Friday, June 24, 2016

IDIOT, DUFFER, IMPRUDENT, STUPID मूढ़ता, मूर्ख, बुद्धिहीन

IDIOT, DUFFER, IMPRUDENT, STUPID
मूर्ख, बुद्धिहीन 
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
मूर्खों के पाँच लक्षण ::
 
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा। क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥
मूर्खों के पाँच लक्षण :- गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों-विचारों का अनादर।
Idiots-fools five characteristics-signs :- Pride-ego, abusive-foul language, anger, stubbornness (argumentation-useless) discussion-debate and disrespect for other's opinion (ideas-thoughts).
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते।
विश्वसिति मूढचेता नराधमः॥
बिना बुलाए स्थानों पर जाना, बिना पूछे बहुत बोलना, विश्वास नहीं करने लायक व्यक्ति-चीजों पर विश्वास करना; ये सभी मूर्ख और बुरे लोगों के लक्षण हैं।
Do not go uninvited to a party-person, do not talk unless asked to do so or give your opinion, do not interfere in others affairs, never believe the unreliable. These are the signs of idiots-duffers.
मूरख को समझावते समझावते, ज्ञान गाँठी का जाय।
कोयला भी न होय उजला, सौ मन साबुन लगाये॥
बार बार मूरख को समझाने के बाद भी अगर वो समझता ही नहीं, कभी कभी यह बात मूरख को समझाने वालों के समझ में ही नहीं आती है, वो बार बार फिरसे मूरख को समझाने की कोशिश करते है और अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवाता है।[कबीर] 
अगर मूर्ख को बार-बार समझाने से वो समझता नहीं है और फिर भी आप बार-बार उसे समझाने की कोशिश कर रहे है, तो फिर यह आपकी मूर्खता है।
अगर मूरख को बार बार समझाने से वो समझता नहीं है और फिर भी आप बार बार उसे समझाने की कोशिश कर रहे है, तो फिर यह आपकी मूर्खता है।
मूर्खता (stupidity) :- Stupid Behaviour by non stupid person. Person who is intellectual but blind.
Idiot :- a person of low intelligence.
मूर्खोSपि मूर्खं दृष्ट्वा च चन्दनादतिशीतलः।
यदि पश्यति विद्वांसं मन्यते पितृघातकंम्
एक मूर्ख व्यक्ति यदि अपने ही समान किसी अन्य  मूर्ख व्यक्ति को देखता  है तो उसे चन्दन का लेप करने के समान शीतलता का अनुभव होता है, परन्तु यदि उस का सामना किसी विद्वान् व्यक्ति से होता है तो वह ऐसा अनुभव या व्यवहार करता जैसे है कि मानो वह किसी  ऐसे नीच व्यक्ति से मिल रहा है जिसने अपने पिता का वध किया हो। 
When a foolish, ignorant, idiot person meets another foolish-ignorant person, he feels coolness, peace like having sandalwood paste over his body. However, when he meets a scholar or a learned person, he thinks as if he is meeting with a lowly person who has committed the sin of patricide.
Majority consists of fools. One should determine his company-companions after due consideration-thought.
मूर्खस्तु परिहर्त्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिद्यते वाक्य शल्येन अद्र्ष्ट: कंटकं यथा॥
मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए; उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के समान हैं, जो अपने धारदार वचनों से वैसे ही हदय को छलनी करता है, जैसे अदृश्य काँटा शरीर में घुसकर छलनी करता है।[चाणक्य नीति 3.7] 
The company-friendship (association, dealings) with fools who are just like the two legged animals, is like the invisible thorn pierced in the heart-body paining (rendering, hurting) all the time through his foul words.
Though with two legs, yet idiot (imprudent, moron, stupid, ignorant, duffer, fool, sycophant) is like an animal because he lacks prudence and is unaware of right or wrong, what to do what not to do, consequences of his deeds (acts, actions, untimely unrefined words-speech) lack of etiquette. He is like the thorn pierced in the body troubling-paining all the time. One is advised not to participate-remain in the company of such people.
The actions of a fool are meant for self destruction. He lacks vision and  far sight. His language, words may be troubling-torturing to the civilise-cultured. He is irrational and vulnerable to tensions (ill effects, tortures, troubles, difficulties). Always try to keep off-abandon such people.
अन्तःसार विहीनानामुपदेशो न जायते।
मलयाचलसङ्गसर्गात् न वेणुश्चन्दनायते
जिस व्यक्ति के अन्तर्मन मन में सीखने की इच्छा नहीं है (या जिसके पास बुद्धि-दिमाँग नहीं है), उसे उपदेश देना, पढ़ाना-सिखाना उसी तरह व्यर्थ है, जिस प्रकार मलय पर्वत से चन्दन की खुशबु बाँस में नहीं आ सकती।[चाणक्य नीति 10.8] 
One who lack brain or desire to learn can not be taught-improved just like the bamboo, which remain unaffected by the scent of scandal wood from Malay Parwat.
Its no use teaching-preaching the people whose innerself-brain, mind is empty-those who do not possess any quality-wisdom. The effort will go waste just as the air bearing the scent of sandal wood from Malyanchal hills is unable to transfer it to the bamboo.
This situation is icon-similar to those people who are crude, raw, hardened criminals, outlaws who can not be reformed. They are brutal, criminal minds. Their mentality can not be changed. 
The politicians belonging to scheduled caste, scheduled tribes, back ward communities can not improve.
One can not turn an ass into a cow even after washing it with 100 quintals of soap. 
Its easy to take the horse to water, but impossible to make him drink.
(1). काग पढ़ाये पींजरा, पढ़ गये चारों वेद; सुध आयी जब कुटुम्ब की, रहे ढ़ेड़ के ढ़ेड़। 
(2). मूरख को समझावते-समझावते, ज्ञान गाँठी का जाय। 
कोयला भया न  ऊज़रा, सौ मन साबुन खाय॥[कबीर]
(3). कोयला भी हो ऊजला, जरि बरि है जो सेव। 
मूरख होय न ऊजला, ज्यों कालर का खेत॥[कबीर] 
जूते भले ही सर पे रख लो, रहेंगे जूते ही। 
Beneficiaries of reservations have not improved their brain in spite of their 3 generations getting it.
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम्।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति
जिस प्रकार एक अंधे आदमी को आईने से कोई लाभ नहीं होता, उसी प्रकार जिस मनुष्य के पास बुद्धि नहीं है (अक्ल का अँधा), शास्त्र उसकी कोई मदद नहीं कर सकता।[चाणक्य नीति 10.9] 
The manner in which the mirror is of no use for a blind person, the scriptures, Veds can not help one, who has who has no brain (Memory, grasping power, ideas, thoughts, understanding, application, skill).
A person who do not possess intelligence (brain power, mind), capacity to think, analyse, adopt, react, can not be improved, educated, enlightened by using the scriptures-epics Its just like showing mirror to the blind.
Such people always react in opposite direction. They consider scriptures to be fake, fraud, taboo, useless. One can not wash the brains of these narrow minded-misguided, imprudent people.
यह ऐसा ही है :- जैसे भैंस के आगे बीन बजाना। अंधे के आगे रोवे, अपने नैना खोवे। आँख के अंधे, नाम नैन सुख। 
शम :: absence of passions-sensuality-sexuality, peace of mind, quite.
शम-दमादि गुण :: इनका आधार योगाभ्यास में तत्पर योगी अपनी योग विद्या के प्रचार से योग विद्या चाहने वालों का आत्म बल बढ़ाता हुआ सब जगह सूर्य के समान प्रकाशित होता है। मर्यादा-भक्ति में भगवद्प्राप्ति शमदमादि साधनों से होती है, किंतु पुष्टि-भक्ति में भक्त को किसी साधन की आवश्यकता न होकर मात्र भगवद्कृपा का आश्रय होता है। मर्यादा-भक्ति स्वीकार्य करते हुए भी पुष्टि-भक्ति ही श्रेष्ठ मानी गई है।
शक्य :: शक्ति, सामर्थ, संभावना; possibility, potentate, potential, feasible.
शक्ति :: जिसकी सहायता से बीज मन्त्र बन जाता है वह तत्व शक्ति कहलाता है। उसका न्यास पाद स्थान में करते हैं।
श्लेष्मातक (लभरा, लिटोरा, लसोड़ा) :: लसलसा-चिपचिपा गूदा, मँझोले आकार का पेड़ जिसके पत्ते बीड़ी बनाने के काम आते हैं, छोटे बेर की झाड़ी के बराबर फल गुच्छे के रूप में लगते हैं,  खाँसी, दमे आदि रोगों में गुणकारी; Cordia myxa. 
शठ :: गुरु, देवता और शास्त्रों में जिनकी श्रद्धा न हो; शातिर,  दुष्ट, चालाक, मक्कार,  कुटिल, शैतान, चतुर, दक्ष, शातिर, चालू, बेईमान, कपटी, असत, प्रवंचक, ढीला, मिथ्या, छलिया, झूठा, ढोंगी, धूर्त, दुर्जन; one who has no respect for the Guru, demigods, deities and the scriptures, rascal, rogue, astute, crafty, fraudulent, vicious, wicked, deceitful,  unprincipled roguish, crafty, cunning, dishonest, fraudulent, chatter,  
शठता :: दुष्टता; craftiness, cunningness, roguery.
शपथ :: कसम; oath, swearing. 
सत्येन शापयेद्विप्रं क्षत्रियं वाहनायुधैः। 
गोबीजकाञ्चनैर्वैश्यं शूद्रं सर्वैस्तु पातकैः॥[मनु स्मृति 8.113]
ब्राह्मण से सत्य की शपथ कराये, क्षत्रिय से वाहन तथा शस्त्र की वैश्य से गौ, अन्न और धन की और शूद्र से सब पाप लगने की शपथ करवावे। 
The judge should put the witness under oath by asking the Brahmns to swear for the truth, the Kshatriy for his vehicles and the weapons, the Vaeshy for the cows, wealth & the food grains and the Shudr may be asked to swear for all kinds of sins (imprecating-involvement in a crime,  on his own head-the guilt).
अग्निं वाहारयेदेनमप्सु चैनं निमज्जयेत्। 
पुत्रदारस्य वाप्येनं शिरांसि स्पर्शयेत्पृथक्॥[मनु स्मृति 8.114]
अथवा उससे अग्नि की परीक्षा शास्त्रोक्त विधि से करावे या पानी में गोता लगवावे या बेटे और स्त्री के मस्तक पर अलग-अलग हाथ रखवावे। 
The judge may resort the witness to testing under fire as per procedure laid down in the scriptures or ask him to take a dip in water or put his hands over the head of his son or wife to swear.
Even today people like Kejriwal-Delhi Chief Minister, swear by putting their hands over the heads of their progeny to show that they are not telling a lie, even though they speak blatant lies. Kejriwal retracted his words in the courts at least 42 times for making false accusations against the opponents. He is a congenital expert is telling all sorts of lies and bluffing the public. However, other politicians are not far behind. Such people deserve hells and tortures, pain sorrow in their present birth, simultaneously. He is not an isolated case, almost all politicians speak rubbish under oath or in their speeches outside and inside the parliament. One can easily judge their next incarnations.
यमिद्धो न दहत्यग्निरापो नोन्मज्जयन्ति च। 
न चातिमृच्छति क्षिप्रं स ज्ञेय शपथे शुचिः॥[मनु स्मृति 8.115]
जिसको आग नहीं जलाती, पानी ऊपर नहीं उठता और जिसे कोई बड़ी पीड़ा नहीं होती, उसे शपथ में पवित्र समझना चाहिये। 
One, who is not burnt by the fire, water does not rise upwards and he do not feel pain, should be considered pure-pious, honest for witness under oath.
During Kaliyug the judge should not practice this.
शरणागति :: shelter, asylum, protection, refuge.  
शालीनता :: भद्रता, भद्र-सभ्य व्यवहार, well mannered, complacency, courtesy, decency, graciousness. 
शाश्वत :: हिन्दु धर्म सनातन शाश्वत है।  सूर्य का पूर्व से निकलना शाश्वत है। गीता का ज्ञान पूरे विश्व-जनता  के लिये शाश्वत है। राधा और कृष्ण का प्रेम शाश्वत है।आयु और शरीर का सम्बन्ध शाश्वत है और जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु शाश्वत है।Perpetual-which prolong infinitely-forever.
शाश्वत :: विरल, चिरंतन, सदैव के लिए; perpetual-in perpetuity, sempiternal.
शाश्वतता :: शाश्वत, निरंतरता; eternity, perpetuity.
शिखा ::  "दीर्घायुत्वाय बलाय वर्चसे शिखायै वषट्" 
शिखा तेज को बढ़ाती है, दीर्घ आयु तथा बलवर्धक भी है। इसीलिए जपादि, पाठादि के पूर्व शिखा का स्पर्श करके न्यास किया जाता है। शिखा ज्ञान शक्ति में वृद्धि करने के साथ-साथ मनुष्य को चैतन्य बनाती है। शिखा का स्थान सिर पर सहस्त्रार चक्र का केंद्र है। बुद्धि चक्र एवं ब्रह्मरंध्र के ऊपर सहस्त्र दल कमल का अधिष्ठान है। जब जातक चिन्तन, मनन आदि करता है या ध्यानलीन होता है; तब ध्यान से उत्पन्न अमृत तत्व सहस्रदल कर्णिका में प्रविष्ट करके सिर से बाहर निकलने का प्रयत्न करता है। इस समय यदि शिखा में ग्रंथि नहीं लगी होतो अमृत तत्व शरीर में ही रह कर जातक का कल्याण करता है। यही शिखा की महत्ता है। शिखा के नीचे पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका (Pituitary gland) जो कि एक अंत:स्रावी ग्रंथि है का निवास है। 
शिशु चान्द्रायण व्रत ::
चतुरः प्रातरश्नीयात्पिण्डान्विप्रः समाहितः।
चतुरोऽस्तमिते सूर्ये शिशुचान्द्रायणं स्मृतम्11.219॥
एक मास तक चार ग्रास सबेरे और चार ग्रास शाम को नियम से भोजन करे। इसको शिशु चान्द्रायण व्रत मुनियों ने कहा है। 
One willing to take penances should eat four mouthfuls of food in the morning & four mouthfuls in the evening regularly. The sages have termed it as Shishu Chandrayan Vrat.
शास्त्र :: treatise, scriptures. The term is broadly used for Veds, Upnishads, Brahmns, Ramayan, Maha Bharat and Itihas-History.
शील :: नम्रता, विनय, लाज, विनयशीलता, विशुद्धता, धार्मिकता, पुण्यशीलता, धर्मनिष्ठा, पुण्यात्मा होने का गुण, साधुता, विनीत भाव; modesty, piety, politeness.
Modesty-character is the main quality (characterise, trait) of a person. Wealth, longevity and relatives are of no use for the one, who has lost his goodness.
शोक :: sorrow, condolences, mourning, grief.
शुभ :: auspicious.
शूद्र :: पैसे लेकर दूसरों की सेवा-नौकरी करने वाले शूद्र है, गन्दा रहने वाला, स्नान न करने वाला अछूत है, मैला-कुचैला रहने वाला अछूत है; The definition of Shudr given by the dictionary and the translators is totally wrong. Shudr never mean untouchable. Anyone who remain unclean is untouchable. Shudr and slave are two different things. An ignorant, illiterate, unthoughtful who serves others for money sake is a Shudr.  
As per scriptures-Shastr, anyone who serves others is a Shudr.
शोभा :: सौंदर्य, सुंदरता, शोभा, सौम्यता, सौष्ठव, चमक, द्युति, आभा, आलोक, तेज, महिमा, प्रताप, प्रतिष्ठा, गर्व, यश;  beauty, grace, glory, lustre.
शौर्य ::मन में अपने धर्म को पालन की तत्परता, धर्म युद्ध में जो कि परिस्थितिवश प्राप्त हुआ है, में बगैर इच्छा, विचार, स्वार्थ के शामिल होना शौर्य है।
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
वने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः
जिसके पास बुद्धि है, उसमें बल है। एक बेवकूफ-निबुद्धि व्यक्ति निर्बल होता है। एक खरगोश अपनी चतुराई से घमण्डी शेर को नष्ट कर सकता है।[चाणक्य नीति 10.16] 
One who is blessed with intelligence has power, might, strength, like a rabbit who can eliminate the lion by making use of his brain power-mind.
A lion used to kill animals indiscriminately in the jungle. Animals prayed to him that one of them will offer himself to the lion for food every day. The lion agreed. One day, it was the turn of rabbit. The rabbit made a plan to get rid of the lion. He became late to the lion, knowingly. The lion grew angry with him. As soon as the rabbit reached his den, he explained that he was interrupted by another lion on the way and that the rabbit had promised to return with the lion to  him. The lion at once moved with him in a fit of anger-rage. Ultimately, they reached a deep well. The rabbit told that the other loin was there inside the well. Lion roared at his shadow in the well. The echo returned louder. Lion jumped into the well to take revenge from the his shadow  and died.
This is a story from Panch Tantr, written by Vishnu Gupt (Chanky, Kautily).
निवृत्तिरपि मूढस्य प्रवृत्ति रुपजायते।
प्रवृत्तिरपि धीरस्य निवृत्तिफलभागिनी॥
मूढ़ व्यक्ति में इन्द्रिय संयम की निवृत्ति भी प्रवृत्ति ही है, क्योंकि उसे अहंकार से निवृत्ति नहीं प्राप्त हुई है। जबकि ज्ञानी-धीर व्यक्ति की प्रवृत्ति भी निवृत्ति के समान फल दायक है, क्योंकि उसे अभिमान-अहंकार नहीं है। अहंकार-अभिमान विनाश के कारण हैं।
[अष्टावक्र गीता 18.61] 
हिरण्यकश्यप, रावण, कंस और शिशुपाल का अन्त उसे अहंकार के वश ही हुआ था। 
The ignorant pleads-pretends  to be free from sensualities-passions, sexuality and all actions though in fact he is still aligned-inclined towards to them. Abstention from action by him, leads to actions.  The action of the wise-enlightened are free from outcome-result since he has surrendered them to the Almighty. Thus his actions also turn into in actions.
निरोधादीनि कर्माणि जहाति जडधीर्यदि।
मनोरथान् प्रलापांश्च कर्तुमाप्नोत्यतत्क्षणात्॥
जड़ बुद्धि वाला-अज्ञानी यदि चित्त के निरोध आदि कर्मों को छोड़ भी दे, तो भी वह अगले ही क्षण बड़े-बड़े मनोरथ बनाने और प्रलाप करने लगता है।
[अष्टावक्र गीता 18.75]  
Even if the imprudent-ignorant, a man of low intelligence, give up activities like the elimination, control, commanding of thoughts-ideas, he start planning big maneuvers-projects and start discussing, talking, crying.
मन्दः श्रुत्वापि तद्वस्तु न जहाति विमूढतां।
निर्विकल्पो बहिर्यत्नादन्तर्विषयलालसः॥
अज्ञानी-मूढ़, तत्त्व-आत्मा का श्रवण करके भी अपनी मूर्खता का त्याग नहीं करता, वह बाह्य रूप से तो निसंकल्प हो जाता है, पर उसके अंतर्मन में विषयों की इच्छा बनी रहती है।
[अष्टावक्र गीता 18.76]  
The ignorant, imprudent, fool does not get rid of his stupidity-tendency to commit mistakes, even after listening the innerself-voice of his soul. Outwardly, he get rid of desires-ambitions, but the desire to achieve remains in his innerself.
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि॥
परन्तु उन तुच्छ-अल्प बुद्धि वाले मनुष्यों को उन देवताओं की आराधना का अन्तवाला, (नष्ट होने वाला, अस्थाई) फल ही मिलता है। देवताओं का पूजन करने वाले देवताओं को और मेरा पूजन करने वाले मुझे प्राप्त होते हैं।[श्रीमद्भगवद्गीता 7.23] 
Those with limited vision-ignorance, who worship the deities (demigods, lesser gods) gets the reward for praying them which is limited to a fixed life span and those who worship the Almighty obtain the reward which is everlasting.
देवताओं का कार्यकाल सीमित और अस्थाई है। जो उनकी पूजा अर्चना करता है, वो उन्हीं को प्राप्त करता है, क्योंकि देवगण भी नाशवान हैं; अतः उनके द्वारा दिया गया फल-वरदान भी समाप्त होगा ही। हाँ अगर कोई व्यक्ति बगैर किसी कामना-इच्छा के देवी-देवताओं को परमात्मा से अभिन्न मानकर और उनका ही स्वरूप-प्रतिरूप समझकर उनकी पूजा, अर्चना, सेवा करता है, तो उसे अविनाशी फल-भगवत्प्राप्ति हो सकती है। फल की प्राप्ति भगवान् के विधान से और उसका नष्ट होना उसके साथ कामना का संगम है। जिस कार्य में विधि-विधान, नियम-उपनियम, कार्य-कलाप ज्यादा हों, शक्ति का व्यय ज्यादा हो, बन्धन अधिक हों, वो अल्प-हीन बुद्धि वालों का मार्ग है। परमात्म प्राप्ति का मार्ग सुगम, सरल है। परमात्म प्राप्ति हेतु मात्र भक्ति, धर्म की मर्यादा का पालन, प्राणी मात्र की (जो उसके योग्य हो, अधिकारी हो) निसंकोच मदद, अपने कार्य, वर्णाश्रम धर्म  का निर्वाहन ही काफ़ी है।परमात्मा हर प्राणी को अपना मानते हैं। अतः निकृष्ट से निकृष्ट-घृणित मनुष्य भी परमात्मा की शरण ग्रहण करने पर उन्हें प्राप्त कर ही लेता है। 
The tenure and capabilities of the deities are limited-restricted. One who prays them is sure to get their abode or the reward, he deserves. Deities themselves are bound to perish at a certain juncture of time. Similarly, the award granted by them is meant for a fixed period of time and bound to collapse. But, if one is devoted to a certain deity as a component of the Almighty without any desire-reward, he might be able to swim across the vast ocean of virtues & the sins, birth & the death. The prayers of deities are typical, procedural, methodical and intricate. Slightest possible error-mistake ruins the efforts and may even lead to adverse results. The prayer-worship of the Almighty is simple. Whole hearted devotion to HIM, asylum under HIM, serving the deserving needy, weak, poor, commitment to own work-job, Varnashram Dharm is enough. One who care for the Dharm-Varnashram Dharm, is bound to be free from the never ending cycles of birth & death. One who committed himself to the God, relinquishes himself, even though he is the worst possible sinner. Ultimately, he too is a constituent of the God.
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्॥
बुद्धिहीन पुरुष मेरे परम अविनाशी और सर्वश्रेष्ठ भाव को न जानते हुए अव्यक्त (मन-इन्द्रियों से परे) मुझ (सच्चिदानन्द घन परमात्मा) को मनुष्य की भाँति शरीर धारण करने वाला मानते हैं।[श्रीमद्भगवद्गीता 7.24]
The foolish, ignorant, morons, duffers, idiots, imprudent consider-regard ME as an ordinary-common human being, who takes birth and dies, without realising that I AM the Supreme God-Lord, Almighty (Ultimate, Eternal), who is free from the sequence of birth & death, beyond the reach of senses-thoughts & is immutable-never ending.
निर्बुद्धि, अविवेकी, ज्ञान शून्य, श्रद्धाहीन मनुष्य, परमात्मा को भी एक सामान्य पैदा होने और मरने वाले व्यक्ति-प्राणी के रूप में देखता है। वह सर्वश्रेष्ठ, सोचने-समझने की सीमा से परे-ऊपर है। वह देश, काल, समय की सीमाओं-प्रभाव से ऊपर है। वह अविनाशी पर ब्रह्म परमेश्वर सदा एक रूप, निर्मल, असम्बद्ध है। निर्बुद्धि आम आदमी देवी-देवताओं को उससे ऊपर मानकर-समझकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। अविनाशी परमेश्वर समस्त लोकों-ईश्वरों का ईश्वर, प्रकृति का नियामक-संचालक होकर भी बुद्धिहीन, अज्ञानी, शास्त्र ज्ञान रहित, की समझ से परे है। महाभूत :- आकाश, वायु, अग्नि-तेज़, जल तथा पृथ्वी; विकारी और विनाशी  हैं तथा स्थूल-साकार और सूक्ष्म-आणविक, दोनों  ही रूपों में हैं। इसी प्रकार परमात्मा साकार और निराकार, सगुण और निर्गुण, व्यक्त और अव्यक्त, लौकिक और अलौकिक-पारलौकिक दोनों ही रूपों-अवस्थाओं में है। 
The foolish, duffers, idiots, imprudent, ignorant, illiterate, uneducated, unaware of the Shastr-scriptures (epics, history); consider-regard the Almighty as an ordinary-common human being, who takes birth and dies. The Almighty is beyond the limits of mind-sense organs, thoughts-ideas of, even the most genius (super intelligent, intellectuals, philosophers, scholars). HE is beyond the limits of place & time. HE is always pure, content and unattached. The ignorant prays-worship the demigods (deities, lessor Gods) considering them to be significant-important and prays them for the fulfilment of their unending desires. Imperishable Par Brahm Parmeshwar-the Almighty is above all abodes, HE is the Lord of Lords-Gods. HE evolved the nature (infinite universes, cosmoses, galaxies) and controls it, which is beyond the understanding of the ignorant, morons. The 5 basic causes-factors behind evolution (which is destructible-perishable) are :- Earth, Sky, Fire-Tej-energy, Air and Water; which are capable of acquiring two forms, the first physical with shape and size and the second nuclear-without definite shape & size. The Almighty is both with physical form and formless, with characters (characteristics, traits, qualities) & without them, defined & undefined, pertaining to this universe and other abodes simultaneously.
नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्॥
यह जो मूढ़ मनुष्य-समुदाय मुझे अज़ और अविनाशी को ठीक तरह नहीं जानता-मानता, उन सबके सामने अपनी योग माया से अच्छी तरह छिपा हुआ मैं प्रत्यक्ष नहीं होता (इसलिए यह अज्ञानी जन समुदाय मुझ जन्म रहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है)।[श्रीमद्भगवद्गीता 7.25]
The unborn and imperishable Almighty has covered HIMSELF under the shroud (veil, cover, आवरण, पर्दा) of illusion-Yog Maya (hypnotic power, cast, mesmerise, spell) and does not manifest to all.
परमात्मा अज़ और अविनाशी, जन्म-मृत्यु से परे हैं। वे प्रकट होने-अवतार और अन्तर्धान होने की लीला करते हैं। जो प्रभु को जन्मने और मरने वाला मानते हैं, वे मूढ़ हैं। मनुष्य द्वारा स्वयं को शरीर के साथ जोड़ने से उसकी दृष्टि पर आवरण-पर्दा पड़ जाता है। मालिक की योग माया और मनुष्य की मूढ़ता के कारण संसार से जुड़ा हुआ व्यक्ति उन्हें अपने समान ही मान लेता है। भगवान् के शरणागत-आश्रित को भगवत बोध होता है, क्योंकि भगवान् ने उसका अज्ञान और अपनी माया को उस पर कार्य करने से रोक रखा है। जो निकृष्ट उसे जानना और मानना ही नहीं चाहते, प्रभु उसके समक्ष प्रकट कैसे हों?! अवतारकाल में प्रभु लौकिक दिखने के बावज़ूद अलौकिक ही रहते हैं। भगवान् श्री कृष्ण ने धृतराष्ट्र के दरबार में अपना विशाल-अलौकिक रूप प्रकट भी किया तो दुर्योधन, कर्ण, शकुनि जैसे लोग उसे बाज़ीगरी ही समझते रहे। परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करने के बाद भी वहाँ उपस्थित अन्य लोगों को भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई, क्योंकि सभी कर्म बन्धन, मनोवृति, मूढ़ता, प्रवृति, प्रकृति से बँधे थे। 
The unborn and imperishable Almighty is beyond the impact of life & death. HE just reveals HIMSELF through various incarnations and disappear, like the Sun which comes out of the clouds and disappear or the clouds which form for a few moments in the sky and disappear. Those who consider the God to take birth and die are ignorant (fools, morons, lacks understanding, imprudent). Their intelligence has been shrouded-covered by the illusion Yog Maya-hypnotic power of the God. Such people are always under the cast-spell of the God. One who believes HIM to be merely a physical entity-body, is attached with the world-universe firmly and can not break the spell-bonds formed by him in terms of relations, attachments, allurements. For him, the Almighty is one of his group mates. There are the few devoted to HIM, under HIS asylum, who understands the reality and become Liberated. One at the lowest level of knowledge, understanding, prudence never desire to seek HIS divine appearance-invocation. God reveals  HIMSELF just like ordinary humans but in fact HE remain DIVINE in that situation as well. Bhagwan Shri Krashn revealed HIMSELF in the court of Dhratrashtr while showing HIS gigantic (mighty, enormous) shape & size, but the ignorant-egoistic like Duryodhan, Karn and Shakuni considered it to be an act of jugglery. Still, they felt fear. Those who were present in the court could not get Salvation since all of them were tied to their destiny, fate-impact of their deeds in previous incarnations.
इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप॥
हे भरतवंश में उत्पन्न शत्रुतापन अर्जुन! इच्छा-राग और द्वेष से उत्पन्न होने वाले द्वन्द-मोह से मोहित सम्पूर्ण प्राणी संसार में अनादिकाल से मूढ़ता को, जन्म-मरण को प्राप्त हो रहे हैं।[श्रीमद्भगवद्गीता 7.27]
Hey Arjun! The tormentor-harasser of the foes born in Bharat dynasty! Desires, attachments, allurements aided by enmity generate-create, never ending chain of struggle (problems, tensions, troubles, tortures), affections & illusions in the creatures, which pushes them to imprudence, ignorance, congenital idiocy creating  a web of repeated birth & deaths ever since the universe came into existence.
इच्छाएँ और द्वेष मनुष्य के मस्तिष्क में ख़लल (खराबी, द्वंद-मोह) उत्पन्न करते हैं। कामनाओं की ये ऐसी दलदल हैं, जिसमें मनुष्य एक बार फँसा तो बाहर निकलना बड़ा मुश्किल है। पुनर्जन्म का मूलभूत कारण कभी खत्म न होने वाली इच्छाएँ हैं, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। इस दलदल से वही निकल पाता है, जिसने स्वयं को परमात्मा के आगे समर्पित कर दिया हो। डूबते को तिनके का सहारा बन जाता है, हरी स्मरण! प्रभु की शरण में जाते ही, मोह के बंधन कटने लगते हैं और मुक्ति-मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
Never ending desires create obstacles-disturbance in the thinking process of the humans. Prudence is lost and the individual starts sinking in the swamp of lust, sensuality, sexuality, lasciviousness, possessions, wealth, comforts, luxuries  and distances himself from the God. This leads him to unending process of births & deaths, like the spider's web. There is no end to desires; but they can be reined-controlled through the worship, asylum under the God. One, who is drowning seeks protection from the smallest possible source like a straw, then why not the Almighty HIMSELF! The moment one goes to HIM, his problems starts reducing slowly and gradually, bit by bit. Never expect miracles. Sins of billions of births can not be cut over night. Have faith in HIM and the bonds of sins will be cut leading to Liberation-Salvation, slowly, gradually but certainly.
Hey Arjun! The tormentor-harasser of the foes born in Bharat dynasty! Desires, attachments, allurements aided by enmity generate-create, never ending chain of struggle (problems, tensions, troubles, tortures), affections & illusions in the creatures, which pushes them to imprudence, ignorance, congenital idiocy creating  a web of repeated birth & deaths ever since the universe came into existence.
मूर्ख संग ना कीजिए, लोहा जलि ना तिराई। 
कदली सीप भुजंग मुख, एक बूंद तिहं पाई॥
मूर्ख की संगत नहीं करनी चाहिए, मूर्खों की संगत से केवल दुख, समस्या और अशांति ही मिलती है, जैसे लोहा जल पर नहीं तैर सकता, वैसे ही मूर्ख की संगत से कोई लाभ नहीं मिल सकता है।
स्वाति नक्षत्र में जब बरसात के जल की बूँद केले के पत्ते पर पड़ती है, तो वह कपूर बन जाती है, सीप में पड़ती है तो वह मोती बन जाती है, और साँप के मुँह में पड़ती है तो वह विष बन जाती है, जैसी संगत होती है वैसी रंगत चढ़ जाती है।[सुभाषितानि]
Avoid the company of duffers-idiots. They just create pain, sorrow, tensions. The way the ordinary piece of iron can not swim-float over water (not ship), company of ignorant is useless.
A drop of rain water that falls over banana converts into camphor during Swati Nakshtr while it converts into poison if it falls in the mouth of snake. 
अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामना:।
अर्थश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधै:
जो व्यक्ति ज्ञान रहित होकर भी उद्धत (tearing, insubordinate, conceited) है, दरिद्र होकर भी बड़ी-बड़ी अभिलाषाएं करता है-योजनाएं बनाता है और बिना कर्म किये अथवा अनुचित कर्मों से एश्वर्य को प्राप्त करना चाहता है, अति मूर्ख है, ऐसा पण्डितों द्वारा कहा जाता है अर्थात् पण्डित जन उसे मूर्ख कहते है।[विदुर नीति 43]
The ignorant-illiterate who is conceited, plans too big in spite of being poor, want to earn money through evil-wicked deeds, without making honest-genuine efforts is extreme idiot; is opined by the learned-scholars.
संसारयति कृत्यानि सर्वत्र विचिकित्सते।
चिरं करोति क्षिप्रार्थे स मूढो भरतर्षभ
जो व्यक्ति अनावश्यक कार्यों को फैलाता है, अनावश्यक कर्म करता है अर्थात् स्वयं न करके भृत्यों के द्वारा करवाता है, सबके प्रति संदेह करता है और शीघ्र करने योग्य कार्यों में विलम्ब करता है, वह मूर्ख कहलाता है।[विदुर नीति 44]
One who unnecessarily delays essential-urgent jobs-projects, depends over others for the deeds which should be done by him himself, doubts each & every one; is a fool.
Its of no use working with idiots, duffers, ignorant people. Such people become worst masters like the politicians in India. Include those who reach high offices due to reservation, not their talent.
नापृष्ट: कस्यचिद् ब्रयान्नाप्यन्यायेन पृच्छत:।
ज्ञानवानपि मेधवी जड़वत् समुपाविशेत्
बुद्धिमान् व्यक्ति-ज्ञानी बिना पूछे किसी को कोई उपदेश न करें। अन्यायपूर्वक पूछने पर भी किसी के प्रश्न का उत्तर न दे; जड़ (मूर्ख) की भाँति चुपचाप बैठा रहे।[महा.शान्तिपर्व 58.12]
The learned (scholar, enlightened, philosopher, Brahmn, Pandit) should never advise a person without being requested-asked. He should act like an ignorant (dumb & deaf) if one unduly compel-forces him to do so.
अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते। विश्वसिति मूढचेता नराधमः॥
बिना बुलाए स्थानों पर जाना, बिना पूछे बहुत बोलना, विश्वास नहीं करने लायक व्यक्ति-चीजों पर विश्वास करना; ये सभी मूर्ख और बुरे लोगों के लक्षण हैं।
Do not go uninvited to a party-person, do not talk unless asked to do so or give your opinion, do not interfere in others affairs, never believe the unreliable. These are the signs of idiots-duffers.
बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धन। 
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः॥
जो व्यक्ति धर्म (कर्तव्य) से विमुख होता है वह (व्यक्ति) बलवान हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है।
A person deprived off his responsibilities-duties, though mighty is incapable, is rich yet poor, is learned yet idiot.
IDIOCY :- 
कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम्।
कष्टात् कष्टतरंचैव परगेह-निवासनम्॥
मूर्खता दुखदायी है, जवानी भी दुखदायी है, लेकिन इससे कही ज्यादा दुखदायी किसी दूसरे के घर जा कर उससे अहसान लेना है।[चाणक्य नीति 2.8] 
Imprudence (foolishness, stupidity, ignorance) is the root cause of woes, losses, damages, misfortune, wrongs, malevolent, futility) resulting in pain (sorrow, grief, displeasure). Youth-young age too leads to many misadventures (agony, torturous situations). But when one becomes helpless to live in other's house involuntarily, the situation becomes even more painful-torturous.
बिना विचारे जो करे सो पीछे पछताए,
काज बिगारे आपनो जग में होत हँसाए। 
One should think, analyse the situation prior to taking any action. A moron-idiot has to face insult (punishment, harassment) repeatedly, since he is unable to see the consequences of his action. 
जवानी अंधी होती है। 
A young person has strength (vigour, energy, ego), which leads him to imprudence and misadventures and sexual encounters. He becomes shameless leading to difficulties and rigours.
One finds pleasure in his own house, since he is not obstructed to do one or the other thing. In fact every person has settings of his own in the house, has freedom to move or live. But else where, there are restrictions all over. One has to abide by all rules and regulations of the property holders. Every place can not become the home of a noble person. Living on mercy of some one is  extremely woeful.
Where ever you go or live you have to follow the rules-regulations. One must abide with the law.
One should be careful while executive some job. He should have vigour, courage, bravery and strength but all his moves should be premeditated, well planned and in the right direction and in accordance with the prevailing law of the land.
मेरी माँ कहती थी, "अपना घर हग के भर, दूसरे का घर थूक का भी डर"।  



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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)
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