CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम्॥[विदुर नीति 1]
जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।
Pious, auspicious, righteous deeds, distancing from evil-wicked deeds, faith & devotion to the Almighty are the characterises (traits, qualities) of a Pandit (learned, enlightened, scholar, philosopher, wise).
न ह्रश्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।
गंगो ह्रद इवाक्षोभ्यो य: स पंडित उच्यते॥[विदुर नीति 2]
जो व्यक्ति मान-सम्मान पाकर अहंकार नहीं करता और न अपमान ही से पीड़ित होता है। जो जलाशय की भाँति सदैव क्षोभ रहित और शान्त रहता है, वही ज्ञानी है।
One who is not filled pride-ego and do not feel dejection, is quite like the waters in a reservoir is enlightened-learned.
अर्थम् महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव वा।
विचरत्यसमुन्नद्धो य: स पंडित उच्यते॥[विदुर नीति 4]
जो व्यक्ति अत्यधिक धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी नहीं इठलाता, वह पण्डित कहलाता है।
The person who is free from ego in spite of attaining large quantity of wealth, education and comforts-luxury; is a Pandit (learned, enlightened, philosopher).
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च ह्रीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान् नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥[विदुर नीति 21]
जो व्यक्ति क्रोध, अहंकार, दुष्कर्म, अति-उत्साह, स्वार्थ, उद्दंडता इत्यादि दुर्गुणों की और आकर्षित नहीं होते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।
उत्साह :: जोश, उमंग, राग, धुन, सरगर्मी, याद दिलाने की क्रिया, बढ़ावा, उकसावा; excitement, enthusiasm, zeal, prompting.
उद्दंडता :: क्रूरता, नृशंसता, अति पाप, अति दुष्टता पूर्ण व्यवहार, हेकड़ी, गर्व; indecency, arrogance, tactlessness, atrocity.
One who is not attracted-affected by anger, ego-pride, evils-wickedness, extreme enthusiasm, selfishness, arrogance etc. is the truly enlightened-learned (prudent, intelligent) person.
यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते॥[विदुर नीति 22]
जिस व्यक्ति के कार्य पूरा हो जाने के बाद उसका कार्य, व्यवहार, गोपनीयता और विचार को दूसरे लोग जानते है, वही व्यक्ति बुद्धिमान है।
One is intelligent whose targets-endeavours, behaviour-manner of accomplishing the job, confidentiality and the methods-procedures are disclosed only after attaining his goal.
One should never disclose his plans, programmes, prior to giving them a shape, implementing them successfully. There is always a danger of stealing his research work by the others, like the Chinese & Russians spying everything in America.
The enemy is always active following each and every step of his opponents-rivals, enemies; like Pakistan & China which are bent upon-eager to destroy India through foul means.
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते॥[विदुर नीति 23]
जो व्यक्ति सरदी-गरमी, अमीरी-गरीबी, प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता और तटस्थ भाव से अपना राज धर्म निभाता है, वही सच्चा ज्ञानी है।
One who is not perturbed-disturbed by hot-cold whether (favourable or adverse situations-conditions), love & hate, poverty or riches and keep on performing-discharging his duties neutrally is enlightened-real scholar.
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थ भते न कामात्।
नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत् प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य॥[विदुर नीति 24]
जो व्यक्ति शीघ्र संकेत मात्र से जान लेता है, दूसरे की बात चिरकाल तक सुनता है, और अर्थ की कामना से उनका सेवन नहीं करता, यही पण्डित का मुख्य चिन्ह हैं।The enlightened-Pandit quickly understand a thing, keep on listening to others without reacting to it and do not wish to utilise such things for the sake of earning money. It is a characteristics, quality, trait of a Pandit-scholar.
बुद्विमान व्यक्ति किसी भी विषय को बहुत जल्दी समझ जाते हैं, पर वे धीरज-आराम से सब कुछ सुनते है किसी भी काम को अपना कर्तव्य समझ कर करते है। अपनी मनोकामना के लिए नहीं और व्यर्थ में किसी के बारे में बात नहीं करते है।
The Pandit-knowledgeable, informed people understand any subject quickly, but patiently listen to it for a long time, do any work as a duty, not as a wish, and do not talk about anyone in vain.
ज्ञानी लोग किसी भी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, लेकिन उसे धैर्यपूर्वक देर तक सुनते रहते हैं । किसी भी कार्य को कर्तव्य समझकर करते है, कामना समझकर नहीं और व्यर्थ किसी के विषय में बात नहीं करते ।
आत्मज्ञानं समारम्भः तितिक्षा धर्मनित्यता।
यमर्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥[विदुर नीति 25]
जो अपने योग्यता से भली-भाँति परिचित हो और उसी के अनुसार कल्याणकारी कार्य करता हो, जिसमें दुःख सहने की शक्ति हो, जो विपरीत स्थिति में भी धर्म-पथ से विमुख नहीं होता, ऐसा व्यक्ति ही सच्चा ज्ञानी कहलाता है।
One who is well versed with his ability-calibre and performs as per it for social welfare, has the capability-capacity to bear pain and keep on performing his duties in adverse situations as well is the real Pandit (learned, scholar).
यथाशक्ति चिकीर्षन्ति यथाशक्ति च कुर्वते।
न किञ्चिदवमन्यन्ते नराः पण्डितबुद्धयः॥[विदुर नीति 26]
विवेकशील और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव यह चेष्ठा करते हैं कि वे यथा शक्ति कार्य करें और वे वैसा करते भी हैं तथा किसी वस्तु को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करते, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं।
The prudent (wise, intelligent) always try to work at their level best and never discard-reject any thing by considering as inferior, being a Pandit-scholar (expert in their field).
नाप्राप्यमभिवाञ्छन्ति नष्टं नेच्छन्ति शोचितुम् ।
आपत्सु च न मुह्यन्ति नराः पण्डितबुद्धयः॥[विदुर नीति 27]
जो व्यक्ति दुर्लभ-विशिष्ट वस्तु को पाने की इच्छा नहीं रखते, नाशवान वस्तु के विषय में शोक नहीं करते तथा विपत्ति आ पड़ने पर घबराते नहीं हैं, डटकर उसका सामना करते हैं, वही ज्ञानी हैं।
One who do not desire-wish to obtain any special-rare object, do not grieve for the perishable goods, face the trouble (difficulties, calamity-disaster, tortures), do not panic & face them firmly is an enlightened person.
असम्यगुपयुक्तं हि ज्ञानं सुकुशलैरपि।
उपलभ्यं चाविदितं विदितं चाननुष्ठितम्॥[विदुर नीति 31]
वह ज्ञान निर्रथक है, जिससे कर्तव्य का कोई बोध न हो और वह कर्तव्य भी बेकार है, जिसकी कोई सार्थकता न हों।
That knowledge is useless which do not guide-caution a person about his duties and devotion to that job is no use-worthless which do not serve any purpose.
निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः।
अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते॥[विदुर नीति 40]
जो व्यक्ति किसी भी कार्य-व्यवहार को निश्चयपूर्वक आरम्भ करता है, उसे बीच में नहीं रोकता, समय को बरबाद नहीं करता तथा अपने मन को नियंत्रण में रखता है, वही ज्ञानी है।
One is a learned-expert (skilled, prudent) if he begins with a job with firm determination and continues with it without waiting time, keeps his innerself under control, is enlightened.
Every project has to be planned carefully prior to its execution. Finances have to be kept under strict control & vigil. Every effort should be made to keep the endeavours closely guarded secret prior to their approval & implementation.
न संरम्भेणारभते त्रिवर्गमाकारितः शंसति तत्त्वमेव।
न मित्रार्थरोचयते विवादं नापुजितः कुप्यति चाप्यमूढः॥[विदुर नीति 56]
जो जल्द बाजी में धर्म, अर्थ तथा काम का प्रारम्भ नहीं करता, पूछने पर सत्य ही उद् घाटित (बोलता) करता है, मित्र के कहने पर विवाद से बचता है, अनादर होने पर भी दुःखी नहीं होता। वही सच्चा ज्ञान वान व्यक्ति है।
One who do not initiate the Dharm, Arth *earnings) and Kam (sexual life) in a hurry, on being asked reveals the truth, avoids argumentation on being provoked by the friend, do not worry on being insulted; is a truly learned person (Gyani-enlightened).
गन्धेन गावः पश्यन्ति वेदैः पश्यन्ति ब्राह्मणाः।
चारैः पश्यन्ति राजानश्चक्षुर्भ्यामितरे जनाः॥[विदुर नीति 63]
गायें गँध से देखती हैं, ज्ञानी लोग वेदों से, राजा गुप्तचरों से तथा जन सामान्य नेत्रों से देखते है।
The cows recognises a person-object by the smell, enlightened identifies one through the knowledge of Veds, king with the help of detectives and the common citizens-masses recognise with their eyes.
पर्जन्यनाथाः पशवो राजानो मन्त्रिबान्धवाः।
पतयो बान्धवाः स्त्रीणां ब्राह्मणा वेदबान्धवाः॥[विदुर नीति 65]
पशुओं के रक्षक बादल होते है, राजा के रक्षक उसके मंत्री, पत्नियों के रक्षक उनके पति तथा वेदों के रक्षक ब्राह्मण (ज्ञानी पुरुष) होते हैं।
The clouds are the defenders-protectors of the animals (including humans), the ministers protect the king, husbands protect the women-wives and the Brahmns protects the Veds.
सुखं च दुःखं च भवाभवौ च लाभालाभौ मरणं जीवितं च।
पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति तस्माद् धीरो न हृष्येत्र शोचेत्॥[विदुर नीति 79]
सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु, उत्पति-विनाश; ये सब स्वाभविक कर्म समय-समय पर सबको प्राप्त होते रहते हैं। ज्ञानी पुरुष को इनके बारे में सोचकर शोक नहीं करना चाहिए। ये सब शाश्वत कर्म हैं।
Pain-pleasure, profit-loss, birth-death, evolution-dissolution are the effects of nature and every one gets them at one or the other occasion. The enlightened, wise should not worry about them, since they are eternal.
Destiny controls thing events as a result-outcome of the deeds committed-performed by one in his earlier births, till that age and the current moment situation. A hones-virtuous deed can eliminate the curse of earlier times in one go.
बुद्धयो भयं प्रणुदति तपसा विन्दते महत्।
गुरुशुश्रूषया ज्ञानं शान्तिं योगेन विन्दति॥[विदुर नीति 81]
ज्ञान द्वारा मनुष्य का डर दूर होता है, तप द्वारा उसे ऊँचा पद मिलता है, गुरु की सेवा द्वारा विद्या प्राप्त होती है तथा योग द्वारा शान्ति प्राप्त होती है।
Enlightenment removes fear, asceticism grants higher status (abodes, Moksh) service of the Guru grants learning-enlightenment and Yog grants peace, solace, tranquillity.
ब्राह्मणं ब्राह्मणो वेद भर्ता वेद स्त्रियं तथा।
अमात्यं नृपतिर्वेद राजा राजानमेव च॥[विदुर नीति 86]
समतुल्य लोग ही एक दूसरे को ठीक प्रकार से जान समझ पाते हैं, जैसे ज्ञानी को ज्ञानी, पति को पत्नी, मंत्री को राजा तथा राजा को प्रजा। अतः अपनी बराबरी वाले के साथ ही सम्बंध रखना चाहिए।
Only the people at par-equivalent to each other are able to make harmonious relations just like the learned with the enlightened (Brahmn with the Brahmn), husband with wife, minister with the king and the king with the populace.
Hence marital relations survive when both husband & wife have mental level and their families have equal status.
नवद्वारमिदं वेश्म त्रिस्थूणं पञ्चसाक्षिकम्।
क्षेत्रज्ञाधिषि्ठतं विद्वान् यो वेद स पर: कवि:॥[विदुर नीति 100]
जो विद्वान् नवद्वार वाले, तीन स्थुणा वाले, पाँच साक्षियों वाले क्षेत्रज्ञ जीवात्मा से अधिष्ठित धारण किये गए शरीर रूपी गृह को अच्छे प्रकार जानता है, वह श्रेष्ठ ज्ञानी अर्थात् ब्रह्मवित् है।
स्थूणा :: थूनी, खम्बा, पेड़ का ठूँठ, लोहे का पुतला, निहाई।
One is enlightened-Brahmvit (like the Brahm-creator) who identifies-recognises the human body having 9 doors, 3 supports, 5 witnesses possessed by the soul.
बुद्धया भयं प्रणुदति तपसा विन्दते महत्।
गुरुशुश्रूषया ज्ञानं शान्तिं योगेन विन्दति॥[विदुर नीति 107]
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