है कि परमात्मा में लीन हो जाये। वो संसार सागर, भोग-विलास, कामना, मोह-माया का त्याग कर चुका है। उसमें किसी प्रकार की मोह-ममता शेष नहीं है और वो समता की प्राप्ति भी कर चुका है। उसमें अद्वैतभाव उत्पन्न हो चुका है। सर्वोत्तम गति वह मानी गई है, जिसमें भक्त भक्ति के अतिरिक्त मोक्ष-मुक्ति की कामना भी नहीं करता। वह पूरी तरह परमात्मा के प्रति समर्पित है। यही भगवान् में लय होना है।
The devotee who is enlightened-liberal and loves the Almighty is considered to be the Ultimate devotee. No desire, affection, allurements, affiliation, ties, bonds are left in him. He has attained equanimity. The worldly temptations no more allure-attract him. He has reached that level where its not possible to distinguish between him and the others & the God either. He is not craving even for salvation-Liberation or Assimilation in the Almighty. He is fully devoted to the Almighty who has surrendered before HIM. Now there is no distinction between him & the Almighty.
The Ultimate movement of the devotee is that stage where he do not crave even for Salvation. He is completely devoted & immersed in the God.
ज्ञानगम्यं :: ज्ञान के द्वारा संपर्क किया जा
ज्ञानचक्षुषः :: जो ज्ञान की आँखों
ज्ञानचक्षुषा :: ज्ञान की दृष्टि से
ज्ञानदीपिते ::आत्मज्ञान के लिए आग्रह करता हूं की वजह से
ज्ञानप्लवेन ::  अध्यात्म ज्ञान की नाव; relating to a spiritual realm. 
ज्ञानमनंतं :: ज्ञान और इन्फिनिटी या मुक्ति
ज्ञानमयः :: ज्ञान से युक्त-पूर्ण-भरा
ज्ञानमयो :: ज्ञान की पूर्ण
ज्ञानयज्ञः :: ज्ञान के में बलिदान
ज्ञानयज्ञाः :: ट्रान्सेंडैंटल ज्ञान की उन्नति में बलिदान
ज्ञानयज्ञेन :: ज्ञान की खेती से
ज्ञानयोगेन :: ज्ञान से जोड़ने की प्रक्रिया से
ज्ञानवतां :: बुद्धिमान के
ज्ञानवान् ::सीखा
ज्ञानविहिनः :: (लेकिन) स्वयं के ज्ञान से महरूम
ज्ञानशब्दयोः :: ज्ञान और ध्वनि की
ज्ञानस्य :: ज्ञान की
ज्ञानाः :: ज्ञान
ज्ञानाग्निः :: ज्ञान की आग
ज्ञानात् :: ज्ञान से
ज्ञानानां :: सभी ज्ञान की
ज्ञानावस्थित :: अतिक्रमण में स्थित
ज्ञानिनः :: ज्ञाता की
ज्ञानिभ्यः ::बुद्धिमान से
ज्ञानी :: जो ज्ञान में है
ज्ञाने ::  ज्ञान में
ज्ञानेन :: ज्ञान के साथ
ज्ञानेनैव :: अपरोक्ष अकेले ज्ञान: + ईवा
ज्ञानेन्द्रिय :: ज्ञान का एक अंग है, पांच इंद्रियों अर्थात्
ज्ञायते :: ज्ञात
ज्ञायसे :: नाम से जाना जा सकता है
ज्ञास्यसि :: आप पता कर सकते हैं
ज्ञेयं :: होने के लिए जाना
ज्ञेयः :: पता होना चाहिए
ज्ञेयोसि :: तुम्हें जाना जा सकता है

ज्ञा --- पता करने के
ज्ञातचर --- जाना जाता है (विशे)
ज्ञातव्यं --- ज्ञेय
ज्ञाति --- समुदाय (एक ही जाति के लोगों आदि)
ज्ञातुं --- पता करने के
ज्ञाते --- एहसास राज्य में
ज्ञातेन --- जानने के द्वारा
ज्ञात्वा --- अच्छी तरह से जानने
ज्ञान --- ज्ञान
ज्ञानं --- ज्ञान
ज्ञानः --- जिनके ज्ञान
ज्ञानगम्यं --- ज्ञान के द्वारा संपर्क किया जा
ज्ञानचक्षुषः --- जो ज्ञान की आँखों
ज्ञानचक्षुषा --- ज्ञान की दृष्टि से
ज्ञानदीपिते --- आत्मज्ञान के लिए आग्रह करता हूं की वजह से
ज्ञानप्लवेन --- ट्रान्सेंडैंटल ज्ञान की नाव
ज्ञानमनंतं --- ज्ञान और इन्फिनिटी या मुक्ति
ज्ञानमयः --- (Masc. Nom.Sing) ज्ञान से भरा
ज्ञानमयो --- Gyana या ज्ञान की पूर्ण
ज्ञानयज्ञः --- ज्ञान के में बलिदान
ज्ञानयज्ञाः --- ट्रान्सेंडैंटल ज्ञान की उन्नति में बलिदान
ज्ञानयज्ञेन --- ज्ञान की खेती से
ज्ञानयोगेन --- ज्ञान से जोड़ने की प्रक्रिया से
ज्ञानवतां --- बुद्धिमान के
ज्ञानवान् --- सीखा
ज्ञानविहिनः --- (लेकिन) स्वयं के ज्ञान से महरूम
ज्ञानशब्दयोः --- ज्ञान और ध्वनि की
ज्ञानस्य --- ज्ञान की
ज्ञानाः --- ज्ञान
ज्ञानाग्निः --- ज्ञान की आग
ज्ञानात् --- ज्ञान से
ज्ञानानां --- सभी ज्ञान की
ज्ञानावस्थित --- अतिक्रमण में स्थित
ज्ञानिनः --- ज्ञाता की
ज्ञानिभ्यः --- बुद्धिमान से
ज्ञानी --- जो ज्ञान में है
ज्ञाने --- ज्ञान में
ज्ञानेन --- ज्ञान के साथ
ज्ञानेनैव :: अपरोक्ष अकेले ज्ञान,
ज्ञानेन्द्रिय --- ज्ञान का एक अंग है, पांच इंद्रियों अर्थात्
ज्ञायते --- ज्ञात
ज्ञायसे --- नाम से जाना जा सकता है
ज्ञास्यसि --- आप पता कर सकते हैं
ज्ञेय :: जानने में आने वाली वस्तु .
ज्ञेयं --- होने के लिए जाना
ज्ञेयः --- पता होना चाहिए
ज्ञेयोसि --- तुम्हें जाना जा सकता है
 
    
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